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दुनिया बदलने वाले तर्कशील और चिंतनशील इंसान के 9 लक्षण

क्या आप भी दुनिया बदलना चाहते हैं? ये 9 आदतें अपनाकर आप दुनिया बदल सकते हैं।

समाज के नियमों और परम्पराओं से अलग हटकर सोचना यह एक ऐसी चीज़ है जिसे लोग हलके में ले लेते हैं। कई बार ऐसे व्यक्ति को तो पागल और दिन में सपने देखने वाला तक कह देते हैं। ऐसे में एक तर्कशील और स्वतंत्र चिंतन करने वाले व्यक्ति से मिलना एक नायाब अवसर हो सकता है। यह भी सच है कि तर्कशील और स्वतंत्र चिंतन की कद्र भी वही करता है जिसमें यह कीड़ा होता है। बीज रूप में ही सही।

बुद्धू बक्से से निकल कर अलग सोच पाना और चूहों की दौड़ से अलग अपने लिए रास्ता बनाना, हालांकि आसान नहीं है और कई बार तो उसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है, पर यह वो काम है जो ना केवल जीवन में पागलपन की हद तक आनन्द देता है, बल्कि दुनिया को बदलने और इतिहास में नाम तक दर्ज करवाने तक का मौका देता है।

क्या यह सब आसान है? बिलकुल नहीं।

इसके खतरे भी कम नहीं हैं। ‘सुकरात’ को कौन भूल सकता है जिसे इसी तर्कशील और स्वतंत्र चिंतन ने ज़हर के प्याले को पीने को बाध्य किया। ‘ब्रूनो’ को कौन भूल सकता है जिसे जीते जी आग के हवाले कर दिया गया। अब्राहम लिंकन ने तो इतने ज़िल्लत और संघर्षों के बाद भी अमेरिका से दास-प्रथा के कानून को हटा दिया। क्या युवाओं के स्टार ‘चे’ को भूलना आसान है।

यह सच है कि उन्हें इनकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी, लेकिन सच यह भी है कि मरने के बाद भी हम सुकरात, ब्रूनो, अब्राहम लिंकन और चे को भूल नहीं पाए। उन्हें वो दर्जा दिया जो भक्तों के दूत भी कभी ना पा सकें।

जैसा कि पहले ही कहा है कि एक बार तर्कशीलता और स्वतंत्र चिंतन का कीड़ा काट लिया, आप इससे विमुख नहीं हो सकते। क्या आपको भी लगता है कि यह खतरनाक कीड़ा आपमें भी कहीं घुस कर बैठा है और निकलने के लिए, दुनिया बदलने के लिए कुलबुला रहा है?

अगर हाँ, तो आपका इस कीड़े की दुनिया में स्वागत है।

ये 9 चीजें आपको अपने भीतर के कीड़े को बहार निकालने और उसे दुनिया के सामने लाने में मदद करेगा।

1.  कई बार चीज़ों को अलग नज़रिये से देखने के लिए पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है और कभी-कभी दूसरे व्यक्ति के चश्मे को इस्तेमाल करना पड़ता है।

तर्कशील और स्वतंत्र चिंतनशील व्यक्ति को पता होता है कि किसी घटना को देखने अथवा किसी विचार और वस्तु के बारे में, एक मात्र सच जैसा कुछ नहीं होता है, बल्कि उसके कई सारे जाने-अनजाने पहलू होते हैं। इसलिए वह ना तो एक पहलू तक अपनी सोच को सीमित रखता है और ना ही कोई पूर्वाग्रह पालता है, बल्कि घटना के नए कारणों तथा चीज़ों के बारे में नए विचारों को सोचने, जानने और सीखने में तत्पर होता है। आप किसी बात को लेकर एक दृढ़ मत या विचार रख सकते हैं, लेकिन जैसे ही आप नए तथ्यों से गुज़रते हैं, आपका सच और आपके विचार बदल जाते हैं।

ऐसे में स्वतंत्र चिन्तक बदलते तथ्यों और परिस्थितियों से डरते नहीं, ना ही सोचने के जोखिम से बचते हैं। वे तो चिंतनशीलता और नयेपन को खेल की तरह अपनाते हैं तथा शौक बना लेते हैं।

