‘Feminism’ इससे क्या समझते है आप ? नारीवाद या समानता ? क्या एक फेमिनिस्ट को नारी का साथ देना चाहिए या सच का ?
आजकल फेमिनिस्ट बनना लोगों के लिए एक मशहूर होने का तरीका हो गया है। जहां हर कोई आवाज़ उठाने के जरिए लाइमलाइट में आना चाहता है। आज ज़्यादातर फेमिनिस्ट सिर्फ इसीलिए है ताकि लोग उनका नाम जाने, उन्हें पहचाने। एक तरफ ये फेमिनिस्ट है जिन्हें सिर्फ लाइमलाइट चाहिए और एक तरफ वो फेमिनिस्ट है जो सिर्फ आंख बंद कर के महिलाओं का साथ देना चाहते है। अगर इसी तरह का फेमिनिज्म है देश में तो कैसे बढ़ेगा देश? फेमिनिस्ट बनने से पहले कोई यह क्यों नहीं जानना चाहता की, फेमिनिज्म का मतलब समानता है न की नारीवाद। लड़के और लड़कियों के बीच का फर्क हटाना फेमिनिज्म है न की दोनों के बीच में भेदभाव पैदा करना।
देश में आज महिलाओं को लेकर हर व्यवस्था की जा रही है। जिससे वो पढ़े लिखे आगे बड़े, सिर्फ एक चार दीवारी तक सिमित न रह जाए। जिस देश में महिलाओं के हक़ के लिए लड़ा जा रहा है। वहां ये क्यों नहीं देखा जा रहा की देश के युवकों के हक़ के लिए कौन लड़ा रहा है। क्यों बस या ट्रेन में सफर कर रहा युवक अगर धक्का लगने से किसी युवती से टकरा जाता है तो वो चाहे उससे गलती से ही क्यों न हुआ हो उसे जोर का तमाचा जड़ दिया जाता है ? क्यों एक युवक पर अगर कोई लड़की जबरदस्ती करती है तो उस पर वो अपने बचाव के लिए हाथ नहीं उठा सकता ? सिर्फ इसीलिए क्यूंकि वह एक महिला है। अगर महिलाएं चाहती है की उन्हें बराबर का अधिकार मिले उन्हें सारे हक़ मिले तो वे ये क्यों नहीं चाहती की उन्हें भी बराबरी की सजा दी जाये? अगर कोई लड़की शिकायत करती है की इस लड़के ने मुझ पर हाथ उठाया तो क्यों बिना लड़के से बातचीत किये उसे तमाचे जड़ दिए जाते है ? एक महिला चाहे तो अपना बच्चा गिरा सकती है क्योंकि उसे अपना करियर बनाना है लेकिन अगर यही बात लड़का कह दे तो वो गलत क्यों ?
एक आवाज़ जो उठाना जरूरी है। लोगों को यह जानना जरूरी है की एक फेमिनिस्ट समानता के लिए लड़ता है न की सही गलत की परवाह किये बिना किसी एक पक्ष का साथ देने के लिए।लड़कियों को बेशक उनके अधिकार दिलाओ लेकिन किसी लड़के का अधिकार छीन कर नहीं। लड़को की भी भावनाएं होती है, आत्मसम्मान होता है। महिलाओं के हक़ के लिए लड़ो पर इससे पुरुषों के हक़ को मत छीनो।
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