ना तो मैं मंदिर जाता हूं , ना हीं मस्जिद जाता हूं,
अदना सा आदमी हूं, बस मेहनत करके खाता हूं।
कुछ सवाल हैं मेरे!
चंदो के बाज़ार से आज मेरी आंखे तुली हुई हैं,
तुम सो रहे हो या फिर तेरी आंखें खुली हुई हैं ?
अन्याय सहना पाप है तो तुम सूली क्यों चढ़े ?
मां कहती हैं पाप होगा पर कुछ सवाल हैं मेरे !
यह तुम्हारा भ्रमजाल ही है जब कोई 101 रूपये में किस्मत चमकदार करता है,
पर बताओ उस वक्त तुम कहां होते हो जब कोई निर्भया का बलात्कार करता है ?
ऑक्सीजन तो तुम्हारे हाथ में है, फिर गोरखपुर में बच्चों की सांसे क्यों टूट जाती है ?
अगर तुम सिर्फ भक्तों की सुनते तो अमरनाथ वाली बस घाटी में क्यों पलट जाती है ?
कुछ सवाल हैं मेरे !
सब तो तुम्हारे ही बच्चे हैं ना , फिर यहां लड़कियां क्यों नहीं मस्जिद जाती हैं ?
या फिर कोई पंजाबन बिना खंजर के कभी सुकून की नींद क्यों नहीं सो पाती है ?
एक मलाला के नोबेल से खुश हूं, स्कूल का मलाल लिये लाखों बच्चियों का क्या ?
कौम जो जिहाद के नाम पर दूसरी को निगलना चाहती है, उन कट्टरपंथियों का क्या ?
कुछ सवाल हैं मेरे !
अजान की आवाज़ तुम तक नहीं पहुंचती तो और भी बड़ा लाउडस्पीकर लगवाओ ,
मदरसे में तोते सा कुरान रटवाने की बजाय मुल्लों को भी कुछ मतलब समझाओ ।
तू तो काबा में है, तेरे दर पे नहीं आ सकते, सुना है गरीब अक्सर यही कहते हैं ।
तब कहां होते हो जब “या खुदा” बोल के कपड़ा बांध वो सर कलम करते हैं ?
कुछ सवाल हैं मेरे !!!
पानी बिकता बोतल में, गंगा में इतना प्रदूषण वो गंगाजल शुद्ध कैसे हो सकता है ?
केवल श्वेताम्बर पीताम्बर कहलाकर गंजे होकर कोई बुद्ध कैसे हो सकता है ?
“अहिंसा परमो धर्मः ” अनुयायियों के देश में परमाणु हथियारों का जखीरा भरा है,
दोजख की आग से ना डराना ओ खुदा, शायद तुम्हारे वाले से ये नर्क ज़्यादा बड़ा है।
कुछ सवाल हैं मेरे !
हां मानता हूं कि हर कण में तुम हो सकते हो, चौक चौराहे पर चंदो का हीं लश्कर है।
क्या तुम उस मासूम के खतने के खून के कतरे में नहीं, या तुम्हारी आंखें पत्थर हैं ?
भले मुझे दुनिया की सोलह प्रतिशत “मुक्त” नास्तिकों की सभ्य जनसंख्या में गिन लो ।
या गरीबों को लाइन में ना लगाने वाला बिना भेदभाव, लागलपेट वाला मेरा ईश्वर चुन दो ।
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नोट- यह कविता किसी धर्म समुदाय या व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुचाँने के उद्देश्य से नहीं लिखी गई है।