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मेरे नाम के दिलचस्प किस्से, जब मुझे इति (ITI) से आईटीआई बना दिया जाता है

इंसान को अपने नाम से खासा प्यार होता है। अपने नाम का गलत उच्चारण सुनते ही आपके कान खड़े हो जाते हैं, कनपट्टी का दरवाज़ा खुल जाता है और पल भर में ही आपकी भौंहे यूं तन जाती हैं, मानों आज तो सामने वाला गया। यकीन मानिए ये सारा रिएक्शन इतनी तेज़ी से होता है कि आदमी को पता भी नहीं चलता कि आखिर हुआ क्या ?

वैसे, कई मौके पर आपको मजबूरन एक स्माइल भी पास करनी पड़ती है, लेकिन उस स्माइल के पीछे एक साइलेंट आवाज़ गूंज रही होती है, “अबे तेरी तो…” ! यह तो उच्चारण की बात हुई, अगर गलती से किसी ने आपके नाम की स्पेलिंग में कुछ गड़बड़ कर दी तो (वो गड़बड़ एक मात्रा की या नुख्ते की ही क्यों ना हो) आप उस वक्त सबसे बड़े भाषा विशेषज्ञ बन जाते हैं।

खैर, आप भी सोच रहे होंगे कि मैं ये कौन सा मुद्दा लेकर बैठ गई हूं। दरअसल, मेरी तो ये रोज़ की ही कहानी है। लोग तो अपने नाम के गलत उच्चारण से परेशान रहते हैं, लेकिन मेरे नाम की स्पेलिंग ही कई बार लोगों को समझ में नहीं आती है। पूरी मासूमियत के साथ मेरे नाम ‘इति’ की जगह नाम की पूरी स्पेलिंग ही पढ़ ली जाती है, मतलब ‘इति’ की जगह मैं बन जाती हूं ‘आईटीआई…’

इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट वाली आईटीआई या फिर इति वाली आईटीआई ?

एक दफा तो हद ही हो गई। मैं एक पेंटिंग कॉम्पिटीशन में गई थीं, वहां कॉम्पिटीशन कंडक्ट करा रहीं मैडम ने नाम के कॉलम में मेरा नाम पढ़कर कहा- “बेटा यहां अपना नाम लिखना है ना कि कॉलेज का नाम।” दरअसल, उन्होंने मेरा नाम आईटीआई यानि इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (जिसे जूनियर इंजीनियरिंग कोर्स के नाम से भी जाना जाता है) समझ लिया था और उन्हें लगा था कि मैं वहां कि स्टूडेंट हूं। गलती से अपने नाम के कॉलम की जगह मैंने कॉलेज का नाम लिख दिया है। खैर, मैं उन्हें भी पूरी तरह से दोषी नहीं कहूंगी। अब कॉलम में तो आपको कैपिटल लेटर में नाम लिखने का इंस्ट्रक्शन होता है। कैपिटल में तो कोई भी ITI को आईटीआई ही समझेगा।

खैर, मेरे नाम को लेकर इस तरह के कई दिलचस्प किस्से हैं, जिसने कभी तो मेरे मूड को एकदम से रिवेलियन बना दिया तो कभी मुझे गुदगुदाने का काम भी किया है। इससे इतर कई ऐसे भी किस्से हैं जिसने मेरा काफी फायदा भी किया है। दरअसल, अभी तक मेरे जीवन के ज़्यादातर इंटव्यू में मुझसे सबसे पहला सवाल मेरे नाम के बारे में ही किया गया है। कई बार तो आधा इंटरव्यू का इसमय मेरे नाम के डिस्कशन में ही बीत गया। अब इसे फायदा नहीं तो और क्या कहेंगे।

अब मैं यहां बात आगे बढ़ाने से पहले जिन्हें मेरे नाम का मतलब नहीं पता, उन्हें अपने नाम का अर्थ बता देना मुनासिब समझती हूं। ‘इति’ संस्कृत का शब्द है। जिसका मतलब होता है ‘अंत’/’समाप्त’। “इति श्री रेवा खंडे” – आपने संस्कृत में ये श्लोक ज़रूर सुना होगा। या फिर पुरानी फिल्मों, एकदम ब्लैक एंड वाइट टाइम वाली फिल्मों में फिल्म खत्म होने के बाद स्क्रीन पर लिखे देखा होगा – ‘इति’, यानि फिल्म समाप्त हो गई। या और नहीं तो इतिहास में ‘इति’ तो आप पढ़ते ही हैं। इति यानि जो बीत चुका है और इतिहास का मतलब बीते हुए कल की कहानी।

अब आप सोच रहे होंगे कि भला ऐसा नाम कौन रखता है, जिसका मतलब ही अंत हो। दरअसल, मेरे घर में मैं अपनी तीनों बहनों में सबसे छोटी हूं, अपने घर की सबसे छोटी सदस्या। परिवार में संतान के जनमने का सिलसिला मुझपर ही आकर खत्म होता है इसलिए मेरे पापा ने मेरा नाम ‘इति’ रखा।

मैं वापस आती हूं अपने नाम के अजूबे किस्सों पर। मेरा नाम लोगों के लिए इतना विचित्र है इस बात का सबसे ज़्यादा एहसास मुझे पटना से दिल्ली आने के बाद हुआ। जामिया मिल्लिया इस्लामिया में कई लोगों ने मेरा नाम आईटीआई ही समझा था। मेरी एक दोस्त ने मुझे बाद में बताया कि हमने लिस्ट में जब नाम देखा तो हमें लगा कि कोई ‘आईटीआई शरण’ है। हमें बड़ा अजीब लगा कि भला ऐसा भी क्या नाम।

