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क्रांति के महीने मई में 1857 की जनक्रांति और नायक धन सिंह गुर्जर की कहानी

मई का महीना है, क्रांति का महीना है, मज़दूर-किसान- कामगारों का महीना है, हक और अधिकारों का महीना है। विश्व के सभी मज़दूर इसे मज़दूर दिवस व मई क्रांति के रूप में मनाते हैं क्योंकि इस महीने में ही उन्हें वे अधिकार प्राप्त हुए थे जिनकी वे लंबे समय से मांग कर रहे थे।

मई का महीना भारत के इतिहास में भी एक बहुत महत्वपूर्ण घटना का गवाह रह चुका है और वो थी ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन भारत में हुई वह जनक्रांति जिसे पहले तो महज़ एक सैनिक विद्रोह और गदर के तौर पर देखा गया, मूल्यांकित किया गया मगर ब्रितानी भारत में यह जनक्रांति ही भारत का पहला स्वाधीनता संग्राम का दर्जा पा गयी थी।

मई के महीने में किसान अपने खेतों से लगभग फारिग हो चुके थे। गर्मी और लू से पूरा उत्तर भारत परेशान रहता है मगर उन दिनों किसान और मज़दूर ईस्ट इंडिया कंपनी के अमानवीय और अत्याचारी रवैये और नीति से दुखी थे। मनमाने कर और लगान वसूली जाती थी जबकि खेती में उपज ही कम होती थी। मई के उस महीने में लू ने उतनी गर्मी पैदा नहीं की थी, जितनी जनक्रांति के उस ज्वार ने उबाल ला दिया था।नतीजा यह रहा कि ब्रिटेन की सरकार ने भारत से ईस्ट इंडिया को हटाकर खुद अपने हाथों में शासन ले लिया।

इस जनक्रांति की शुरुआत मेरठ से 10 मई को शाम पांच बजे चर्च का घण्टा बजते ही मेरठ के कोतवाल धन सिंह गुर्जर की अगुवाई में हुई थी।इस क्रांति का प्रस्फुटन यकायक होने के बावजूद इसकी पृष्ठभूमि भी इसके लिए क्रांति के बीज बोती दिखती है। सैनिकों में गाय और सूअर की चर्बी को लेकर भारी रोष और गुस्सा था, वे जले बैठे थे। शहीद मंगल पांडेय की शहादत ने इसमें घी का काम किया।

कोतवाल धन सिंह गुर्जर

मेरठ पुलिस के चीफ कोतवाल धन सिंह गुर्जर मेरठ नगर के पास ही के गांव के थे, लगभग दो ढाई महीने पहले ही एक विवाद को लेकर अंग्रेज़ अधिकारियों ने उनके गांव के दो लोगों को फांसी पर लटकाया था और कई आदमियों पर कोड़े बरसाये थे, साथ ही किसानों को उनकी ज़मीन से बेदखल भी कर दिया था। अंग्रेज़ों की इस ज़्यादती ने उनके मन में कंपनी शासन के खिलाफ बग़ावत पैदा कर दी थी।

9 मई को मेरठ कैंट में 85 सैनिकों ने परेड करने से साफ इंकार कर दिया और बगावती तेवर अख्तियार कर लिया। उन सैनिकों को अगले दिन वर्दी उतारने का हुक्म मिला और उनके खिलाफ कड़ी करवाई करते हुए उन्हें बन्दी बना लिया गया। कोतवाल धन सिंह गुर्जर खुद ऐसे ही किसी मौके की तलाश में थे, उन्होंने सावधानीपूर्वक आस पास के गांव वालों को इस क्रांति के लिये तैयार कर लिया और गांव गांव गुपचुप तरीके से खबर फैला दी।

10 मई की सांझ को ठीक पांच बजे मेरठ के घण्टाघर और कैंट के गिरजाघर का घण्टा बजते ही मेरठ सदर बाज़ार और कोतवाली में क्रांति का औपचारिक आरम्भ हो गया।

कोतवाल धन सिंह गुर्जर ने समझदारी से पुलिसवालो को इस क्रांति में शामिल कर लिया और साथ ही मेरठ की जेल का ताला तोड़कर 836 कैदियों को भी हथियार देकर क्रांति में साथ ले लिया। कैंट में उन बागी सैनिकों ने मोर्चा थाम लिया और इस तरह से भारत के इतिहास की सबसे बड़ी और व्यापक भागीदारी वाली लड़ाई लड़ी गयी। कोतवाल धन सिंह गुर्जर इस जनक्रांति के क्रान्तिनायक और क्रांतिजनक के रूप में उभरे।

किसानों, जेल से छूटे कैदियों और बागी सैनिकों ने क्रान्तिनायक कोतवाल धन सिंह गुर्जर को इस जनक्रांति का अपना नेता चुन लिया। कोतवाल की अगुवाई में सब क्रान्तिवीर दिल्ली की ओर चल पड़े जहां उन्होंने आख़िरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को क्रांति की कमान थामने का अनुरोध किया, बादशाह इसके लिये राज़ी ना थे मगर ना नुकर के बाद उन्होंने इस जनविद्रोह का नेता बनना स्वीकार किया।

बाद में क्रांतिनायक कोतवाल को अंग्रेज़ों ने पकड़कर मेरठ के एक चौराहे पर 4 जुलाई को फांसी पर लटका दिया और उनके गांव पांचली पर उसी दिन तोंपो से हमला करके गांव को नेस्तनाबूत कर दिया, 11 वर्ष से अधिक उम्र के लड़के और आदमी को या तो तोप से उड़ा दिया या फिर फाँसी पर लटका दिया गया।

सरकारी उदासीनता के चलते कोतवाल धन सिंह को इतिहास की विस्मृत गलियों में छोड़ दिया गया है। सरकार और प्रशासन को इस शहादत और योगदान का संज्ञान लेकर उनकी स्मृति में कोई क्रांतिघाट या क्रांतिस्थल बनवाना चाहिए ताकि नई पीढ़ी उस क्रान्तिनायक से अवगत हो सके।

अंग्रेज़ों की नज़र में यह जनक्रांति एक सैनिक विद्रोह, गदर या बगावत ही हो मगर सही मायनों में यह व्यापक जनआक्रोश था जिसमें सैनिक, किसान, मज़दूर और कुछ राजे रजवाड़े भी शामिल थे। यह धार्मिक मसले पर नाराज़गी भले ही हो सैनिकों के संदर्भ में मगर किसान और मज़दूर अपनी दयनीय हालत से पीड़ित थे और क्रोध से भरे हुए थे जिसकी परिणति यह जनक्रांति में बदल गयी।

यह सामाजिक क्रांति थी जिसे अंग्रेज़ केवल सैनिक विद्रोह के रूप में देख पाये। बाद में अनेक क्रांतिकारियों ने इस विद्रोह से ही प्रेरणा ली और ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ जंग जारी रखी। भारतीय लेखकों ने इसे गुलाम भारत का पहला स्वाधीनता संग्राम कहकर सम्मानित किया। हर वर्ष 10 मई को क्रांति दिवस के रूप में याद किया जाता है और इस जनक्रांति के क्रांतिकारियों को श्रद्धा और सम्मान से याद किया जाता है।


फोटो आभार-  फेसबुक पेज, Pakistan OLD PIC Lovers,  JanaSena Veera Mahila

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