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समाज और महिलाएं

समाज और महिलाएं
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इस समाज के दो स्तंभ है महिला और पुरूष । दोनों एक दूसरे के पूरक हैं ।एक के बिना दूजे की कल्पना नहीं हो सकती ।
पुरूष खुद में महान विद्वान सामर्थ्य वान प्राणी है ।वो कर्ता धर्ता है परिवार का ।उसके ही गुण दोषों का प्रभाव आने वाली संतानों पर ज्यादा पड़ता है उसकी वजह पुरूष के परिवार का बच्चे के साथ ज्यादा रहना भी है।
महिलाएं थोड़ी मुर्ख होती हैं क्योंकि वो यह जानते हुए भी कि सारे समाज का अर्थशास्त्र वो ही निश्चित करती है और आर्थिक योजनाओं को भी वो ही कार्यरूप देती हैं ।फिर भी अपने गुण नहीं पहचान रही। यकीन नहीं आया ?
तो इसके लिए आस पास गौर फरमाएगा ।
पूरे विश्व में सबसे ज्यादा उत्पाद किसके लिए बनते हैं । कहानियों के पात्र किसके इर्दगिर्द लिखे जाते हैं। अपराध किस पर ज्यादा होते हैं और शोषण किसका ज्यादा होता है ? यह सब बातें गौर करने लायक है।
महिलाओं को अक्सर कमतर समझा जाता है ।
उनके बौद्धिक क्षमता पर सवालिया निशान लगाये जाते है। यह बात भी सच है कि महिलाओं को इसका ज्ञान ही नहीं कि वो क्या कर सकती हैं।बाजारवाद के जाल में फंस कर खुद ही उत्पाद बनती जा रही हैं। जबकि विकल्प बहुत है।
अब बात अपराध की आती है तो इसके लिए भी दोषी आपको ही बनाया जाता है ।चाहे दहेज उत्पीड़न हो या बलात्कार जैसा घृणित अपराध।हर बार इसके कारणों को ढूंढा जाता है और दोष आपके ही ऊपर मढ दिया जाता है आपके वस्त्रों आपके आचरण को बलात्कार का दोषी मान लिया जाता है इस तरह से बलात्कारी मासूम ही कहलाया जाता है जो बेचारा किसी और महिला के भडकाऊ कपडो को देख कर तीन माह की बच्ची को भी नहीं छोड़ पाता छोडिये खैर यह बात क्योंकि इस बात को कोई स्वीकार नहीं करेगा कि रेपिस्ट कोई अचानक किसी को देख कर नहीं बनता बल्कि कहीं न कहीं उसके मन में यह घृणित मानसिकता पनप रही होती हैं।दहेज हत्या और दहेज प्रथा के लिए भी औरतों को ही दोषी ठहराया जाता है और होती भी है बेवकूफ औरतें अपने बेटे के सुख सुविधाओं के लिए इन कुरीतियों को बढावा देती हैं ।मुझे समझ नहीं आता जब घर की औरतें जब इस अपराध को अंजाम दे रही होती हैं तो मासूम पुरूष उसका विरोध क्यों नहीं करता ? क्यों नहीं कहता वो सबल है मुझे दहेज नहीं चाहिए लेकिन वो नहीं कहेंगे क्योंकि उन्हें हर समस्या के समाधान के लिए स्त्री ही दिखती हैं थोडा बीवी दहेज में ले आये तो दिक्कत क्या है आखिर रहना भी है औरत को। औरतों को खुद ही सोचना चाहिए कि वो इतनी शातिर है जो हर घटना के लिए जिम्मेदार है फिर कैसे मुर्ख हो सकती हैं वो कैसे दोयम दर्जे की प्राणी है ? एक आदमी जो पूरी जिंदगी एक महिला को ही प्रभावित करने में लगा रहता है उसकी बौद्धिक क्षमता पर प्रश्न उठाता है ।
आश्चर्य वाली बात नहीं है क्या ?

दिव्या राकेश शर्मा
देहरादून ।

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