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कोलकाता मेट्रो में कपल को पीटनेवाली भीड़ कल आपके बेडरूम तक पहुंच जायेगी!

पिछले दिनों कोलकाता में एक भयावह घटना हुई। देश में पहला मेट्रो होने का गौरव पानेवाले कोलकाता मेट्रो में कुछ सभ्य (?) लोगों ने एक युगल को इसलिए पीट दिया, कि वे एक दूसरे के बेहद करीब खड़े (संभव है कि दोनों एक दूसरे से सटकर खड़े रहे होंगे) थे।

जिस देश में इश्क के सैकड़ों किस्से लोकगीतों का हिस्सा हों, प्रेम कहानियां संस्कृति में रस-बस गयी हो, वहां होना तो यह चाहिए था कि हम उन्हें थोड़ा एकांत और दे देते….लेकिन नहीं।

दोनों के अलिंगन को गुनाह माना गया और उन पर लात-घूंसे बरसाये गये। घटना की जितनी लानत-मलानत करने वाले हैं उससे कहीं ज़्यादा इस घटना का (युगल की पिटाई) समर्थन करनेवाले आ गये।

मेरा करीब एक दशक कोलकाता में गुज़रा है। मैंने करीब चार साल तक लगातार मेट्रो में सफर किया है। मुझे याद नहीं आता कि कभी ऐसी घटना हुई हो।

कोलकाता व पश्चिम बंगाल वैसे भी खुलेपन के लिए जाना जाता है। खुलापन का मतलब अश्लीलता से नहीं आधुनिकता से है। यह खुलापन वहां के लोगों की बाचतीच, रहन-सहन, रिश्ते-नातों में साफ झलकता है।

उत्तर भारतीयों की तरह पश्चिम बंगाल में लड़कियां अपने परिवारवालों से छिपकर-डरकर प्रेम नहीं करती हैं और ना भागकर शादी। वे अपने प्रेमी को अपने माता-पिता से बकायदा मिलवाते हैं। प्रेमी का अपनी प्रेमिका के घर आना-जाना, खाना-पीना होता है।

…तो ऐसे शहर, ऐसे राज्य में केवल अालिंगन करते जोड़े की पिटाई कर देना कोई सामान्य घटना नहीं है। युगल को पीटकर अपना खुन्नस निकालनेवाले ये लोग कुछ-कुछ यूपी की योगी सरकार के रोमियो स्क्वॉड जैसे हैं जिन्हें प्रेम करता जोड़ा फूटी आंखों नहीं सुहाता है।

मुझे याद है, कुछ साल पहले की बात है। तब मैं कोलकाता में ही रहा करता था। एक रात एमजी रोड स्थित अपने दफ्तर से मैं मेट्रो से लौट रहा था।

मेट्रो ट्रेन के जिस डिब्बे में मैं सवार था, उसी में एक कपल भी था। रात को मेट्रो में बहुत कम लोग होते हैं। खैर…कपल बहुत धीमे से एक-दूसरे से बातें कर रहे थे और बीच-बीच में एक दूसरे का अलिंगन भी कर ले रहे थे। मेट्रो में सवार बाकी लोगों का ध्यान उस तरफ नहीं था, लेकिन एक बुज़ुर्ग लगातार उन्हें घूरे जा रहा था और बेहद नफरत के लहजे में उन्हें भला-बुरा कह रहा था।

मेट्रो के जतीन दास स्टेशन आते-आते उस बुज़ुर्ग की नफरत उपने सबसे ऊपरी स्तर पर पहुंच चुका था और उन्होंने लगभग हूटिंग शुरू कर दी थी। लिहाज़ा, उस युगल को जतीन दास मेट्रो स्टेशन पर उतर जाना पड़ा, मैं भी वहीं उतर गया। बुजुर्ग भी उतरे और दोनों के पीछे चलते-चलते हुए काफी भला-बुरा कहा। उस घटना को ‘मोरल गार्जियन’ के तैयार होने के पहले चरण के रूप में देखा जा सकता है।

बहरहाल, हम लौटते हैं मेट्रो में कपल से मारपीट की घटना की ओर। इस घटना का ज़िक्र हो रहा है, तो हमें बिहार के जहानाबाद में एक लड़की के साथ हुई बद्तमीज़ी की घटना को भी याद कर लेना चाहिए। जहानाबाद में दिनदहाड़े, बीच सड़क पर कुछ लड़कों ने एक लड़की के कपड़े उतारने की कोशिश की। लड़की मिन्नते करती रही कि भइया कपड़े क्यों उतार रहे हो, लेकिन उन्होंने एक ना सुनी।

इस घटना का अंत क्या हुआ, पता नहीं। लेकिन, इसका वीडियो वायरल हो गया, जिसके बिनाह पर पुलिस ने कुछ लड़कों को गिरफ्तार कर लिया।

वीडियो में लड़की की गुज़ारिश भरी बेबस आवाज़ और बद्तमीज़ी करते लड़कों के ठहाके दिल दहलानेवाले हैं, लेकिन इन आवाज़ों में वह आवाज़ कहीं नहीं है, जो लड़की के साथ खड़ा होता हो। यह संभव है कि जिस वक्त घटना हुई हो, आसपास लोग रहे होंगे। अगर नहीं भी रहे होंगे, तो सड़क से कुछ लोग गुज़र रहे होंगे। शायद वे मन को यह दिलासा देते हुए निकल गये होंगे कि इसमें अपना क्या जाता है!

दरअसल, मेट्रो में युगल की पिटाई व दिनदहाड़े होनेवाली छेड़छाड़ पर चुप्पी साध लेनेवाले लोगों की मानसिकता एक है। ये वही लोग हैं, जो पार्क में प्रेम कर रहे युगलों को पार्क की चाहरदीवारी से सटकर अलग-अलग एंगलों से देखते हैं, अकेली जा रही युवतियों को गंदी नज़रों से घूरते हैं और जब प्रेम करता कपल सामने पड़ जाये, तो सभ्य होने का स्वांग कर उन्हें पीटते हैं।

ये वे लोग हैं जिन्हें प्यार नहीं मिला। यही वजह है कि प्रेम करता हर युगल उनकी छाती पर मूंग दलता हुआ दिखता है, इसलिए वे उन्हें सबक सिखा देना चाहते हैं।

यह खतरनाक है। लेकिन, इससे भी खतरनाक है, समाज के एक बड़े वर्ग द्वारा इनकी स्वीकार्यता और सरकार की वैधता।

समाज में इनकी स्वीकार्यता और सरकार की वैधता से इनका मनोबल दिन-ओ-दिन बढ़ेगा। आज इन्होंने मेट्रो में पिटाई की है। कल वे आपके बेडरूम तक पहुंच जायेंगे। आज हम-आप अगर खामोश रह गये, तो कल यह खामोशी हमारी आदत बन जायेगी।

इससे पहले कि खामोशी आदत बन जाये, हमें विरोध करना होगा। पुरजोर तरीके से!

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