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“पटना के कोचिंग क्लास में रमज़ान का वो दूसरा दिन”

रमज़ान का वक़्त हैं एक स्टोरी ज़रूर शेयर करूंगा जो मुझसे जुड़ी हुई हैं हो सके तो अंत तक पढ़ियेगा।

साल 2008-2009 मैं 10वी कक्षा में था फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स में बेहद कमज़ोर। तो फिजिक्स की क्लास आर पी एस स्कूल, पटना के वर्तमान प्रिंसिपल और पटना के फिजिक्स के जाने माने टीचर श्री डि.के.सिंह सर के यहां करता था, साथ मे 2 दोस्त सहपाठी दिव्यांशु झा और अंजली सिंह भी साथ होते थे।

क्लास शाम के 5-7 चलती इसी बीच मगरिब का वक्त भी हो जाता था। पूरे साल तो दिक्कत नहीं होती थी लेकिन रमज़ान के महीने में थोड़ी परेशानी लाज़मी थीं। अम्मी ने कहा कि सर से बोलकर वक्त बदलवा लो मैंने कहा नहीं अम्मी सर हमें इतना वक्त दे रहे हैं कम है क्या इतने बड़े टीचर हैं।

खैर रमज़ान का दूसरा दिन था मैं रोज़ा खोलने के लिए साथ में खजूर ले गया। अज़ान हो गई पर हिम्मत नहीं हुई कि सर से 5 मिनट का ब्रेक मांगे। हां सर 5 मिनट का ब्रेक लेते थे 1 घंटे के पूरे होने पर बीच में ताकि वो चाय पी लें इस बीच हमनें रोज़ा खोला इत्तेफाक ऐसा था कि ठीक अज़ान के बाद ही उन्होंने ब्रेक लिया।

इस बात को उन्होंने देखते हुए फटाक से पूछा “रोज़ा में हो न बच्चा” मैंने हां में सर हिलाया । फिर क्या था सर ने तुरंत मेरे लिए ठंडा शर्बत मंगवाया और पूछा और कुछ चाहिए? मैंने कहा नहीं सर। उस दिन मैं बहुत भावुक हुआ और उसी रोज़ मेरे बोले बग़ैर सर ने कहा कि बोलो तो ट्यूशन का वक्त बदल दे?

मैंने कहा सर अंजलि और दिव्यांशु बाबा को दिक्कत होगी उन्हें किसी और टीचर से भी पढ़ना होता था। जिनसे वो पढ़ते थे वो दोनों ही टीचर डी के सर के स्कूल में सहयोगी मित्र और टीचर थे एक थे जयराम सर दूसरे का नाम याद नहीं शायद जी एस शर्मा था।

डी के सर ने पहले अपना वक़्त बदला जो 3:30-5:30 हुआ और बाक़ी दोनों टीचर्स को भी अपने वक़त को बदलने को कह दिया।
अब गौर कीजिए ये तीनों टीचर्स एक धर्म के थे मेरे दोनों सहपाठी भी एक धर्म के थे। फिर भी मेरे मज़हब से उन्हें इतनी आस्था थी की पूछिये मत और महज़ 1 बच्चे के लिए उन्होंने ऐसा किया। लेकिन अब ये कैसा दौर शुरू हो गया है जब हम महज़ एक चश्में से एक दूसरे को देखने लगे हैं। मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिंदी है हम वतन हैं हिंदुस्तान हमारा।

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