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वोट किसानों से और सरकारी नीतियां बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए

भारत के तमाम राजनीतिक दल किसान के समर्थन में खड़े होते हैं लेकिन कब? जब उनकी सत्ता खतरे में हो या विपक्ष में के रूप में वो खतरे में हों। कर्नाटक में ढाई दिन के मुख्यमंत्री रहे येदियुरप्पा का किसान प्रेम कोई नई बात नहीं है। जब यही राजनीतिक दल सत्ता पर काबिज़ होते हैं, तब इनको किसान याद नहीं रहता।

उस वक्त सिर्फ याद रहती है बहुराष्ट्रीय कंपनियां और उन्हीं को फायदा पहुंचाते-पहुंचाते यह किसानों को भूल जाते हैं और किसानों के लिए ऐसी नीतियों का गठन करते हैं जिससे कि किसान कर्ज़ के जाल में फंसता जाता है और कर्ज़ के दबाव से तंग आकर किसान आत्महत्या कर लेता है। बस यही अत्महत्या मीडिया के लिए खबर बनती है।

बजट 2018 में वित्तमंत्री के द्वारा 11 लाख करोड़ राशि किसानों को कर्ज़ देने के लिए निर्धारित करने को भी प्रगति कहकर ढोल पीटना बेशर्मी के अलावा कुछ नहीं है। किसान को उसकी मेहनत का वाज़िब दाम चाहिये अर्थात फसलों के वाज़िब दाम चाहिए।

जी हां, किसानों को भिक्षा नहीं, बल्कि उनका हक दीजिये, उन्हें सब्सिडी देने की बजाय उनकी कृषि भूमि के बाज़ार मूल्य के 90 % वैल्यू का क्रेडिट कार्ड बनाकर दिया जाये। जितना पैसा वह चाहे इस्तेमाल करें। इस राशि पर 1% साधारण ब्याज़ की दर लगाई जाए, तो गांव देहात की वित्त व्यवस्था एकदम सुधर जायेगी।

साथ ही बैंक के लोन भी सुरक्षित रहेंगे। पूंजीपतियों की तरह लोन हड़पने का किसान का कोई मतलब नहीं हो सकता है, क्योंकि यह भारतीय ज़मीन से जुड़े लोग हैं, किसी नीरव मोदी या विजय माल्या की तरह शराब में डूबे लोग नहीं। भारतीय किसान मेहनत की कमाई खाने को ही अपना धर्म समझते हैं, उनका ईमानदारी में यकीन है।

जहां तक टैक्स का सवाल है, कृषि क्षेत्र समाज के लिए खाद्य पदार्थ पैदा करता है, इसलिए सस्ते खाद्य पब्लिक को उपलब्ध कराने के लिए दाल, सब्ज़ी, सरसों का तेल, गुड़, दूध, मावा, पनीर, फल, और कृषि के प्रोसेस्ड आइटम टैक्स फ्री रखे जाएं। 

किसानों को पूरे देश मे कहीं भी ले जाकर अपनी फसल या कोई उत्पाद बेचने की छूट होनी चाहिए, इसकी बाधाएं समाप्त की जाये। खेती में इस्तेमाल होने वाले यंत्र ट्रैक्टर, ट्रॉली, मोटर, डीज़ल व पेट्रोल आदि पर केवल 1 % टैक्स वसूल किया जाये।

इसके बाद किसानों को दी जाने वाली समस्त सब्सिडी बन्द कर दी जाये। केवल एक-एक लाख के कर्ज़ माफ करना कहां से उचित है ? किसानों को महाजनों के शोषण से भी मुक्त कराना होगा। इससे किसान तो खुश रहेंगे ही, भ्रष्टाचार पर भी लगाम खुद ही लग जायेगी।

क्या कॉंग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा, इनेलो, लोकदल, कम्युनिस्ट इन बातों को लागू करने का ज्ञान नहीं रखते हैं ? दरअसल, ये सभी किसानों के हित की नौटंकी करते हैं।

आप बताइए कि क्या किसान संगठनों को मिलकर आवाज़ नहीं उठानी चाहिये? यह आर्थिक प्रस्ताव केवल किसान के हक में ही नहीं, बल्कि पूरे देश के हक में है। 60 करोड़ लोगों को यह आर्थिक नीति लागू होने के अगले दिन कृषि क्षेत्र में रोज़गार मिल जायेगा।

यह आर्थिक नीति घोषित होते ही किसानों की आत्महताएं बन्द हो जाएंगी। आपकी नज़र में ये प्रस्ताव कैसे हैं ? किसानों पर कर्ज़ गलत आर्थिक नीतियों का परिणाम है, किसानों की इसमें कोई गलती नहीं है, इसलिये गलत नीतिया बनाने वाले इसका भुगतान करें।

75 करोड़ किसानों से लोकसभा चुनाव में वादा करके भी स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू नहीं की, उल्टा सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट देकर स्पष्ट किया कि यह रिपोर्ट लागू नहीं करेंगे।

दूसरी तरफ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कहने से नोटबन्दी व जीएसटी को लागू किया गया, जबकि इसका ज़िक्र भी चुनाव में कभी नहीं किया था। नोटबन्दी और जीएसटी से मध्यम व छोटे व्यापारी, किसान और वेतनभोगी लोगों को नुकसान हुआ है। जबकि पूंजीपतियों ने अपना कालाधन नए नोट में सफेद कर लिया है।

सारा मीडिया हकीकत से आंख छुपाने में लगा है, कुछ पत्रकार पब्लिक हित की बात करते हैं, उन्हें भक्त देशद्रोही बता रहे हैं। यह है मोदी जी सरकार का असली चेहरा और इनकी हकीकत कि वोट आम लोगों के और काम बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के। यानी हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और मुहावरे का सही उदाहरण मोदी सरकार है।

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