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माहवारी पर बात शुरू करने के लिए एक अनूठी पहल है “चुप्पी तोड़ो बैठक”

“एक ही कपड़े को बार-बार इस्तेमाल करना पड़ता है और माहवारी का एक-एक दिन पहाड़ जैसा कटता है।” ये बोल हैं राजस्थान की 25 साल की दुर्गा के। ‘गूँज’ पिछले एक अरसे से राजस्थान में नॉट जस्ट अ पीस ऑफ क्लॉथ(महज़ एक कपड़ा नहीं ) अभियान के तहत कई गाँवों में माहवारी पर “चुप्पी तोड़ो बैठक” कर रहा है। माहवारी पर बात करने के लिए जब गूँज की टीम राजस्थान के छोटे से गाँव मेंदिया में पहुंची तो वहां टीम के द्वारा की गई माहवारी पर “चुप्पी तोड़ो बैठक” में महिलाओं ने महावारी से जुड़े अपने अनुभव टीम से साझा किये।

इसी क्रम में 25 साल की दुर्गा ने भी अपनी माहवारी के उन पांच दिनों की दिनचर्या टीम से साझा की जिसे जान कर सभी हैरान रह गए। दुर्गा ने टीम को बताया की उनका परिवार एक “संयुक्त परिवार है और छोटा घर होने के कारण माहवारी के दौरान वो सुबह 4:00 -4:30 बजे उठ जाती हैं। गाँव में पानी की समस्या होने के कारण “एक ही कपड़े को बार-बार इस्तेमाल करना पड़ता है” और माहवारी का एक-एक दिन पहाड़ जैसा कटता है” हम माहवारी के लिए इस्तेमाल की गई कतरनों को अच्छी तरह नहीं धो पाती हैं।

शर्म के कारण वो इन्हें धूप में ना सुखा कर कपड़ों के नीचे सूखने के लिए डाल देतीं हैं। कई बार कतरनें ठीक से नहीं सूखे पाते हैं जिसके कारण उनमें नमी रह जाती है। लेकिन उनका इस्तेमाल मजबूरन उन्हें करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि माहवारी के दौरान हाथ और पैरों में सूजन व महीना ज़्यादा होना हमारे लिए एक आम बात है।

28 मई को “विश्व माहवारी स्वच्छता दिवस” है, ये दिवस 2014 से पूरे विश्व में मनाया जा रहा है। जिसका मुख्य उद्देश्य समाज में फैली मासिक धर्म संबंधी गलत भ्रांतियों को दूर करने के साथ साथ महिलाओं और किशोरियों को महावारी के बारे में सही जानकारी देना है।

सामाजिक संस्था ‘गूँज’ जो कि उन गिनी-चुनी संस्थाओं में से है, जो इस विषय पर पिछले एक दशक से काम कर रही है। ‘गूँज’ लगातार देश के दूर दराज गाँवों की महिलाओं के साथ उनकी माहवारी से जुड़ी मुश्किलों पर गहराई से संवाद करती आई है। विश्व माहवारी स्वच्छता दिवस के मद्देनज़र “गूँज” ने 14 मई को शहरों और गाँवों में “महिलाओं की गरिमा व माहवारी” पर बातचीत को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पूरे देश में ”रेज़ योर हैंड” नाम की एक मुहिम चलाई है। ये मुहिम “महिलाओं की गरिमा और माहवारी” दोनों को एक समय में एक साथ संवाद में लाने की कोशिश है। और इसका माध्यम है एक अनोखी बैठक जिसे नाम दिया गया है “चुप्पी तोड़ो बैठक।”

ये बैठक केवल एक कमरे में ना सिमट कj रह जाए इसके लिए सबको आगे आने की ज़रूरत है। इसके लिए आप अपने आस-पास की महिलाओं और पुरषों के बीच ”चुप्पी तोड़ो बैठक” कर सकते हैं। ये बैठक माहवारी से जुड़ी शर्म और चुप्पी को हटाने का एक ऐसा ज़रिया है जिससे हर घर में महिलायें अपनी सेहत को माहवारी से जोड़ कर देख सकें और इस विषय पर नि:संकोच अपनी बात रखें।

देश के दूर दराज़ गाँवों में महिलायें अपनी “मासिक ज़रूरत” को कैसे पूरा करती हैं इस सवाल का जबाब ‘गूँज’ को अपने काम के दौरान मिला। गरीबी और अज्ञानता के चलते महिलायें इस दौरान अपनी “मासिक ज़रूरत” को कभी मिट्टी, घास, पन्नी ,पत्ते और गन्दे कपड़े से पूरा करती हैं, जिसके चलते वह गंभीर बीमारियों से परेशान रहती हैं।

गावों में काम करने का ‘गूँज’ का तरीका भी बेहद अनोखा है। ‘गूँज’ शहरों से प्राप्त कपड़ों से महिलाओं के लिए सूती कपड़े के सैनेटरी पैड बनाती हैं, जिसे देश के दूर दराज के गाँवों में महिलाओं के बीच माहवारी डिग्निटी पैक्स के रूप में बांटती है। एक किट में 10 कपड़े के बने सैनिटरी पैड के साथ–साथ महिलाओं के लिए अंडर-गारमेंट्स भी रखें जातें हैं। ये “डिग्निटी पैक्स” उन महिलाओं के लिए एक बहुत बड़ी राहत होती है जिनके पास माहवारी के दौरान एक कपड़े का टुकड़ा भी मुहैया नहीं हो पाता।

बहरहाल “रेज़ योर हैंड” महिला की गरिमा और माहवारी पर संवाद करके हर कोई इस अनोखी मुहिम का हिस्सा बन सकता है और अपना योगदान देकर वो पूरे समाज की मानसिकता भी बदल सकता है चुप्पी तोड़ो बैठक करने के लिए ‘गूँज’ की तरफ से ऑनलाइन टूलकिट भी उपलब्ध कराई जायेगी।

भारत के गाँवों की महिलाओं के बीच महावारी से जुड़ी स्वच्छता व जागरूकता पहुंचाने के लिए गूँज के लक्ष्य 100,000 ‘माहवारी डिग्निटी पैक्स’ पहुंचाने में अपना आर्थिक योगदान दें।

आप 26 मई को ‘गूँज’ के कार्यालयों (दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, बैंगलोर और ऋषिकेश) में आयोजित की जा रही “चुप्पी तोड़ो बैठक” का भी हिस्सा बन सकते ।

ये मुहिम गूँज के सोशल मीडिया पर भी चलाई जा रही है फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम।

उम्मीद करते है की आप भी इस मुहिम से जुड़ेंगे और इसे आगे लेकर जाएंगे ।

अधिक जानकारी के लिए : टीम गूँज (011 – 4140 1216, mail@goonj.org, njpc@goonj.org)
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