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अस्थमा पेशेंट होकर भी एवरेस्ट चढ़ जाने की ‘गौरव’ गाथा

देश के सबसे लम्बे इंफोटेनमेंट फेस्टिवल जयपुर समर फेस्ट का छठा दिन। अपेक्स इंटरनेशनल स्कूल के ऑडिटोरियम में खासा उथल-पुथल का माहौल था। युवाओं से लेकर संचालकों तक, सबको बड़ी बेसब्री से इंतज़ार था आज के स्पीकर, मशहूर पर्वतारोही और लाइफ कोच गौरव शर्मा के आगमन का।

साहस और शौर्य की अनगिनत कहानियों के प्रणेता को सुनने लिए सब अपनी-अपनी तैयारियों को पूरा करने में लगे हुए थे और तभी कान के पिछले हिस्से में ऑडिटोरियम के बड़े से गेट खुलने की आवाज़ आती है। गेट खुलने के पश्चात जिस शख्सियत का आगमन होता है उनका नाम है गौरव शर्मा। बेहद सामान्य कद काठी वाले व्यक्ति के चहेरे पर इतना तेज़ और रक्त में शौर्य दौड़ता होगा इसका अंदाज़ा उनकी कहानी जाने बिना नहीं लगाया जा सकता। जिस उम्र में हम मोटरसाइकिल चलाना सीखने की चाहत रखते हैं, उस उम्र में कोई व्यक्ति यदि साइकिल से देश के सबसे गर्म इलाकों से देश के सबसे ठन्डे इलाकों का सफर तय कर ले तो उसे आप क्या कहेंगे ? गौरव का गौरवान्वित और रोमांचित कर देने वाला पहला सफर यही था।

उन्होंने राजस्थान के चूरू से लेकर लद्दाख तक साइकिल का सफर तय किया मात्र सोलह वर्ष की उम्र में। और वहीं से शुरू हुआ रोमांच का नया सफरनाम जिसका एक अध्याय माउंट एवेरेस्ट भी है। 20 मई 2009 को राजस्थान के पहले सिविलियन और विश्व के पहले अस्थमा के पेशेंट का एवेरेस्ट फतेह करना पूरे विश्व के लिए एक नया अनुभव था साथ ही सफलता का नया कीर्तिमान भी।

श्रोताओं से बात करते हुए गौरव कहते हैं ,जीवन में फैसले सही या गलत नहीं होते बल्कि अपने हर फैसले को सही साबित करने की चाह व्यक्ति को अपने चरम पर ले जाती है। एवेरस्ट की चोटी पर अकेला खड़ा वह व्यक्ति जिसकी सफलता पर ताली बजाने वाला कोई नहीं होता, जब अपने प्रदेश की मिट्टी का मिलन विश्व की सबसे विशाल और ऊंची चोटी से करवाता है तो फिर पीछे देखने को कुछ नहीं बचता। और सामने होता है ढेर सारा सम्मान, शौर्य और प्रोत्साहन की नयी मिसाल।

इसी मिसाल से सराबोर कहानियों को साझा किया गौरव शर्मा ने। अपनी तरह के पहले फेस्टिवल, जयपुर समर फेस्ट में इसी तरह का माहौल रोज़ देखने को मिल सकता है जहा बातें होती हैं अपने आस-पास और अपने लोगों को और अच्छे से समझने की।

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