आज कल “भक्त” शब्द का प्रचलन जोरों पर है,समस्या ये नहीं बल्कि समस्या ये है की ये शब्द सत्ताधारी दल के समर्थकों पर चिपकाया जा रहा है। कई तथाकथित बुद्धिजीवी लेखक और पत्रकारों से जब ये सुनता हूँ तो क्षुब्द हो जाता हूँ। काँग्रेस के जमाने में जुनूनी समर्थक को कभी इस नाम से नहीं पुकारा गया, जो आज के प्रचलित भक्त से ज्यादा उग्र थे। या जिन्होंने श्रीमती गाँधी की हत्या के बाद हजारों सिखों का कत्लेआम किया था। सत्ताधारी दल के समर्थकों को बदनाम करने के लिए एक सोच बनवाया जा रहा है, जो एक रणनीति है। सोचिये, दक्षिण भारत के उन समर्थकों के लिये कभी इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं हुआ जो अपने प्रिय नेता के चलते जान तक दे देते हैं।सत्ता का विरोध करना या उसके काम काज का आंकलन करना मात्र मीडिया का काम नहीं बल्कि देश के सभी नागरिक का हक हो सकता है। मगर सत्ताधारी समर्थकों को भक्त कहकर मजाक उड़ाना कहीं से भी न्यायोचित नहीं है।