बर्ताव
मुझे ट्रेन में एक बूढ़ी महिला मिली जिसके अजीब से बर्ताव ने मुझे लिखने पर मजबूर कर दिया।
वो एक स्टेशन से चढ़ी और मेरे सामने वाली सीट पर थोड़ी जगह खाली थी वहाँ पर बैठ गई।वो सौल ओढ़े कुछ कुछ बातें अपने मे बुदबुदा रही थी, मुझे लगा कि वो किसी से मोबाइल पर बातें कर रही होगी। लेकिन वो किसी से मोबाईल पर बातें नही बल्कि अपने मे कुछ कह रही थी जो मैंने स्पष्ट रूप से नही सुना। इश बात का पता मुझे तब चला जब उसके बगल के सीट पर बैठे कुछ मेरी उम्र के लगभग विद्यार्थी मोबाइल पर कुछ कॉमेडी वीडियो देख रहे हँस रहे थे । तब उस महिला को लगा कि वो उसका मजाक उड़ा रहे है और फिर उस महिला ने उनके बारे में कुछ अनाब-सानाब बोलने लगी। उसने उन बच्चों को बददुआ देना शुरू कर दिया और ईश्वर का नाम ले कर कहने लगी कि उसका जो मज़ाक उड़ाएगा वो कभी सुखी नही रहेगा,तुम सब को एक दिन बुढापा आएगा आज जवानी में हँस लो याद करना उस दिन तुम्हारा भी कोई मज़ाक बनाएगा। तब मुझे यह एहसास हुआ कि वो महिला कुछ मानशिक रूप से अस्वस्थ है और समाज के बातों से वो किसी विकृति का शिकार हो गई है।
मेरे समझ मे जो आया उसमे वो महिला के सामने कोई भी हँसता तो उसे लगता कि वो उसका मजाक उड़ा रहा है और इश बीमारी को मेडिकल के भाषा मे मेन्टल डिसऑर्डर कहते है।जिसमे मानव अपनी अतीत में हूए उसके साथ बर्ताव को, पूरे समाज की वैसे ही छवि उसके दिमाग मे बना देतीं है। जिसमे लगता है कि समाज के सब लोग उसके बारे में गलत ही सोचते है लेकिन ऐसा वास्तव में नही होता।
समाज के कुछ लोगो के उपेक्षा ने मानव को मानशिक रूप से इश प्रकार अस्वस्थ कर दिया कि वो पूरे समाज को अपने विरोधी के रूप में देखने लगी।और समाज उसके बाद उसको पागल के रूप में देखने लगा।
इश बीमारी का जिम्मेदार कौन?
वो महिला,जो समाज के अवहेलना से मानशिक रूप से अस्वस्थ है या समाज, जो उसकी अवहेलना कर के उसके दिमाग मे एक नकारात्मक छवि बना दिया समाज के प्रति।
पर मुझे जहाँ तक लगता है कि वो महिला इश बीमारी की जिम्मेवार खुद है क्योंकि हो सकता है उसके समाज मे उसके किये गए बर्ताव या स्वभाव के कारण समाज उसकी उपेक्षा कर रहा हो,क्यो की समाज मे बहुत से लोग है और उनकी छवि समाज मे उनके कर्मों से बनी हुई है और उनके कर्म ही उनके जीवन मे समाज मे उनकी अच्छी छवि या बुरी छवि बनाती है।
बहुत दुख लगता है जब मैं ऐसे लोगो को बुढ़ापे में मानशिक रूप से अस्वस्थ देखता हूं।