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बिहार के सुशासन को बलात्कार की घटना मामूली यौन हिंसा क्यों लगती है?

Patna: Bihar Chief Minister Nitish Kumar speaks at the closing program of Physiotherapy & Occupational Therapy week at Bihar College of Physiotherapy & Occupational Therapy in Patna on Sunday. PTI Photo (PTI9_11_2016_000097A)

नॉन-परफोर्मिंग एसेट जब बैंकों में बहुत अधिक हो जाती तो उस विषम स्थिति से निकलने के लिए उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ती है। जब देश और राज्य की सत्ता और शासन प्रणाली नॉन-परफोर्मिंग एसेट हो तो इनकी काहिलपन का खामियाज़ा आम लोगों को भुगतना पड़ता है। किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए सबसे कठिन स्थिति होती है जब सत्ता निष्ठुर और हमलावर हो जाये।

अभी बिहार इसी परिस्थिति का सामना कर रहा है। बिहार में जनता लाचार है और शासन व्यवस्था हमलावर हो रही है। विपक्ष अपने राजकुमार के नींद से जागने का इंतज़ार कर रहा है, और राजकुमार इस इंतज़ार में है कि इस स्थिति में और कोई विकल्प न होने का फायदा उन्हें ही मिलेगा। इसलिए राजकुमार बिहार में दलित, अल्पसंख्यकों और महिलाओं पर लगातार बढ़ते हमले पर अपनी तीव्र प्रतिक्रिया देकर विपक्ष होने का फर्ज़ नहीं निभाते। हां कभी कभार जनादेश के अपमान की यात्रा निकालते हैं और कुछ नहीं।

बिहार के मुखिया ने सुशासन बाबू वाली छवि को बचाने के लिए पूरा पुलिस और प्रशासनिक महकमा जिस प्रकार से लगाया हुआ है, उससे लोगों की कठिनाई बढ़नी तो लाज़मी है। लेकिन जिस प्रकार से बिहार में महिलाओं और दलितों पर हो रहे अत्याचार की रिपोर्टिंग से रोका जा रहा है या तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है वह इस तस्वीर को और भयावह बना रही है। मीडिया एवं राज्य के अंदर स्वतंत्र आवाज़ों को दबाने की प्रक्रिया से न्याय पाने की उम्मीद और धुंधली हो रही है। इसका सबसे ताजा उदहारण है जहानाबाद में एक दलित नाबालिग बच्ची के साथ हुई सामूहिक बलात्कार एवं उस केस के लीपा-पोती में प्रशासन की भूमिका।

जहानाबाद में एक लड़की के साथ लड़कों द्वारा सामूहिक रूप से यौन उत्पीड़न का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद सबके सामने आया। पुलिस वाले सामाजिक कार्यकार्ताओं को लड़की से जल्दी मुलाक़ात भी नहीं करने दे रहे थें। सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक दल जिसमें सुधा वर्गीज़ एवं मिथिलेश यादव थे 05 मई 2018 को लड़की से मिलने पहुंचे तो लड़की के अभिभावक के कहने के बावजूद, ऊपर से आदेश का हवाला देकर पुलिस ने इन्हें लड़की से मिलने से रोका लेकिन आदेश की कॉपी की मांग करने और अपने आला अधिकारी से बात कराने के लिए कहने पर पुलिस ने दल के सदस्यों को लड़की से मिलने दिया । इसके बाद इस दल के महिला सदस्यों ने लड़की से मुलाकात की ।

जांच दल के सदस्यों एवं इनके द्वारा साझा किये गए रिपोर्ट के अनुसार लड़की को सुरक्षा के नाम पर तकरीबन नज़रबंद कर दिया गया था। लड़की ने बताया कि उसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ है और उसने जो बयान दर्ज कराया है, उसमें उसने बलात्कार की बात कही है। लेकिन पुलिस ने बयान में सामूहिक बलात्कार की घटना का ज़िक्र नहीं किया। उसकी मेडिकल जांच 5 दिन बाद करवाई गयी। पुलिस महानिदेशक ने स्वयं यह बात कही की अगर लड़की के पास इस प्रकार से पुलिस रहेगी तो उसकी मनोस्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ेगा और वह सामान्य नहीं हो पायेगी। लेकिन पुलिस नहीं हटाई गई और लड़की को उसी स्थिति में रखा गया। साथ ही पुलिस इसे सामूहिक बलात्कार के घटना को ना मानने पर अमादा रही।

कोई कार्यवाई न होता देख जहानाबाद के नगर समाज एवं राज्य के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रशासन के रवैया के खिलाफ एक मार्च निकालने का निर्णय किया। महिलाएं रैली लेकर समाहरणालय पहुंची और उन्होंने जिलाधिकारी से मिलने की मांग की ताकि अपनी बात रख सके लेकिन वे नहीं मिले। आमतौर पर जिलाधिकारी लोगों से मिलते हैं और उनकी मांगों को सुनते भी हैं लेकिन सुशासन में पदाधिकारी आम लोगों से नहीं मिलते। इतना ही नहीं प्रशासन के काम में बाधा पहुंचाने के लिए जांच दल के सदस्यों को नामजद करते हुए प्रशासन द्वारा मुकदमा दायर कर दिया गया। संदेश साफ है कि कोई भी पहल जिससे राज्य के मुखिया की छवि खराब होती है उसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।

अखबारों में यह खबर आई कि आला पुलिस अधिकारी स्वयं इस मामले को देख रहे हैं और दोषियों को गिरफ्तार किया गया है। इतना कुछ सिर्फ यह दिखाने के लिए कि बिहार में शासन व्यवस्था दुरुस्त है और ऐसे मामलों में कोई कोताही नही बरती जाएगी। पुलिस ने अपनी पीठ खुद थपथपाई और मीडिया ने भी इसका खूब महिमामंडन किया। लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह थी कि सामूहिक बलात्कार के मामले को छिपा कर पुलिस आरोपियों की भी मदद कर रही थी और राज्य के मुखिया के छवि को बचाने की कोशिश भी । यह भी बताना ज़रुरी है कि इसके बाद फिर गया जिले में दो वीडियो वायरल हुआ है और पटना में ही कई घटनाएं सामने आई हैं सामूहिक बलात्कार और उसके बाद हत्या की।

बिहार में अब न तो सुशासन है और न ही महिलाओं के हक की बातें क्योंकि जहां हर रोज़ लड़कियां और महिलाएं अपनी इज्ज़त बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं वहां महिला सशक्तिकरण की बात बेमानी लगती है। विकास की चिड़िया तो पहले ही फुर्र हो चुकी थी। यह तो भविष्य के गर्भ में है कि देश के बैंक अपने नॉन-परफोर्मिंग एसेट से और बिहार की जनता अपने नॉन-परफोर्मिंग मुखिया से कैसे निपटती है।

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