सॉफ्टवेयर का मक्का बैंगलोर। युवा धड़कनो और संस्कृतियों के मिलान का शहर है। 90 के दशक और उसके बाद भारत में IT इंडस्ट्री के उद्भव की लंबी कहानी लिखता शहर है। सहजीवन की संस्कृति को जीता शहर बैंगलोर भारत के सकल घरेलू उत्त्पाद में ज़िरो से हीरो होने की कहानी है। IT इंडस्ट्री को दशा दिशा देता बैंगलोर संस्कृतियों के आयात और संक्रमण का शहर भी है।
युवा सॉफ्टवेयर निर्माताओं या जैसे उनको संबोधित किया जाता है सॉफ्टवेयरवीरों द्वारा भारत से मुख्यत: अमेरिका, UK, यूरोप में भ्रमण, कामकाज, संस्कृतियों का आदान प्रदान का कारण बना और भारत ग्लोबल होता चला गया। इस शहर में लोगों की रफ़्तार तो ज़्यादा रही पर शहर धीरे-धीरे चला या कभी-कभी तो रेंगता भी नज़र आया।
शहर की तासीर, लाल माटी के होने और घुमड़-घुमड़ कर रंग बदलते, बिना बात के बरसते बादलों से भी तय होता है शहर देश की आंतरिक संस्कृतियों का भी मिलान बिन्दु है। हर प्रदेश के युवा शहर में आये रचे बसे और शहर की धड़कन हो गये। ठेठ देशी भोजन, इडली, सांभर, डोसा से लेकर कॉन्टिनेन्टल भोजन तक, बड़ी सुलभता से हर गली के कोने में मिलता है।
भारत में सहजीवन की नीव भी मूलतया यहीं से पड़ती है। चूंकि जहां युवा हैं वहां प्रयोग भी है और नये रोग भी हैं। करियर को अलग मुकाम पर लेजाने की तमाम कोशिशों के बीच, प्रतिभायों के बीच, गलाकाट प्रतिस्पर्धा के बीच सहजीवन अपनी जगह बनाता और जिवंत नज़र आता है।
खैर जिस मोबाइल से मैं लिख रहा हूं, उस मोबाइल में चलने वाले ऐप्लिकेशन और जीवन में स्मार्टनेस लाते सिस्टम को ऑटोमेट करते लगभग सभी सॉफ्टवेयर्स में बैंगलोर रचता और बसता है। तमाम युवाओं ने नीली काली स्क्रीन के सामने जब अपनी रात काली की है तब इस स्मार्टनेस के हकदार हुए हैं।
किन्तु यह भी दिगर है कि आम आदमी के जीवन को नई ऊंचाई देता सॉफ्टवेयरवीर बैंगलोर खुद अपनी इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए जूझता रहा और रातें काली करने वाले युवा अपनी सामाजिक पहचान के लिए। आजकल यहां चुनाव का मौसम है।
पूर्णत: ग्लोबल हो चुके शहर में, देशी संस्कृति के प्रधान सेवक “नामदार और कामदार” के जुमले के साथ मैदान में हैं देखिये क्या होता है। नामदार और कामदार के नारे के बीच बैंगलोर हमेशा होनहार है और दमदार है।