वायरल वीडियो या मैसेज, बिन बुलाये मेहमानों की तरह हो गये हैं। फोन का इंटरनेट चालू करते ही सोशल मीडिया पर कोई ना कोई विडियो वायरल हो कर घूम रहा होता है। मुझे तो ऐसा भी लगता है बहुत सारे अखबार भी इन्हीं वायरल वीडियो की खबरों पर अपने रोज़गार को बचाए हुए हैं।
“क्या है इस वीडियो में कि पहले ही घंटे में 10 लाख लोगों ने इसे देखा ?”, “इस वीडियो ने सबके होश उड़ा रखे हैं?” या “इस विडियो को देख कर आप ‘wow’ बोले बिना रह नही पायेंगे”… ऐसी हेडलाइन्स के साथ ई-अखबार भरे रहते हैं। ऐसा भी है कि बहुत अच्छे वीडियो भी देखने को मिलते हैं, जिनमें किसी के टैलेंट, नई खोज, सामाजिक मुद्दों से जुड़ी, हंसी-मजाक आदि को शामिल किया जा सकता है।
इंटरनेट पर वीडियो देखना खाली समय बिताने का एक महत्वपूर्ण ज़रिया बन चुका है। रोज़ की ना जाने कितने वीडियो हम देखते हैं और उन्हें साझा भी करते हैं। शायद लोग ऐसा भी मानने लगे हैं कि नई वीडियो को जो जितनी जल्दी साझा करता है वो उतना ही अधिक जागरूक और अपडेटेड होता है।
परसों शाम को एक ऐसा ही वीडियो देखा। इस वीडियो को देखने के दौरान बीता समय मुझे सवालों के कटघरे में खड़ा कर गया। वो एक लड़की का वायरल वीडियो था जिसे उसके बॉयफ्रेंड ने शूट किया था। ऐसे वीडियो में क्या होता है ये हम सब जानते हैं लेकिन उस वीडियो में जो बाते सुनने को मिली, वो सोचने पर मजबूर करती हैं।
पहले लड़की कहती है कि ये कैमरा क्यों ऑन किया है? फिर कहती है कि पिछली बार भी तुमने अपने दोस्तों को वीडियो दिखाया था और आखिर में कहती है ठीक है लेकिन प्रॉमिस करो कि ये वीडियो डिलीट कर दोगे। जब ऐसी वीडियो फिल्माई जा रही होती है तो लड़का-लड़की, दोनों ही उसके वायरल होने की सम्भावना और उसके कुप्रभावों से परिचित होते हैं, फिर भी ये MMS या वीडियो क्यों बन जाते है? क्या इसे फैशन समझा जाता है? या आज के समय में यह प्यार को सच्चा साबित करने की एक शर्त बन चुका है?
भारतीय समाज में रह कर, वीडियो बनने और उसके वायरल होने के बाद लड़की और उसके परिवार पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में अंदाज़ा लगाया जा सकता है। लेकिन मेरा सवाल वीडियो के बनने से पहले के समय के साथ जुड़ा हुआ है। क्यों एक लड़की या किसी केस में लड़का भी वीडियो को फिल्माए जाने पर अपनी सहमति दे देता है? उन निजी पलों को बाद में दुनिया को दिखाना ज़रूरी क्यों बनता जा रहा है?
क्या एक संबंध इन्हीं शर्तों पर बनाया जाता है? मुझे नहीं पता कि 21वी सदी का यह समाज प्यार को किस प्रकार परिभाषित करता है लेकिन अगर इस परिभाषा को पूर्ण करने की एक यह शर्त बन रही है कि निजी पलों को फिल्माया जाए तो वो परिभाषा प्यार की तो नहीं हो सकती, भले ही उसे प्यार का नाम दे दिया जाए।