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चरणामृत जैसी अंधश्रद्धा हमारे समाज की तर्कशक्ति को खत्म कर रही है

दुनिया में एक से एक अन्धविश्वास हैं। कहीं लोग भस्म से बीमारी ठीक करने के दावे करते हैं, तो कहीं किसी को समोसा खाने को कह मुराद पूरी करने के नुस्खे बताते हैं। ऐसे बाबाओं की संख्या की श्रृंखला है। इन गोरखधंधों से पता नहीं भक्तों का कितना भला होता है, पर धन्धेबाज बाबाओं का धन्धा खूब चलता है। अंधश्रद्धा के धंधे में जितने बड़े चमत्कार का दावा, उतने ही भक्तों की भीड़ आएगी। इसलिए बाबा लोग इस मूढ़ता का इस्तेमाल करते रहते हैं। इसमें साईं बाबा से लेकर निर्मल बाबा तक के किस्से हैं जिनके बारे में भक्त भी जानते हैं और इस प्रकार के विश्वास पर सवाल उठाने वाले लोग भी।

कई ऐसे बाबा हैं जिनके प्रसाद,भस्म और चरणामृत की मार्केटिंग होती है। मसलन बालयोगेश्वर की। यहां हम चरणामृत पर बात करेंगे। आखिर क्या होता है चरणामृत? एक जगह लिखा है भगवान का चरण जिस जल से धोया जाता है, वह जल अमृत बन जाता है क्योंकि भगवान के चरणों का स्पर्श उस जल ने पा लिया। इसलिए इस अमृतरूपी जल को चरणामृत के नाम से जानते हैं।

एक अन्य जगह कहा गया है कि वह जल जिस से किसी पूजनीय देवी देवता या संत महात्मा के चरणों को धोया जाता हों उसे चरणामृत कहा जाता है। सनातन धर्म में चरणामृत को बहुत ही पवित्र माना जाता है। श्रद्धालु सिर माथे पर लगाने के बाद ही इसे ग्रहण करते हैं।

इस मूढ़ता के इतिहास में जायें तो तुलसीदास कृत रामायण में वर्णित है, जब प्रभु राम को वनवास हुआ तो अयोध्या से वन को जाने के लिए रास्ते में नदी को पार करना था तो उन्होंने केवट से प्रार्थना की  कि उन्हें गंगा नदी पार करवा दें। उस केवट ने कहा था:

पद पखारि जलुपान करि आपु सहित परिवार।
पितर पारु प्रभुहि पुनि मुदित गयउ लेइ पार।।

अर्थात् भगवान श्रीराम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गया बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया। यह भी मान्यता भक्त समाज में है कि रोज़ भगवान विष्णु का चरणामृत पीने से चमक सकता है भाग्य

इस तकनीक का उपयोग कई बाबा आजकल करते हैं। कई बार किसी देवता को जल अथवा दूध चढ़ाते हैं और उसे चरणामृत कहते हैं। कई बार पूरी मूर्ति को जल अथवा दूध से नहाया जाता है और नहाये जल अथवा दूध को चरणामृत कह भक्तों में बांट दिया जाता है। कई बार बाबा खुद अपने पैर धोते हैं और उनके भक्त उसे ही पीते हैं चरणामृत कह कर।

अभी हाल में ही उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में चरणामृत पीने से 44 लोगो बीमार पड गए।

सवाल उठता है कि पैर धोने और उस धुले पानी के अमृत बन जाने की बात के कोई सबूत भी हैं अथवा यह मात्र अंधश्रद्धा है? इसका जवाब तो भक्त ही दे सकते हैं अथवा वैज्ञानिक जांच से इसके खुलासे किये जा सकते हैं। पर जिस प्रकार विषाक्त प्रसाद अथवा चरणामृत से लोग बीमार पड़ने की खबरें यदा कदा मीडिया में आती हैं, उससे ज़ाहिर है कि यह बात सच नहीं हो सकती। यह मान्यता एक मूढ़ समाज को बेवकूफ बनाये रखने और उनसे अंधश्रद्धावश धन लूटने की चाल मात्र है।

कुछ लोग तो यहां तक दावा करते हैं कि चरणामृत पीने से इम्यून सिस्टम मज़बूत होता है और पुनर्जन्म से मुक्ति मिलती है।

इसके पक्ष में वे शास्त्रों के हवाले से एक मंत्र भी बताते हैं :

अकाल मृत्यु हरणम सर्वव्याधि विनाशनम

पीत्वा प्रभु चरण गंगोद्कम पुनर्जनम न भवेत् !!

अज्ञान मूल हरणम जन्म कर्म निवारणं

ज्ञान वैराग्य सिध्यर्थं गुरु पादोदकं पिबेत !!

सोचता हूं भारत कब इन अंधश्रद्धा और बाबाओं के जाल से मुक्त होगा? कब चमत्कार और जीवन को बेहतर करने के शॉर्टकट मेथड की आड़ में उनके धंधे को समझेगा?


फोटो- फेसबुक ग्रुप Shri Banke Bihari Temple Brindavan

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