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CBCS प्रणाली से परेशान गढ़वाल के स्टूडेंट्स

लम्बे इंतज़ार के बाद गढ़वाल विवि (श्रीनगर परिसर)  में बी ए/ बी.एससी 1, 3, 5 सेमेस्टरों का परिणाम जारी हो चुका है। जैसे ही छात्र साथियों को सूचना हुई साथियों के कॉल, मैसेज आने शुरू हो गए। अधिकतर साथी अपने परिणामों से असंतुष्ट हैं। छात्र साथियों  का कहना है कि उनकी उत्तर पुस्तिकाएं सही से नहीं जांच की गयी तथा उनके अंको में फेरबदल हुई है। ऐसा CBCS पाठ्यक्रम लागू होने के बाद पहली दफा सुनने को नहीं मिला।

ऐसा हर बार छात्र साथी परिणाम जारी होने पर कहते रहे हैं, सामान्य तौर पर परीक्षाओं में कम ज़्यादा अंकों का आना छात्र के मेहनत के समानुपाती माना जाता रहा है, और मैं भी इस बात में सहमति रखता हूं लेकिन अगर किसी एक दो छात्र साथी से ये बात सुनता और एक बार ही सुनता तो शायद मैं भी आपकी ही तरह इस बात को यहीं खत्म समझता लेकिन ऐसा हर बार होता आया है और इसकी कुछ वजहें भी हैं जो सवाल करती हैं विवि प्रशासन की कार्य प्रणाली पर।

जब विवि के पास पर्याप्त संसाधन नहीं थे तो CBCS क्यों लागू किया गया? गौरतलब हो कि गढ़वाल विवि में 2015 से नयी पाठ्यप्रणाली CBCS लागू है, जो आज भी विवि के लिए गले की हड्डी बनी हुई है आये दिन CBCS की आड़ में नये-नये नियम बनते और निष्क्रिय होते देखे जा सकते हैं।

इस बात को एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं – 2015 में जब यह पाठ्यप्रणाली विवि में पहुंची तो सभी से अंजान और रहस्यमयी थी। छात्र तो छात्र शिक्षक, प्रशासनिक कर्मचारी भी इसे सीधे हाथ नहीं लेते थे। इसको ऐसे बताया गया कि यह बिलकुल उस जादुई चिराग जैसा है जिसे रगड़ने पर जिन आता है और आपको आपकी मनमुराद पूरा करने का अवसर देता है लेकिन ये कोई सही से नहीं जानता कि इसको रगड़ना कैसे है, कोई सर की ओर से कहता कोई पाय की ओर से तो कोई उल्टा करके करने को कहता। इन प्रयोगों के परिणाम स्वरूप वो जिन मसाण बनके 3 सालों (6सेममेस्टरों) से छात्रों -शिक्षकों-कर्मचारियों को परेशान कर रहा है।

सबसे नीचे 2015 बैच के साथी थे जिनके पास न पोथी थी न पातड़ी न डॉंरा न थकुली (पाठ्य सामग्रियों का आभाव), जैसे तैसे ठेलमठेला कर दी और 2016 व 2017 के बैच का भी यही हाल है। पर अब सवाल यह है कि जिस CBCS की आड़ में छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है वो अपनी बुनियादी संसाधनों की प्राप्ति कब करेगा और कैसे करेगा?

कम से कम गढ़वाल विवि में जहां छात्रों की संख्या प्रति वर्ष बढ़ती ही जा रही है पर ना तो शिक्षकों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है ना ही लेक्चर हॉल, ना ही लैब, ना ही हॉस्टल, ना ही लेक्चरों में जहां 60 प्रति सेममेस्टर व्याख्यान तय हैं वहां 10-15 में निपटारा, लैब में बिजली न होने के बहाने प्रयोग ऐसी निपटाना, पूरा सेमेस्टर परीक्षा हॉल में गुज़र गया लेकिन छात्रों की स्थिति ऐसी हो चुकी है कि ना हाथ में डिग्री ना कोई हुनर ना कोई नौकरी।

ऐसी शिक्षा के क्या मायने जो आपको ना तो रोज़गार योग्य बना सके ना आपके बौद्धिक स्तर में परिवर्तन ला सके? तो क्या आज डिग्री लेना मात्र हमारा उद्देश्य बन चुका है? या हमें ऐसा बनने को मजबूर किया जा रहा है? लगातार होते शिक्षा के बाज़ारीकरण से गरीब, मध्यम वर्गीय युवाओं के भविष्य को असुरक्षित किया जा रहा है ताकि पूंजीपति, उच्च कुलीन वर्ग के शोषण की रीत बनी रहे और गरीब, मध्यम वर्गीय युवाओं को अपने निम्नतर स्तर पर बनाये रखा जा सके। उनको सर्वांगिण विकास और समान अवसरों से वंचित रखा जा सके।

छात्र-युवा साथियों अब वक्त है जब हमें एक होना है और इस शोषण के विरोध में आवाज़ बुलंद करनी है। अगर आप ये सोचते हैं कि मेरा जैसे तैसे निपट गया मुझे क्या, तो साथियों ये मत भूलिए आपके लिए प्रतिस्पर्धा अब शुरू हुई है आप इस प्रतिस्पर्धा में कहां हैं और आपकी सफलता कितनी सम्भव है । #CBCS #HNBGU #ना_डिग्री_ना_नॉकरी_अहसानों_की_टोकरी।

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