#न #बासी #बचे #न #कुत्ता #खाय
भाजपा पढ़े-लिखे मूर्खों की पार्टी है । जब भी भाजपा की सरकार बनती है वह पाँच साल तक देश के खजाने को भरने में लगी रहती है । खजाना तो डबडबा जाता है पर सुविधाभोगी आम जनता परेशान हो जाती है । परेशानी की मानसिक दशा में वह कांग्रेस या विपक्षी गठबंधन को जिता देती है । फिर कांग्रेस भाजपा द्वारा अर्जित कोष का जमकर उपभोग करती है । कुछ मुफ्त के नाम पर जनता को परोसती है तो कुछ घटक-नारायण कर जाती है । इस तरह पाँच साल जनता भी खुश और पार्टी भी मदमस्त । खुशी के मारे पुनः पाँच साल के लिए कांग्रेस को चुनती है । पर तब तक खजाना डोल चुका होता है । पाँच साल में जनता इतनी त्रस्त हो जाती है कि फिर भाजपा को चुनती है और वह फिर देश का मुद्रा कोष भरने लगती है ।
वाजपेयी जी के समय से यही हो रहा है । देश के खाली पड़े खजाने को उन्होंने विदेशी प्रतिबन्धों (परमाणु विस्फोट के कारण) के बावजूद भरा । वित्तीय अनुशासन को सुविधाभोगी लोग सह न पाए और UPA को चुन लिया । UPA ने वाजपेयी जी के कमाए दौलत को उड़ाकर पाँच साल लोगों को मौज करवाया और पुनः सत्ता में आए । पर तब तक खजाना खाली हो चुका था और मनमोहन सिंह जी को कहना पड़ा था कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते । देश में संसाधनों की कमी हो जाने के कारण विभिन्न समूहों में उसे हासिल करने की होड़ बढ़ गई जिसके कारण मनमोहन सिंह जी को फिर बयान जारी करना पड़ा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है । अंत में जनता परेशान होकर मोदी जी को चुना और मोदी जी फिर देश की वित्तीय स्थिति सुदृढ़ करने में लगे हैं और सुविधाभोगी लोग परेशान हो रहे हैं । सुविधाभोगियों की पिपासा इतनी बढ़ चुकी है कि वह हजार-पाँच सौ से शान्त होने वाली नहीं । उन्हें तो भई पूरे पन्द्रह लाख चाहिए वो भी बिना हाथ-पैर हिलाए । अगर मोदी जी सिर्फ कमाने में ही लगे रहे तो हारेंगे ही और पुनः दस साल तक सत्ता UPA के पास रहेगी ।
तो मोदी जी, खजाना भर गया । अब खर्च कीजिए । अपने समय में जो कमाए उसे अपने समय ही खर्च कर पब्लिक को आनन्द का अनुभव कराईये । नहीं तो मौज अगला मारेगा । याद रखिये कि सोम के धन शैतान खाय ।
अगर आप कंजूसी करके देश का खजाना भर भी देंगे तो उसे आने वाला शैतान ही खाएगा । अतः इस नीति को छोड़िये और मेरी नीति को अपनाइये । मेरी नीति है – न बासी बचे न कुत्ता खाय ।