Site icon Youth Ki Awaaz

“काँग्रेस, क्षेत्रीय दलों के लिये घातक साबित हो रही है”

कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस अपना मुख्य विरोधी भाजपा को मानने के बजाय जनता दल सेक्युलर को मुख्य विरोधी मान रही थी, ऐसा क्यों?

राहुल गांधी कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान मोदी से ज़्यादा देवेगौड़ा पर हमलावर थे। जिस दौर में देशभर के क्षेत्रीय दल भाजपा के मनुवादी एजेंडा के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं वहां काँग्रेस इस एकजुटता के लिये खतरा क्यों बना हुआ है?

काँग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी जो कि प्रधानमंत्री बनने की इच्छा तक ज़ाहिर कर चुके हैं, RSS के दलित-पिछड़ा-पसमांदा विरोधी नीतियों पर हमला करने के बजाय चुनाव प्रचार की शुरुआत और अंत मंदिर में पूजन से करते हैं और पूरे चुनाव प्रचार में हिन्दू बनने के लिये प्रयासरत रहते हैं।

इस समय भाजपा, विश्वविद्यालयों में दलित-पिछड़ा-पसमांदा विरोधी नीतियां लागू कर रही है और कर्नाटक में बहुसंख्यक आबादी इसी वर्ग की है। चुनाव प्रचार के दौरान इस तरह की छात्र विरोधी नीतियों पर राहुल गांधी एक शब्द भी नहीं बोल पाये, ऐसा क्यों? जबकी कर्नाटक में साक्षरता दर अन्य प्रदेशों की तुलना में औसत से ज़्यादा है।

राहुल गांधी को ऐसा क्यों लगता है कि इस समय भाजपा को हराने के लिये हिन्दू बनने की ज़रूरत है? भाजपा की जनविरोधी नीतियां राहुल गांधी के लिये चुनावी मुद्दा क्यों नहीं है? गुजरात चुनाव में भी इसी तरह राहुल गांधी जनेऊ दिखाते ही रह गये। भाजपा विरोधी हर वो नेता जो चुनाव प्रचार के दौरान हिन्दू बनने का ख्वाब देख रहा हो या दावा कर रहा हो, सीधे तौर पर भाजपा के लिये खाद पानी का काम कर रहा है।

चुनाव परिणाम घोषित होने के तुरन्त बाद काँग्रेस ने बिना शर्त जनता दल सेक्युलर को समर्थन का प्रस्ताव भेज दिया, जबकी राहुल गांधी चुनाव प्रचार के दौरान जनता दल सेक्युलर को भाजपा की बी-टीम बताते नहीं थकते थे।

काँग्रेस को चुनाव पूर्व जनता दल सेक्युलर से गठबंधन करने में क्या परेशानी थी? चुनाव परिणाम बाद समर्थन देने के बजाय गठबंधन में चुनाव लड़े होते तो आज भाजपा बहुमत से कोसो दूर होती। इस समय भाजपा को केवल क्षेत्रीय दल ही सत्ता से बेदखल कर सकती है, इस सच्चाई को स्वीकारने के बजाय कांग्रेस हमेशा की तरह खुद को भाजपा की विरोधी पार्टी साबित करने में लगी हुई है जबकी जनता ने काँग्रेस को नकार दिया है।

काँग्रेस की मनुवादी नीतियों को देखकर लगता है कि वो अपने विधायकों को भाजपा के हाथों बिकने से नहीं रोक पायेगी।

नोट: अब काँग्रेस को नेतृत्व संभालने की ज़िद छोड़कर अपनी उन राजनैतिक नीतियों का त्याग कर देना चाहिये जिसके चलते देश की क्षेत्रीय समाजवादी ताकतों का दमन किया जा रहा है, इस दमनकारी योजना को सफल बनाने के लिये भाजपा और काँग्रेस एक साथ काम कर रही है।

Exit mobile version