2.  सृजनशीलता जीवन की वह चाबी है जिससे हर दरवाज़ा खोला जा सकता है।

सृजनशीलता इंसानों को प्रकृति का दिया ऐसा नायाब तोहफा है जो ना तो ‘लियोनार्दो द विन्सी’ तक सीमित है और ना ही ‘पिकासो’ अथवा ‘चार्ल्स डार्विन’ तक। हालांकि लोग आपको समझायेंगे कि आप उनकी तरह नहीं बन सकते, पर सच यही है कि हर इंसान सृजनशीलता की अपार संभावना के साथ पैदा होता है जिसे विषय के प्रति दिलचस्पी और लगातार प्रयास से धार दिया जाता है।

आपको यह जानना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति एक दिन में पिकासो नहीं बनता, ना ही महान वैज्ञानिक ‘स्टीफन हाकिंग’ बनता है। लाख बाधाओं के बाद भी वे एक सृजनशील इंसान के रूप में दुनिया में जाने जाते हैं तो अपनी धुन और कार्य के प्रति समर्पण के कारण।

सृजनशीलता प्रत्येक इंसान का जन्म सिद्ध अधिकार है, खासकर उनके लिए जो तर्कशील और स्वतंत्र चिंतनशील होते हैं।

हालांकि समाज बार-बार आपको एक ही तरह से सोचने को मजबूर करेगा। आपकी अलग सोच को गलत, अव्यवहारिक और पागलपन तक करार देगा, पर यदि आपको अपनी सोच और सृजनशीलता पर यकीन है, तो दुनिया की कोई भी ताकत उसे आपसे नहीं छीन सकती।

3. एक स्वतंत्र चिन्तक को अपनी अज्ञानता का अहसास होता है।

कहते हैं सुकरात अपने समय का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति था। एक बार भविष्यवाणी हुई और सुकरात से कहा गया कि वह सबसे बुद्धिमान व्यक्ति है। इसपर सुकरात ने इसका उत्तर दिया कि शायद इसलिए कि मुझे अपनी अज्ञानता का बोध है। एक चिन्तक यह बात अच्छे से जानता है कि जो भी ज्ञान उसे है वह अगले क्षण बदल सकता है अथवा नए तथ्यों के सामने आने पर गलत साबित हो सकता है। वह किसी भी बात को अंतिम सत्य नहीं मानता। उसे पता होता है कि   इस परिवर्तनशील दुनिया में परिवर्तन ही एक ऐसा सत्य है जो नहीं बदलता।

एक स्वतंत्र चिन्तक की तब मौत हो जाती है जब उसे लगता है कि वही सही है अथवा जिस तथ्य को वह जानता है वह अंतिम सत्य है।

एक तर्कशील व स्वतंत्र चिन्तक हमेशा ज्ञान के लिए लालायित और तैयार होता है, वह यह भ्रम नहीं पालता कि उसे सबकुछ ज्ञात है और उसके जानने के लिए कुछ नहीं बचा है। बल्कि वह ज्ञान के स्रोत के प्रति कृतज्ञ होता है, चाहे जिस भी स्रोत से ज्ञान मिले उसे धन्यवाद करता है और इसमें उसका अहं आड़े नहीं आता।

4.  एक स्वतंत्र चिन्तक खुद को पागल और औरों से अलग कहे जाने से नहीं डरता।

सच तो यह है कि औरों से अलग सोचने वाले, धुनी और लोगों द्वारा उनकी सोच के लिए पागल तक करार दिए जाने वाले लोग ही स्वतंत्र चिन्तक और समाज को बदलने वाले होते हैं। समाज किसी भी नई धारणा, विचार, व्यवस्था आदि को आसानी से नहीं अपनाता, बल्कि उससे सशंकित रहता है और व्यवस्था विरोध समझता है। समाज कभी भी आसानी से बदलने को तैयार नहीं होता। नए विचारों के प्रति वह दमन और महत्व ना देने का रवैया अपनाता है।

लेकिन स्वतंत्र चिंतनशील व्यक्ति धीरे-धीरे (शुरुआत में बिलकुल थोड़े लोगों से शुरू करके) समय के साथ प्रयास करके अपने विचार लोगों में डालने में सक्षम हो जाता है। कई बार अपने ही जीवन काल में, कई बार मृत्यु और इतिहास के पन्नों में दर्ज होने के बाद। दुनिया कभी भी बदलने को तैयार नहीं होती, जब तक बदलने वाला इंसान से उसका सामना न हो।

