Site icon Youth Ki Awaaz

मोदी सरकार का अपने वादों से मुकरना, 2019 चुनाव में भारी ना पड़ जाए

2014 का लोकसभा चुनाव कई बड़े वादों और एक नए भारत के संकल्प के साथ लड़ा गया, जिसके सूत्रधार थे मोदी जी। लेकिन, धीरे-धीरे कई वादे जुमलों में तब्दील हुए तो कई वादों से सरकार ने ही यूटर्न लिया। इसका प्रभाव यह पड़ा कि राज्यों में तो बीजेपी ने जीत हासिल की, लेकिन लोकसभा उप-चुनावों में भाजपा को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा।

लोकसभा के उपचुनावों में भाजपा की दलील रही कि वो स्थानीय मुद्दों को लेकर लड़ा जाता है, इसलिए हार गए। तो सवाल यह है क्या राज्यों के चुनाव अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं ? और जिन राज्यों में भाजपा जीत हासिल कर रही उसके बल पर 2019 में अपनी जीत को पक्की मान रही है। 2014 का अगर आप मोदी जी द्वारा किए गए वादों और भारतीय जनता के समर्थन को बारीकी से विश्लेषण करेंगे तो बहुत कुछ तस्वीर साफ होंगी।

राज्यों की जीत से लोकसभा की जीत का आंकलन गलत है। मोदी जी के कुछ बड़े वादे, जिससे बाद में सरकार पलट गई, पर जनता ने बड़ी मात्रा में इन वादों को देखकर लोकसभा में उन्हें जिताया, जैसे- सालाना 2 करोड़ रोज़गार, काला धन वापसी, जिससे सबके खाते में 15 लाख आएंगे, किसानों को पचास प्रतिशत दाम, टैक्स का बोझ नहीं होगा, पेट्रोल डीजल के दाम सस्ते होंगे इत्यादि।

अब यह ऐसे वादे हैं, जो कॉंग्रेस की सरकार से त्रस्त जनता को अपनी तरफ खींचने के लिए काफी थे। लेकिन, इन सब में मोदी सरकार पूरी तरह से विफल रही है। मोदी सरकार कह रही कि जनता हमें राज्यों में लगातार जीता रही है, इसलिए हम दुबारा जीत कर आएंगे। जबकि मेरा आंकलन कहता है कि 2014 में कॉंग्रेस के खिलाफ प्रचंड विरोध होने के बावजूद उस हिसाब से वोट तो बहुत मिले थे, मगर सीटें कम। फिर इस बार तो सम्पूर्ण विपक्ष एकजुट होकर लड़ रहा है। (अगर गठबंधन कायम रहा तो), जैसे भाजपा अपने जन्म के समय लड़ी थी।

राज्यों में भी भाजपा ने जहां चुनाव जीते वहां यदि गैर-भाजपाई पार्टियों का वोट प्रतिशत मिला दीजिये तो तस्वीर साफ हो जायेगी कि भाजपा ने सिर्फ जीती सीटों और सरकार बनाने के आधार पर हौवा बनाया है। जबकि विपक्ष में वोट देने वाली जनता को उसने जनता नहीं माना। तो अब ऐसी स्थिति में भाजपा के पास क्या बचा है ? तो जवाब है या तो राम मंदिर का फैसला आ जाये या फिर हिन्दू-मुस्लिम बड़ा विवाद कराया जाये, नहीं तो अपने वादों से पलटने के चलते जनता इन्हें औंधे मुंह गिरा देगी।

यदि किसी भी तरह 2019 के चुनाव में भाजपा बहुमत हासिल नहीं कर पाती है तो इनके सहयोगी दल जो आज शांत हैं, मोदी ब्रांड के आगे वो शक्ति में आते ही तांडव करते नज़र आ सकते हैं। तो मित्रों मीडिया और भाजपा की बनाई हवा में मत जाइए जिस पार्टी को भी चुने बस अपना आंकलन अवश्य करें। यह पब्लिक है सब जानती है।

Exit mobile version