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चलो फिर से शुरू करें खत लिखना, जिसमें हो किस्सों की गठरी और दिल की बात

“खोई हुई विधा” कहूं या फिर लुप्त होती हुई, जिसमें ना जाने कितने ख्वाब बुने गए, ना जाने कितने जज़्बात बयां किये गए। तमाम फरमाइशें और गिले-शिकवे भी दर्ज हुए, किसी का प्रेम परवान चढ़ा तो किसी की आह भी समेटी गई। जिसका इंतज़ार खुशी देता था और कभी-कभी दुख भी। अपनों से दूर होने पर वो अपने दौर की सबसे सच्ची सहेली थी, बड़ों का प्यार-दुलार थी और नसीहत भी। प्रिय की गुप्तचर भी थी।  स्याही में घुले हुए प्यार की खुशबू थी, जो लाती थी सबके सन्देश, और इन सबसे खास मां के द्वारा बचाये हुए कुछ पैसे अपने अंदर सबसे छुपाकर। जो लाती थी मां के हाथों बने लड्डू और अचार की खुशबू।

आकाशवाणी के स्टूडियो में जब वो मेरे हाथों में होती तो लोगों (श्रोताओं) की फरमाइशें, तरह- बेतरह के अंदाज़ में और उनका ढेर सारा प्यार कागज़ के टुकड़ों में सिमटा हुआ होता। एक रबड़ से बंधी गठरी में मेरी नज़रों के सामने से जब-जब वो गुज़री तब-तब ज़हन में ये ख़याल आया।

ज़िन्दगी के हर जज़्बात को समेटे आशाओं की गठरी बनी वो हमारी विधा जाने कहां खो गई। उसका नाम जानते हो क्या है? जी हां, मैं ‘पत्र विधा’ के बारे में बात कर रही हूं।

अब कोई नहीं लिखता पत्र, ना ही कोई इंतज़ार करता है। और हमारी नई पौध यानि नई पीढ़ी को तो शायद ही लिखना आता हो पत्र और पत्र की वो भाषा जो पहले शब्द से आखिरी शब्द तक बांधती थी मन को। कितनों ने देखी भी नहीं हमारी वो नीले रंग की अंतरदेशी और पीले पोस्टकार्ड जिसके लिए इंतज़ार होता था कभी हर सप्ताह, हर माह और हर साल।

दिल की बात, दिल के एहसास, किस्सों की गठरी, कुशलक्षेम का अनोखा अंदाज़ पहुंचाए दिल से दिल तक मन के ज़ज़्बात। चिट्ठी आई है आई है वतन से…लिखे जो खत तुझे…फूल तुम्हें भेजा है खत में…कबूतर जा जा जा…खत लिख दो सजनवा के नाम बाबू…हमने सनम को खत लिखा…और चिट्ठी ना कोई संदेश… इन सभी गानों ने खत के अलग एहसास से परिचित कराया है लोगों को। चलो फिर से शुरू करें लिखना अपनों के नाम खत।

आओ मिलकर लिखें बेनाम पत्र और रूबरू करवाएं पत्र विधा से, इंटरनेट की दुनिया से जुड़ी नई पीढ़ी को भी तो पता चले कि पत्र लिखना और पढ़ना भी एक कला है और इस कला से जुड़ना कितना रोचक भी है।

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