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अदिति शर्मा की कविता: दफ्तर जाती महिलाएं

1 . 

गैस सिलेंडर का रेग्युलेटर बंद तो है ना!

बाथरूम की लाईट, स्टोर रूम का पंखा

पीछे वाले कमरे की लोहे की अलमारी का वो छोटा लॉकर

उसकी चाबी चावल के डिब्बे में रख देना

पीछे से आवाज़ आती है

चश्मा ले जाना मत भूलना

वरना फिर सिरदर्द की शिकायत करोगे

शाम को आते हुए कादम्बरी बुक स्टोर से सेकण्ड PUC कॉमर्स की बुक्स भी पूछ आना

नया सिलेबस

मुझे आने में शायद थोड़ी देर हो जाए

मुस्कुराते हुए वह सब सुनता है

और मुकेश  का एक गीत गुनगुनाता है

शायद…

मैंने तेरे लिए ही सात रंग के….

बेटी को आइसक्रीम के लिए दस रुपये का नोट पकड़ाकर उसने बैग उठाया

दोनों  घर से साथ निकले

थोड़ा जल्दी तैयार हो जाते तो मैं ऑफिस समय पर पहुंच जाती

बस स्टैंड पर सुबह से घर के काम में उलझी पत्नी की

झुंझलाहट भरी फटकार पर वह मन ही मन मुस्कुरा रहा है

तभी सामने से

बस नम्बर 317 आती दिखाई दी

वह दौड़कर बस में चढ़ गया

बस में भीड़ है

उसके पास खुल्ले पैसे भी तो नहीं हैं

वह बार-बार अपना पर्स देखता है

और एक सौ का नोट कंडक्टर की तरफ बढ़ा देता है

12 रुपये के लिए 100 रुपये का नोट देख कंडक्टर मुंह बिचकाता है

आज वह खुश है

समय से दफ्तर पहुंच जाएगा

ब्रेक!

टक्कर !!

झन्नाटेदार तीन थप्पड़ !!!

तीसरे थप्पड़ के साथ चश्मा उतरकर गिर पड़ा

क्या हुआ बहन जी !

क्या हुआ बहन जी !

देखो ना मेरे ऊपर गिर रहा है

मुंह में शब्द सिमट गए

बस से उतरा तो

ज़मीन कुछ ऊपर उठी हुई थी

पैर कुछ नीचे पड़ते थे

वह जिस जगह उतरा

उसका नाम उसे ध्यान नहीं था

वह दफ्तर नहीं गया

वह घर भी नहीं गया

आज जाने दिनभर क्या करता रहा !

2 . 

बस नम्बर 317 में

उसे जाते देख

अचानक खाते-खाते उसके माथे पर आ जाने वाली पसीने की बूंदें

बढ़ते BP और शुगर के बारे में सोचते हुए

उसकी आंखें भर आईं

10 रुपये के टिकट वाली प्राइवेट बस में

दरवाज़े पर लटके लड़कों को ठेलती हुई

वह अंदर घुस गयी

पीछे हल्के-हल्के

कुछ सहलाने की हलचल महसूस हुई

आहिस्ता से पीछे मुड़कर देखा

पैंट की ज़िप खोले खड़े आदमी ने नितम्ब पर चिकुटी काट ली

अपमान से उसका गला रुंध गया

वह भीड़ में रास्ता बनाते हुए

उस जगह से हटी

पर अब सभी कोहनियां उसकी छाती को

और सभी हथेलियां उसके नितम्बों को छू रहे थे मानो

आंसुओं को दबाते हुए बस से उतरी तो

अचानक ही

ऑफिस में पीछे से पीठ पर हाथ फेरकर

हालचाल पूछने वाले गुप्ता जी का ध्यान आया

वह ऑफिस नहीं गई

वह घर भी नहीं गई

आज जाने दिनभर क्या करती रही।

 

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