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BHU की गरिमा बचाए रखने के लिए वहां सहमति असहमति की गुंजाइश रहने दीजिए

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का नाम तो सुना ही होगा आप सबने। BHU में एडमिशन लेने के बाद सबसे पहले आपका परिचय जिन आदर्श वाक्यों व मूल्यों से होगा वो है “महामना की बगिया, मालवीय मूल्य और बगिया के फूल!” अगर सच बताऊं तो मैं आज तक इन वाक्यों का सही-सही मतलब नहीं समझ पाया हूं और मुझे यकीन है कि इन वाक्यों का दिनभर जाप करने वाले छात्र भी इसका मतलब नहीं जानते होंगे! क्योंकि यहां हर वो कार्य जिसमें सामने वाले की सहमति ना हो “महामना की बगिया को बदनाम करने की साजिश और मालवीय मूल्यों के खिलाफ” करार दिया जाता है! और फिर मालवीय मूल्यों की रक्षा की खातिर बगिया के कथित फूल मानवीय मूल्यों व आदर्शों की धज्जियां उड़ाने लगते हैं।

लोगों की बीच वैचारिक असहमति हर जगह होती है और यहां भी है। मेरा मानना है कि वैचारिक असहमति जहां नहीं होगी वो जगह और कुछ भी हो सकती, है मगर एक विश्वविद्यालय तो कतई नहीं हो सकता। मगर अफसोस कि यहां के कुछ छात्र ओफ्फ माफ कीजियेगा बगिया के कुछ फूल इतनी छोटी सी बात को भी नहीं समझ पाते हैं। मतभेद का होना ही एक विश्वविद्यलाय की जीवंतता दर्शाता है और विरोधाभास के अभाव में विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालय नहीं रह जायेगा बल्कि किसी ढोंगी बाबा का आश्रम हो जायेगा। जहां सवाल करने के बजाय सबके सब आंख बंद करके कृपा बरसने का इंतज़ार करेंगे।

इसलिए मेरे दोस्त मालवीय मूल्य और बीएचयू की गरिमा तब खतरे में नहीं होती है, जब कोई छात्र या छात्रा सरकार व उनकी नीतियों के खिलाफ हाथ में तख्ती लेकर लंका गेट पर आवाज़ बुलंद कर रहा होता है, बल्कि तब खतरे में होती है जब हम देश-दुनिया की घटनाओं से आंखें चुराकर चुपचाप हॉस्टल के कमरे में दुबके रहते हैं। बीएचयू की गरिमा व मालवीय मूल्य विश्वविद्यालय के सैकड़ों बिल्डिंगों में नहीं बसती है और ना ही लड़कियों के कपडे़ व हमारे खानपान में बसती है, जो शॉर्ट स्कर्ट पहन लेने और मांस खा लेने से धूमिल हो जायेगी। बल्कि वो आपके और हमारे आचरण और व्यवहारों में बसती है।

यकीन मानिये जब आप मालवीय मूल्यों की दुहाई देते हुए बीएचयू की गरिमा के रक्षार्थ अपने विरोधियों को सोशल साइट पर मां-बहन की गालियां दे रहे होते हैं ना, तब आप यकीनन मालवीय मूल्यों का अपमान कर रहे होते हैं। जब आप बीएचयू के छात्र होने का दंभ भरते हुए सीना चौड़ा करके फेसबुक पोस्ट व कमेंट में गालियां देते हैं, तब आप दरअसल इन गालियों के माध्यम से देशभर में अपने संस्कारों व आदर्शों का परिचय दे रहे होते हैं। और आप अपनी इस घटिया हरकत के द्वारा बीएचयू की गरिमा व यहां के तमाम छात्र-छात्राओं की छवि को धूमिल कर रहे होते हैं।

बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकार का झंडाबरदार बनकर जब आप कैंपस की किसी लड़की को सिर्फ इसलिए ‘रंडी’ कहते हैं और सोशल मीडिया पर लंबे-लंबे लेखों द्वारा उसका चरित्रचित्रण करते हैं, क्योंकि वो आपसे वैचारिक रुप से असहमत है व लड़कों से कदमताल करते हुए अपनी आवाज़ बुलंद कर रही है तब भी आप शर्मसार कर रहे होते हैं इस संस्थान को और यहां पढ़ने वाले हज़ारों छात्र-छात्राओं को भी।

इसलिए मेरे दोस्त मालवीय मूल्यों व बीएचयू की गरिमा का अगर आपको सच में तनिक भी खयाल है और आप अपने आप को इस बगिया का फूल मानते हैं तो अपने विचारों व व्यवहारों के माध्यम से इसकी रक्षा करिये ना कि लाठी, डंडा, गाली-गलौज व अपनी घटिया सोच से। और हां किसी भी संस्थान के मूल्य व गरिमा का ख्याल वहां के हर छात्र-छात्रा को होता है इसलिए इसका पूरा बोझ किसी को अपने कंधे पर लेने की कोई ज़रूरत नहीं है। जिस देश में वैचारिक विरोध के कारण गांधी की हत्या कर दी गयी उस देश में आप असहमत होने पर तार्किक आलोचना की गुंजाइश भी खत्म कर देना चाहते हैं। क्या आपको लगता है ये संभव होगा वो भी एक विश्वविद्यालय में? नहीं! बिल्कुल नहीं। इसलिए सहमति असहमति प्रकट करने की गुंजाइश रहने दीजिए ताकि हर मुद्दे पर खुलकर बीएचयू बोल सके।

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