कभी कभी लिखने का मतलब सिर्फ लिखना नहीं होता। लिखना शायद किसी से बात ना कर पाने का क्लाइमेक्स भी हो सकता है। और लिखना अच्छा या बुरा नहीं होता। लिखना बस लिखना होता है। कभी दीवारों को देखते हुए लिख लेता हूँ तो कभी चाँद देख कर भी शब्द समझ नहीं आते। हो सकता है मैं , एक अच्छा लेखक नहीं हूँ लेकिन अभिव्यक्ति के कारण के तौर पर देखना चाहूँ तो लिखना सबसे बड़ा सुकून है। मैं डायरी की तरह लिख सकता हूँ , रिपोर्ट की तरह लिख सकता हूँ , कहानी लिख सकता हूँ या कविता लिख सकता हूँ। और सब से अच्छी बात ये है कि मैं बस लिख सकता हूँ। सदैव , निरंतर। मुझे दोस्तों की उतनी जरुरत शायद नहीं पड़ती क्यूंकि लिखने से ये मालूम होता है की आप अपने खुद के भी मित्र हो सकते हैं। और स्वयं की सहमति के तौर पर देखूं तो जिस दिन आप अपने अंदर अपने जैसा एक और व्यक्तित्व खोजने लगते हैं ना , तब आपको ये एहसास होता है कि जीवन की लहरों में उफान आना तो अब शुरू हुआ है। कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे मरने का डर ना हो या जिसमे अपने अस्तित्व की चिंता ना सताती हो लेकिन बहुत काम ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्हे इन चिंताओं से पार पाना आता है। चिंता होना एक बात है और उसे चिंता पर चिंतन होना दूसरी और ये दूसरी बात उस स्तर की है जहाँ तक पहुँच पाना जीवन को पूर्ण कर लेने जैसा है। अपने सम्पूर्ण जीवन काल में असंख्य व्यक्तियों से मिलना और उनसे कुछ भी नहीं सीखना गुनाह का दूसरा रूप कहा जा सकता है। ऐसे में एक ऐसी शृंखला पर काम करना आम व्यक्तियों के बारें में बात हो और उनकी कहानियों को पूरे विश्व से साझा करना अपने आप में एक चैलेंज मालूम होता है लेकिन इसे निभाना गर्व की अनुभूति करने जैसा होगा। उम्मीद है , सबका प्रोत्साहन साहसिक रूप से मिलता रहेगा !!