इतिहास में, जिस गुलामी की प्रथा को दो-तीन सौ साल पहले कानूनी मान्यता प्राप्त थी, आज उस व्यवस्था को पूरी दुनिया अमानवीय समझती है।

यह इसलिए संभव हुआ कि कुछ लोग मानवीय मूल्यों की नई नज़र से देख पाए, वे सोच पाए कि इंसान होने में एक सम्मान है और दास प्रथा उस सम्मान के घोर विपरीत।

5. वे परिवर्तन से प्यार करते हैं और एक ही काम कर-कर के उब जाते हैं।

कई लोग अपने जीवन काल में कई तरह के कार्य करते हैं। बुद्ध तीस साल होने बाद भी दुःख के कारणों की खोज के लिए घर त्याग देते हैं। जंगल जंगल भटकते हैं। उन्हें राजसी जीवन और सुखोपभोग के सारे साधन रास नहीं आते। टाइटैनिक और अवतार जैसी महान फिल्में बनाने वाले जेम्स कैमरून के बारे में कहते हैं कि उन्हें दर्शन में बहुत रूचि थी। बाद में वे पढ़ाई छोड़कर ट्रक ड्राईवर तक बन गए। स्टार वार्स फिल्म देखने के बाद उन्होंने ट्रक ड्राईवरी छोड़ दिया और फिल्मों में जाने का निर्णय लिया। जीवन में उन्होंने वह किया जिसने उन्हें आकर्षित किया।

ऐसे कई और लोग हुए हैं, जिन्होंने दुनिया के सोचने समझने की धारा ही बदल दी। न्यूटन ने सेब के पेड़ से गिरने की तह तक जाकर गुरुत्वाकर्षण के नियम की खोज की। चार्ल्स डार्विन ने लम्बी समुद्री यात्रा कर के, तरह तरह के जीवों के कंकालों और जीवित प्राणियों के भेद के पहलुओं का अध्ययन करके, युगांतकारी विकासवाद का सिद्धांत दिया जिसने सभी धर्मों की ईश्वर द्वारा इंसान को रचने की संकल्पना को चुनौती दी।

ऐसे लोग जीवन में कोई अफसोस नहीं रखना चाहते हैं। वही करते हैं जो करना चाहते हैं। उनके लिए एक जीवन होता है जिसका वो भरपूर उपयोग करते हैं, ढेर सारे जोखिम लेते हैं और कीमत चुकाने के लिए तैयार रहते हैं।

6. वे घुमक्कड़ होते हैं और नए-नए अनुभव के शौकीन होते हैं।

ऐसे स्वतंत्र चेत्ता राहुल सांकृत्यायन की इस उक्ति में विश्वास करते हैं कि यथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा। उनकी नज़र में घुमक्कड़ी से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं है। घुमक्कड़ से बढ़कर व्यक्ति और समाज का कोई हितकारी नहीं हो सकता।

जो व्यक्ति नई-नई जगह घूमता है, नए-नए लोगों से मिलता है और नई-नई संस्कृतियों व ज्ञान को खुद में समाहित करता है, वह देश और समाज के प्रति एक वैकल्पिक दृष्टि विकसित कर लेता है।

अपने अनुभव से वह दुनिया के बारे में जानता है और भविष्य देखने की दृष्टि विकसित कर लेता है तथा जोखिम लेने की उसकी क्षमता उस भविष्य दृष्टि को सच में परिवर्तित करने में बल प्रदान करती है। ऐसे में वह सामाजिक मान्यताओं के विरुद्ध जाने से भी नहीं डरता। उसकी भविष्य-दृष्टि और आत्मविश्वास उसके भीतर नेतृत्व कला का विकास करती है और धीरे-धीरे लोग उसके नेतृत्व को स्वीकार कर लेते हैं।

