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इस हिंसक भीड़ के खिलाफ चुप्पी तोड़िए, ये मौन को अपना हथियार मानती है

Sikh police officer saves Muslim youth from lynching by Hindus

आपने देखा कैसे एक भीड़ किसी को मारने के लिए आतुर है। और हिम्मत इतनी कि पुलिस होने के बावजूद अपना रॉब दिखा रही है ये भीड़। ये भीड़ सिर्फ उत्तराखंड के किसी एक शहर की नहीं है। यह भीड़ दूसरे जगहों पर भी है और आपके इर्द-गिर्द भी है।

मैं नहीं जानता, हमारा कौन सा भारत, देश के लोगों को, बड़ों, छोटों, नौजवानों को यह नफरत सिखाता है या सीखा रहा है ? लेकिन आप अगर इस भीड़ से आज अपने को असहज महसूस नहीं करते, तो असहज होना शुरू कर दें। क्योंकि ये भीड़ कल आपकी भी नहीं सुनेगी और आप, आपके मां-बाप, भाई-बहन इसके शिकार हो सकते हैं और होंगे।

क्योंकि आज आप, बस इसलिए चुप हैं क्योंकि आपको, या आपके चाहने वालों को कुछ नहीं हुआ है। लेकिन, आप तब क्या करेंगे जब ये बनाई हुई गन्दी और ज़हरीली नफरत आपके घर तक पहुंच जायेगी और ना जाने किस वजह से आप पर टूट पड़ेगी।

कौन है यह भीड़, इसका चेहरा क्या है, क्यों यह भीड़ किसी की जान की प्यासी है, और कैसे यह आपको इस आज़ाद भारत में डरा हुआ महसूस कराती है।

ऐसा नहीं है कि भीड़ के द्वारा किया हुआ नरसंहार हमने पहले कभी नहीं सुना, और ऐसा भी नहीं है कि ऐसी घटनाएं पहले नहीं हुई। लेकिन, आज क्यों मैं आपसे ये बात कर रहा हूं। मैं आपको, आपकी मदहोशी से जगाना चाहता हूं, आपके भीतर छिपे इंसान को जगाना चाहता हूं कि फिर कभी ये मलाल ना रहे कि समय रहते मैंने क्यों नहीं कहा।

ये भीड़ हमसे ही से बनी है, मेरे, हमारे और आप जैसे लोगों से। जी हां हमसे ही, या तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से। जब कोई भीड़ किसी पर हमला कर देती है और हम देखते रहते हैं, जब कोई भीड़ किसी का रेप कर देती है और हम देखते रहते हैं, जब कोई भीड़ किसी को जान से मार देती है और हम फिर भी देखते रहते हैं और कुछ नहीं बोलते।

जी हां यह भीड़ हमसे ही बनी है, जो कि हमारे मौन को अपना हथियार मानती है और ये दम भर्ती है कि देश हित के लिए सब कुछ सही है।

अब समय आ गया है कि इस भीड़ से निकलिए, अपनी चुप्पी तोड़िए और आवाज़ उठाइये।

अगर यह भीड़ हमने बनाई है, तो इसे मिटाने का भी दायित्व हमारा है। आपको इसकी गहराई में जाना होगा और सोचना पड़ेगा कि सबसे पहले तो आप अपने आप में क्या बदलाव लाना चाहते हैं और कैसे इस भीड़ वाली मानसिकता को रोक सकते हैं।

आप अपने माता पिता, अपने भाई-बहन, अपने चाहने वालों और दोस्तों से ये बात कीजिये और अगर हो सके तो सभी को इस भीड़ वाली मानसिकता से आज़ाद कीजिये। अपने आपको और उन्हें शिक्षित कीजिये कि भीड़ या उसकी मानसिकता का कोई ईमान, धर्म, सोच, विवेक और इंसानियत से सम्बन्ध नहीं होता। वो सिर्फ किसी के घटिया विचारों और गंदे उद्देश्यों का वहन करती है और वो भीड़ खुद को भी बर्बाद करती है।

मैं गगनदीप सिंह जी को धन्यवाद करना चाहूंगा कि उन्होंने अपने पुलिस होने का कर्तव्य बहुत ही शालीनता और साहस के साथ, विवेक का परिचय देते हुए निभाया और एक बार फिर सिख समुदाय की सीख यानी कि “इंसानियत” की रक्षा की।

मैं नहीं जानता की आप, मेरे इन विचारों से सहमत हैं भी या नहीं, लेकिन मैं इतना जानता हूं कि दिल की बात, शांतिपूर्ण तरीके और साफ शब्दों से करने की आज़ादी तो हमारे देश में सभी को है।

अंत में मैं इतना ही कहना चाहता हूं, आप वही कीजिये जो आपको अच्छा लगता है। लेकिन, आपके इस अच्छे में, आपके अलावा, आपके अपनों के अलावा, समाज का भी अच्छा हो तो बेहतर ही होगा।

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