एक दोस्त ने तो मुझे खासकर, आईटीआई ही बुलाना शुरू कर दिया था और उसके बाद मैं लगभग पूरी क्लास के लिए इति से आईटीआई ही बन चुकी थी। खैर, जब दोस्तों के बीच प्यार से आपका नाम बिगाड़ दिया जाता है तो बिगड़ा नाम भी अपना सा ही लगने लगता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, अब मुझे ऐसा लगने लगा था कि इति के साथ ही मेरे नाम में पूरक की तरह आईटीआई भी जुड़ गया है। हालांकि कुछ समय बाद उन्होंने मुझे इति बुलाना शुरू कर दिया।

अब चलते हैं हॉस्टल की ओर। जामिया हॉस्टल में रहने के कई दिनों बाद मेरी रूममेट ने बताया कि उन्होंने भी लिस्ट में मेरा नाम देखकर आईटीआई ही समझा था। लेकिन, यहां एक और इंट्रेस्टिंग एंगल है। उन्होंने बताया,

हमें समझ ही नहीं आया कि आखिर तुम्हारा नाम है क्या। फिर हमें लगा शायद ये तुम अपने नाम के आगे आईटीआई लगाती होगी और तुम्हारा असली नाम ‘शरण’ है। हमें लगा शायद इस आईटीआई का कुछ मतलब होता होगा, और काफी सोच- विचार के बाद हम इस कन्क्लूज़न पर पहुंचे कि तुम ज़रूर साउथ इंडियन होगी यानि हमने सोच लिया था कि हमारी नई रूममेट साउथ की होगी।

तो इस तरह से मैं अपनी रूममेट्स के लिए साउथ इंडियन बन गई थी। शक्ल से तो मुझे बहुतों द्वारा साउथ इंडियन समझना मेरे लिए नॉर्मल बात थी। कभी कोई साउथ इंडियन बना देता तो कभी कोई बंगाली। लेकिन, नाम पढ़कर किसी ने मुझे पहली बार साउथ इंडियन बनाया था। मतलब कमाल ही है, ना शक्ल ऐसी कि लोग मुझे अपने गृह राज्य का समझें और ना ही नाम ऐसा कि कोई उसे सही से पकड़ पाए।

खैर, जामिया में पूरे तीन साल तक मेरा नाम पढ़कर और सुनकर लोगों की आंखें बड़ी होती रहीं। फस्ट इयर में क्लासमेट और हॉस्टल के लोग तो मेरे नाम से फेमिलियर ज़रूर हो गए थे, लेकिन किसी नए डिपार्टमेंट या किसी ऑफिस में जाने पर वही सवाल और वही सीन वापस से शुरू हो जाता। यहां तक कि कॉलेज पास करने के बाद क्लियरेंस करवाने जाने पर हर डिपार्टमेंट में मुझसे मेरे नाम को लेकर लोगों को उसी तरह रिएक्ट करते देखना पड़ता था। कई लोगों ने कहा, “भला ये कैसा नाम है ?” और मैं अपने रटे-रटाए जवाब उनके सामने बिना देरी किए दाग देती थीं।

एक बार पटना के मेरे एक दोस्त ने भी मेरे नाम का एक इंट्रेस्टिंग किस्सा सुनाया। मैंने एक दफा जब उसे कॉल किया था तो वो उस वक्त बाथरूम में था। जिस वजह से उसके रूममेट ने बस फोन उठाकर ये देखा कि किसका फोन आ रहा है। मेरे दोस्त के बाथरूम से बाहर आने पर उसके दोस्त ने बताया कि ITI सारण से फोन आया था तेरे लिए। दरअसल, उसने ‘इति’ को ‘आईटीआई’ पढ़ने के साथ ही ‘शरण’ को ‘सारण’ पढ़ लिया था। और उसे लगा कि ITI यानि इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट का कोई सारण ब्रांच है वहां से फोन आ रहा है।

आज भी कोई कस्टमर केयर वाले शायद ही फोन पर मेरा नाम सही से बोल पाते हैं, हर बार फोन में यही सुनने को मिलता है, “क्या मेरी बात आईटीआई शरण से हो रही है ?” कई बार तो ‘शरण’ भी ‘शर्मा’ बना दिया जाता है। हालांकि आईटीआई बोलते वक्त उस आदमी को भी पूरा एहसास होता है कि ये नाम आईटीआई तो नहीं ही हो सकता, इसलिए वो आईटीआई अटक-अटक कर बोल रहा होता है। शुरुआत में तो झुंझलाहट सहित मैं उन्हें भी सही करने की कोशिश करती रही थीं, मगर बाद में मज़ा लेने की गरज से अब मैं कहने लगी हूं, “हां जी आपकी बात आईटीआई से ही हो रही है।”

मेरे नाम की अब जो भी किस्से/कहानियां हों या आने वाले समय में भी कुछ और बने, इस सबके बावजूद मुझे अपने नाम से प्यार भी बहुत है। मेरे पिता ने चाहे जो समझ कर मुझे इतना पिकुलियर नाम क्यों ना बख्शा हो, मुझे दिनोंदिन पता नहीं यह क्यों लगने लगा है कि मैं अपने नाम के अनुरूप ‘अंत’ तो कतई नहीं, कई नई परिपाटियों के ‘प्रारम्भ’ का सबब ज़रूर हूं। मैं बताऊं कि मेरे नाम की इन दिलचस्प कहानियों ने मुझे उदासी और निराश समय में भी आनंद विभोर होने के भरपूर मौके दिये हैं। और, ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव में एक गहरी स्माइल के लिए ऐसी कहानियों का होना भी तो ज़रूरी है।

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