Site icon Youth Ki Awaaz

हर बात पर सवाल करने वाली बचपन की मासूमियत हम क्यों खो देते हैं?

क्यूं चलती है पवन? क्यूं झूमे है गगन? क्यूं मचलता है मन? न तुम जानो ना हम”  

सभी के दिलों मे एक समय रहा ये गाना, आज पुनः उस बचपन की याद दिलाता चला गया जब सचमुच ये सारे सवाल मन को घेरे रहते थे। मुझे याद है कि किस तरह पापा को मेरे ऊलजलूल सवाल परेशान कर दिया करते थे, उनका थक कर काम से घर लौटाना और मेरा धीमे से सवालों का पिटारा खोल देना, मम्मी तो भाग ही खड़ी होती थीं।

बालपन के गुज़रते साथ ही कुछ सवालों के जवाब मिलते गए और नए दिलचस्प सवाल मन को घेरने लगे, कुछ के जवाब घरवालों से मिले कुछ के दोस्तों से और कुछ पर तो आज भी ज़ोरदार बहस हो जाती है। मगर आज का ये दौर उस वक्त से काफी अलग सा लगने लगा है। हमारा बचपन हमें बेझिझक कुछ भी पूछने की आज़ादी देता था, सवाल खड़े करने का हक महसूस कराता था, लेकिन गुज़रते वक्त के साथ हमने खुद से ये आज़ादी छीन सी ली है। सवाल तो आज भी हैं मगर उन्हें आगे रखने की ज़रूरत महसूस करना हम भूल गए हैं। 

एक रचनात्मक सोच के लिए महत्वपूर्ण है कि सवाल पूछने की प्रक्रिया को कायम रखा जाए। सवाल पूछने की प्रक्रिया से एक धारणा पैदा होती है और इन धारणाओं के पैदा होने से सही-गलत मे फर्क महसूस होने लगता है। यही एहसास आपको हिम्मत देता है गलत के खिलाफ बोलने की उससे लड़ने की और उसे सुधारने की।

जीवन में बहुत से ऐसे मोड़ आते हैं जब हम चुप रह कर चलन को ठीक मान उसके विपरीत सोच रखने की हिम्मत खो बैठते हैं। कल उस वक़्त पर “शायद” लगा कर पछताने से बेहतर है, उसी वक्त अपने अंदर के बेझिझक बच्चे को जगा कर सवाल करना, कि क्यूँ?  ये क्यूँ का बोझ किसी के भी उपर रखा जा सकता है  घर मे माँ-बाप के ऊपर, विद्यालयों में शिक्षकों के ऊपर, सरकारों के ऊपर संस्थाओं के ऊपर और खुद के भी ऊपर। 

आज हमारे लिए महत्वपूर्ण है कि हम चाल-चलन की इन बेड़ियों से निकल कर अपनी खुद की सोच को विकसीत करें। 

एक एसा व्यक्ति जो वर्षों पुरानी रीतियों मे बंधकर, चलन को बिना सवाल किए, बिना प्रश्न किए, बिना विरोध किए स्वीकृत कर ले वह जीवित नहीं मृत है, ऐसा जीवन किसी के लिए प्रेरणा नहीं बल्कि चेतावनी मात्र रह जाता है।

सवाल कुछ भी हो कैसे भी हो उनका पूछा जाना ज़रूरी है, ज़रूरत है बचपन के उसी रिवाज़ को फिर एक बार शुरू करने की, उसी बेफिक्र अंदाज़ में पूछने की…

“माँ ये चाँद सचमुच हमारा मामा है क्या..??”

Exit mobile version