7. वे पुरानी मान्यताओं और सत्ता को चुनौती देते हैं।

समाज में कई मान्यताएं, सदियों से चल रही होती हैं, पर उन मान्यताओं के भीतर सुविधा प्राप्त लोग उसके प्रति मोह विकसित कर लेते हैं। उनके पास सुविधाओं से विशेषाधिकार और सत्ता प्राप्त होता है। किसी भी सामाजिक बदलाव से सामाजिक ढांचे में परिवर्तन की गुंजाइश हो सकती है और उससे उनकी सत्ता और सुविधा जाने का भय होता है। ऐसे में वे अपनी ताकत और सुविधा का प्रयोग कर यथास्थिति बनाये रखना चाहते हैं। तर्कशील और चिन्तक लोग यह बात समझ जाते हैं। उस व्यवस्था में व्याप्त शोषण और समय के हिसाब से नए परिवर्तन की गुंजाइश को वह भांप जाते हैं। ऐसे में वह नए तरीके, तकनीक और कार्यनीति से व्यवस्था परिवर्तन का कार्य शुरू कर देते हैं।

8. स्वतंत्र चिंतनशील व्यक्ति कल्पनाशील होता है।

आईन्स्टाईन ने कहा था, “कल्पनाशीलता ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। कल्पनाशील व्यक्ति भविष्य को अपने ज्ञान और अनुभव की पृष्ठभूमि में एक सम्भावना के तौर पर देखते हैं। जब वह अपने थोड़े ज्ञान से अपनी कल्पना में टुकड़ा-टुकड़ा संभावना जोड़कर एक नई व्यवस्था, नियम, व्याख्या, कलाकृति देखने की क्षमता विकसित कर लेते हैं, तब वे कई दफा के प्रयासों से उस कल्पना को सच भी कर सकते हैं। कल्पनाशील होने के लिए आवश्यक है कि आपके पास जीवन, दर्शन, चीज़ों, घटनाओं आदि के बारे में कई पैटर्न तथा कई पहलु हों और उनके परस्पर संयोग से नई चीजें बन सकने की कल्पना हो। आपके कल्पनाशील सोचने और देखने की समझ धीरे धीरे विकसित करने की ललक और लगन आपको वह करने की क्षमता प्रदान करती है, जो युगांतकारी होने की सम्भावना रखता है।

9. वे जिज्ञासु और प्रयोगधर्मी होते हैं।

जब हम बच्चे होते हैं, दुनिया हमारे लिए आश्चर्यों से भरा हुआ होता है। हम हर कुछ का कारण जानना चाहते हैं। यही कारण है कि बचपन में हम कई चीजें सीखते हैं और जैसे जैसे उम्र बढ़ती जती है हम काम भर जानकारी इकट्ठी कर लेते हैं, फिर घर गृहस्थी में व्यस्त होकर अपनी जिज्ञासा को अपनी ज़िम्मेदारी और असुरक्षा के भय से मारना शुरू कर देते हैं।

धीरे-धीरे हमारे भीतर से क्यों और कैसे, जैसे सवाल आने कम हो जाते हैं या बन्द हो जाते हैं। कभी क्यों और कैसे का सवाल आता भी है, तो हम उसे जानने के लिए जोखिम लेने को तैयार नहीं होते। यही कारण है कि हम धीरे-धीरे सीखना बन्द कर देते हैं। जो इंसान सीखना बन्द कर देता है, उसका ज्ञान और अनुभव समय के साथ पुराना हो जाता है। नए समय में वह चीज़ों के बारे में और घटनाओं के बारे में नई दृष्टि व समझ विकसित कर पाने में सक्षम नहीं होता।

दूसरी तरफ जिज्ञासु और प्रयोगधर्मी व्यक्ति जीवन भर जिज्ञासु और प्रयोधर्मी बना रहता है। इस कारण नई-नई चीज़ें सीखता रहता और प्रयोग करने के कारण अनुभव हासिल करता रहता है। यही कारण है कि उसका ज्ञान समय के साथ अधतन होता रहता है, जिससे समाज में उसकी पहचान और महत्व बना रहता है। एक बार पहचान और महत्व स्थापित हो जाने के बाद वह समाज में अगुआ, नेता अथवा महामानव का दर्जा प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार अपनी तर्कशीलता और स्वतंत्र चिंतन से वह समाज को लगातार दिशा देने में सक्षम रहता है।

क्या आपको भी लगता है कि आपके भीतर तर्कशीलता और स्वतंत्र चिंतन करने का कीड़ा है?

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