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युवाओं को सपने बेच अपने जाल में फंसा रही हैं नेटवर्क कंपनियां

लाखों की गाड़ी, करोड़ों का घर, घर नहीं महल कहिये सर! दुनिया के हर कोने में घूमेंगे, बे-हिसाब पैसा होगा, इज्ज़त होगी, शोहरत होगी। ऐसे सपने 100-150 युवक-युवतियों के बीच हर रविवार को महज़ 15000 रूपये  में बेचे जा रहे हैं।

पैसे और विलासिता भरी ज़िन्दगी आज हर किसी की चाहत है। पैसे की दीवानगी और ज़रूरत, युवा-अवस्था में और भी बढ़ जाती है, और इस ज़रूरत को पूरा करने के लिए युवा सरल उपाय ढूंढना शुरू कर देते हैं। कुछ ऐसी ही होड़ देखने को मिल रही है झारखण्ड के हजारीबाग ज़िले में। झारखण्ड का यह ज़िला शैक्षणिक हब बनने की ओर अग्रसर है और काफी हद तक बन भी चुका है। फलस्वरूप यहां भारी तादाद में विद्यार्थी हैं। यहां पढ़ने आये अधिकतम युवक ग्रामीण क्षेत्र और मध्यम-वर्गीय परिवार से संबंध रखते हैं।

इन युवाओं के बीच ढेर सारे पैसे की लालच देकर कपटी नेटवर्क कम्पनियां अपना पैर पसार रही है। Motivational-events के नाम पर पढ़ने आये बच्चों को अपने पास बुलाते हैं और फिर झूठी गाड़ी और घर की तस्वीर दिखाकर अपने जाल में युवाओं को फांसने के साथ-साथ 15000 हज़ार जैसी मोटी रकम वसूलते हैं। यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती। 15000 रुपये में सदस्यता लिए हर विद्यार्थी को कंपनी, दो और लोगों को सदस्यता दिलाने को कहती है ताकि ली गयी सदस्यता वैध रहे और उन्हें कमीशन मिल सके।

और फिर उन दोनों को अपनी सदस्यता वैध रखने के लिए और दो-दो लोगों को कंपनी से जोड़ना पड़ेगा। ऐसा नहीं किये जाने पर सदस्यता खत्म हो जाती और 15000 रूपये जैसी मोटी रकम डूब जाती है। एक बार सदस्यता लेने के बाद किसी भी हालत में पैसे की वापसी नहीं हो सकती है।

आसान शब्दों में कहा समझा जाये तो इसका गणित यह कहता है कि एक इंसान मुझे 45000 रूपये ला कर दे तो उसे कुछ सौ रूपये कमीशन के तौर पर मिलेंगे। इन कंपनियों का मुख्य टारगेट युवा ही होते हैं और इन युवाओं में मुख्यतः विद्यार्थी वर्ग। युवा अपने गांव से निकल कर शहर आते हैं ताकि उन्हें अच्छी शिक्षा मिल सके और ऐसे में फ्रॉड कंपनी के जाल में फंसना निश्चित रूप से उनके भटकाव का कारण बन जाता है।

हजारीबाग पढ़ने आये संजय यादव जो कभी नेटवर्क कंपनी से जुड़े हुए थे, उनसे इस बारे बात करने पर नेटवर्क कंपनी के लिए उनकी ज़ुबान से निकलती गाली और गुस्सा, इनकी जालसाज़ी और ढकोसलेपन का प्रमाण देती है। उन्होंने बताया कि उनसे सीनियर्स कहीं भी कभी भी उन्हें मीटिंग के नाम पर बुलाते थे और उनपर दूसरों को जोड़ने का दवाब बनाते थे। यह भी बताया कि लगायी गई 15000 की राशि को वापस पाने के लिए वो कई लोगों को जोड़ने के लिए हर वक्त प्रयासरत रहें जिसका सीधा असर उनकी पढ़ाई पर पड़ा और वो अच्छे अंको से परीक्षा पास नहीं हो पाए। ऐसे और भी कई लोग हैं जो कंपनी की जालसाज़ी के शिकार हुए हैं परन्तु इनकी शिकायत करने के बजाय चुप रहना बेहतर समझते है|

कई बार यह मामला पैसे डूबने तक ही सीमित ना रह कर डिप्रेशन, चोरी तक पहुंच जाती है। इन कंपनी में युवा अपने सहपाठी को ही जोड़ते हैं, जिनके पैसे डूब जाने से एक-दूसरे का विश्वास खो बैठते हैं और दोनों के बीच तनाव की स्थिति भी पैदा हो जाती है। यह तनाव कभी-कभी संगीन अापराधिक मामले का भी रूप ले लेती है, क्यूंकि पढ़ने आये युवक ज़्यादातर मध्यम -वर्ग के होते हैं, 15000 रूपये उनके साल भर के रूम का किराया होता है, ऐसे में उन पैसों का डूब जाना बहुत ही पीड़ादायी होता है।

हमें ज़रूत है सचेत होने की, जागरूक होने की। इन विषयों पर अपने से बड़ों से विचार विमर्श तथा उनका मार्गदर्शन आवश्यक है। इससे पहले की यह हमारे समाज में अपनी जड़ें जमा ले, हमें इस विषय पर ध्यान देने की ज़रूरत है।

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