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कर्नाटक में BJP के शपथ ग्रहण की मिठाई काँग्रेस के लिए ज़्यादा मीठी क्यों है?

हारकर भी जीतने वाले को बाज़ीगर कहते हैं, यूं तो एक के बाद एक सफलता के इस दौर मे सियासत के बाज़ीगर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ही माने जा रहे हैं, लेकिन कर्नाटक चुनाव में सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है।

कर्नाटक चुनाव मे कॉंग्रेस हार तो गयी है, लेकिन कॉंग्रेसियों के मुताबिक सोनिया गांधी के एचडी कुमारस्वामी को किये गये एक फोन ने तीन शिकार किये हैं। मणिपुर, गोवा और मेघालय की बनाई हुई बीजेपी सरकार को एक झटके में जनता की नज़रों में नाजायज़ बना दिया है।

अब समर्थक हो या विरोधी वो यह कहने में विवश हैं कि कर्नाटक में भाजपा जायज़ है या फिर बाकी तीनों राज्यों में, और इस वक्त कर्नाटक की शपथ ग्रहण की मिठाई में भी बीजेपी नेताओं को कड़वाहट का एहसास हो रहा है। दूसरा निशाना है राज्यपालों का केन्द्र सरकार द्वारा समय-समय पर मनमुताबिक इस्तेमाल और यह हर सरकार में होता रहा है और राज्यपाल की नियुक्ति में अपने वफादारों को लाना ऐसा तो सारी केन्द्र सरकार करती आयी हैं।

लेकिन, इतने कर्तव्यनिष्ठ नेताओं को लाना कमाल की बात है, अब शायद कुछ लोग कहे कि यहां भी राज्यपाल ने निष्ठा तो दिखा दी है या कुछ का मत हो कि राज्यपाल ने संविधान अनुरूप कार्य किया, लेकिन यहां भी कॉंग्रेस ने एक ओर कुंआ तो दूसरी ओर खाई बना दी है। बीजेपी  के नेता अब या तो उन तीनों राज्यों के राज्यपालों को सही ठहराये या कर्नाटक के राज्यपाल के फैसले को सही साबित करे ये दुविधा की स्थिति अब उनके सामने है। ज़ाहिर है कॉंग्रेस करारी हार के बाद भी यह साबित करने पर अडिग है कि बीजेपी सत्ता लोभी पार्टी है और कुमारस्वामी के साथ ने सोनिया गांधी को यह मौका तुरन्त दे दिया है।

तीसरा शिकार माननीय सुप्रीम कोर्ट हुआ है जिसके चीफ जस्टिस के खिलाफ कॉंग्रेस महाभियोग ला चुकी है और उसे सरकार के हिसाब से चलने वाला साबित करना चाहती है। न्यायालय से अन्देशा था कि पिछले राज्यों के निर्णय के मुताबिक या तो वो इस सरकार को रोकता या फिर वो राज्यपाल के मुताबिक जाता। फिलहाल राज्यपाल को राहत देकर न्यायालय ने ये निर्णय देकर सही किया या गलत ये तो कहा नहीं जा सकता, लेकिन कॉंग्रेस ने कर्नाटक और गोवा या अलग-अलग राज्यों के लिये अलग निर्णय निकलवाकर न्यायालय को भी वहां लाकर खड़ा कर दिया है जहां पर सवाल उठ रहे हैं।

मोदी जी इस बार जीत तो गये हैं, लेकिन कॉंग्रेस के इस दांव से और जल्दबाज़ी में बिना बहुमत साबित किये हुए इस सरकार का शपथ ग्रहण होने से उनकी कर्तव्यनिष्ठा और साख पर थोड़ी आंच ज़रूर आयी है। कॉंग्रेस के लिये कर्नाटक में चुनाव बाद पाने के लिये कुछ नहीं था, लेकिन कुमारस्वामी को मोहरा बनाकर कर्नाटक चुनाव का शायद इससे अच्छा समापन वो कर ही नहीं सकती थी।

कॉंग्रेस जहां तकरीबन सारे राज्य खो चुकी है वहां ये लगंड़ी सरकार बनाना ही शायद उसका उद्देशय नहीं था और सरकार जिसकी भी बने सोनिया गांधी ने मेघालय, गोवा और मणिपुर का फाइनल मैच कर्नाटक में खेल लिया है और सच में चुनाव हारने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी को घेरने के लिये शायद ये आखिरी दांव अच्छा खेला है।

 

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