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“इस देश में प्रेम में होना किसी जिहाद से कम नहीं है”

कल देर रात एक वीडियो के रूप में तस्वीरें देखी। कलकत्ता मेट्रो में दो वयस्क, जो अपनी मर्ज़ी से प्रेम में हैं, गले मिल रहे थे। कुछ लोग जिन्हें प्रेम से परहेज़ था, उन्होंने प्रेम में डूबे दो लोगों के साथ मारपीट की। ये वो लोग हैं, जिन्हें कभी प्रेम हुआ ही नहीं। आज भी यह प्रेम के नाम पर ड्यूटी पूरी करते हैं।

इन्हें नहीं पता कि जब मेट्रो अपने आखिरी स्टेशन की तरफ बढ़ती है तो आप जिससे प्यार करते हैं, उसका हाथ छोड़ना कैसा होता है। वो दिन की आखिरी हंसी, नोक-झोक, चुम्बन और गले लगने की ज़रूरत को नहीं समझते। ये लोग प्रेम के नाम पर सिर्फ ड्यूटी निभाते हैं। लेकिन वीडियो में दो वयस्क प्रेम में हैं। लड़के ने अपने प्रेम की तरफ उठने वाले हर सवाल का जवाब दिया और लड़की ने अपने प्रेम पर चलने वाले हर हाथ को रोका। प्रेम का इससे अच्छा उदाहरण नहीं मिल सकता।

देश को तो हमने बांट ही दिया है, जब देश छोटा पड़ गया तो हमने प्रेम को भी अलग-अलग रंग, जाति और धर्म के नाम पर बांट दिया। लेकिन हम भूल गए कि प्रेम बगावत करना सिखा ही देता है। लेकिन हम तब भी चुप नहीं हुए, बगावत को ‘लव – जिहाद’ का नाम दे दिया। अब इन ड्यूटी पेशा लोगों को कौन समझाए कि इस देश में प्रेम में होना किसी जिहाद से कम थोड़ी है। इससे पहले कि ऊपर लिखी हुई लाइन्स पढ़कर आप मुझे राष्ट्र विरोधी घोषित कर दें, बता दूं कि अरबी के शब्द ‘जिहाद’ का वही मतलब है जो हिंदी में ‘संघर्ष’ का है।

संघर्ष है प्रेम इस देश में, आपको इस देश में प्रेम करने की इजाज़त नहीं है। और अगर आपको प्रेम हुआ भी तो उसके लिए समाज ने पहले से ही एक नियमावली बना रखी है। अरेंज मैरेज में आपकी कुंडली में 36 गुण मिले न मिले, प्रेम की इस नियमावली की सारी शर्तें पूरी होनी चाहिए। धर्म, जात, रंग, उम्र, आर्थिक स्थिति- इनमें से अगर कुछ भी ऊपर नीचे हुआ तो ये समाज आपको प्रेम करने की अनुमति नहीं देता। अब आप ही बताइए, प्रेम इस देश में एक जिहाद है या नहीं?

जब धीरे-धीरे प्रेम समाज के चोचलों से ऊपर उठा तो लोगों ने प्रेम की हत्या करनी शुरू कर दी। इस देश में बीफ खाना, आवाज़ उठाना और हक मांगना देशद्रोह है और प्रेम में होनी वाली हत्याएं राष्ट्रीय एकता का प्रतीक। समाज ने प्रेम को भी इज्ज़त से जोड़ लिया। इज्ज़त की आड़ में समाज आपको हर अवैध चीज़ की अनुमति देता है। पत्नी इज्ज़त है लेकिन आप उसका रेप कर सकते हैं या उस पर रोज़ हाथ उठा कर अपने आप को ज़्यादा मर्द महसूस कर सकते हैं। लेकिन अगर आपको प्रेम हो गया तो आप असामाजिक हो गए। सामाजिक होने के लिए किसी की मदद करना, बच्चों को पढ़ाना, रक्तदान करना, परस्पर प्रेम से रहना अनिवार्य नहीं है, आपको बस प्रेम नहीं होना चाहिए किसी से।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट समाज की विकृत मानसिकता को दर्शाती है। भारत में प्रेम के नाम पर हत्या, जिसे हम अंग्रेज़ी में ऑनर किलिंग कहते हैं, उसमें 796 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। मध्य प्रदेश, गुजरात और उत्तरप्रदेश में प्रेम के लिए कोई जगह नहीं है। इस रिपोर्ट के आकड़ें पुलिस में दर्ज की गयी शिकायतों के आधार पर तैयार किये गए हैं। इस देश में ऐसे कई माँ-बाप हैं जिन्होंने अपनी झूठी शान के लिए अपने बच्चों की निर्मम हत्या कर दी और समाज ने उस पर चुप हो कर सहमति दी।

समाज का खून प्रेमियों पर ही क्यूं खौलता है? पेट्रोल की कीमत, महंगाई दर, किसान की आत्महत्या, पानी की किल्लत, ग्लोबल वार्मिंग, बेरोज़गारी, राजनितिक दोगलेपन पर क्यूं नहीं खौलता? मैं बताती हूं- गलती समाज की नहीं है, हमारी है कि हमने समाज के बनाये गए हर अनुचित नियमों को चुप हो कर समर्थन किया।

प्रेम को समाज के साथ हमने भी पाप का दर्ज़ा दे दिया। प्रेम पर कभी खुल कर बातचीत नहीं की, हम डरपोक हैं। डर था कि अगर खुल कर प्रेम जैसे आपत्तिजनक विषय पर बात की तो समाज क्या कहेगा? क्या सोचेगा? ताने मारेगा? हम धर्म और जात जैसी संवेदनशील विषयों पर अपनी राय देने से नहीं हिचकिचाते, क्यूंकि धर्म और जात पर राय रखना हमें बुद्धिजीवी बनाता है और प्रेम पर तो कोई राय हो भी नहीं सकती। हमने ही प्रेम को पाप बनाया और हत्या को सत्य।

प्रेम को बस प्रेम रहने देते हैं, सादा, कोई रंग नहीं चढ़ाते हैं सांस लेने देते हैं, गले लगने देते हैं, हंसने-रोने देते हैं। प्रेम अकेला काफी है इस समाज के सही निर्माण के लिए, हम पत्थर नहीं बनते हैं, हम प्रेम के पथिक बनते हैं।

बेहतर होगा हम प्रेम करना सीख लें, नफरत की आग में भारत, पाकिस्तान, सीरिया या यूं कहें कि पूरी दुनिया जल रही है। प्रेम कभी आंखों को नहीं चुभता। तो अब प्रेम कर लेते हैं, शायद उसके बाद ये दुनिया देखने लायक बचे।

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