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“देर रात घर लौटने और नाइट क्लब जाने वाली लड़कियां तुम्हारी जागीर नहीं”

लड़कियों की कामयाबी की फेहरिस्त कितनी ही लंबी क्यों ना होती चली जाए लेकिन भारतीय पुरूषों की लड़कियों को लेकर सोच बदली नहीं है। ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों में आज भी लड़कियों को कहा जाता है कि शाम ढलने के बाद वे घर से बाहर न निकलें। देर रात घर से बाहर जाते वक्त यदि किसी लड़की के साथ कोई अप्रिय घटना घटित होती है, तब भी आंच लड़कियों पर ही आती है। ये समाज उन्हें बद्चलन और बिगड़ैल जैसे शब्दों से संबोधित करता है।

खासकर उन लड़कियों को अधिक परेशानी होती है जो नाइट शिफ्ट वाली नौकरी के बाद या फिर किन्हीं कारणों से देर रात घर लौटती हैं। इस दौरान सड़कें सुनसान होती हैं और अकसर कैब ड्राइवर्स उन्हें कॉलोनी के बाहर वाली सड़क पर ड्रॉप कर देते हैं। और लड़कों को लगता है कि देर से घर लौटने वाली लड़कियां जैसे उनकी प्रॉपर्टी हैं। ये लड़के कई बार अपनी यौन कुंठा से ग्रसित होकर रात को अकेली घर लौट रही लड़की से पूछते हैं “कितने में चलेगी।”

दिल्ली की दीक्षा सेलेस्टे सिंह

इस विषय पर खुद की राय रखने से पहले हमने सोचा कि क्यों न किसी बेबाक लड़की से बात की जाए। दिल्ली के रोहिणी में रहने वाली दीक्षा सेलेस्टे सिंह से हमने बात की जिन्होंने अभी हाल ही में बैचलर ऑफ जर्नलिज़्म की पढाई पूरी की। दीक्षा बताती हैं कि लड़कियां तब तक ही महफूज़ होती हैं जब तक कि वे अपने घरों में रहती हैं (हालांकि इसकी भी कोई गारंटी नहीं है)। घर से बाहर कदम रखने के बाद उन्हें हर मोड़ पर ‘यौन हिंसा’ का सामना करना पड़ता है। “माल” और “कंटाप” जैसे वाहियात शब्दों से हर पल उनका सामना होता है।

दीक्षा अपनी सहेली एलीना का ज़िक्र करते हुए आगे बताती हैं कि एलीना एक बार अपने दोस्तों के साथ देर रात घर लौट रही थी। दोस्तों ने उन्हें कॉलोनी के बाहर ड्रॉप कर दिया और वहां से उसे गली के काफी अंदर तक जाना था। इसी दौरान लड़कों के एक समूह ने एलीना से कहा कि कितने में चलेगी। चल ना दोस्तों के साथ एंजॉय करके तो आई है। अपन के साथ भी थोड़ी मस्ती कर ले।

एलीना किसी तरह से उनका पीछा छुड़ाकर घर पहुंची और अपने पेरेन्ट्स से उन आवारा लड़कों की शिकायत की। वे लड़के भी उसी कॉलोनी के थे जहां एलीना रहती थी। एलीना के पेरेन्ट्स ने जब उन लड़कों के घर वालों से इस बात की शिकायत की तब उन्होंने एलीना को लूज़ कैरेक्टर बताते हुए कहा कि आपकी लड़की तो है ही वैसी जो देर रात तक बाहर घूमती है।

दीक्षा अब एक दूसरी घटना का ज़िक्र करते हुए बताती हैं कि अभी हाल ही में, मैं दिल्ली के एक मशहूर नाइट क्लब में गई थी जहां एक अजनबी लड़का आकर मेरी हिप्स को टच करता है और फिर जाकर किसी नॉर्थ ईस्टर्न लड़की के हिप्स पर स्पैंक करने लग जाता है।
इस दौरान मैं अपने एक फ्रेंड से बात कर रही थी जिसने मेरे कंधे पर हाथ रखा था। इतने ही में वो लड़का फिर से आकर मेरे कंधे पर हाथ रखता है। जब मैं उसके हाथ को अपने कंधे से हटाती हूं, तब गुस्से में मुझसे कहता है कि आपने मेरा हाथ क्यों हटाया? मेरे विरोध करने पर नौबत लड़ाई झगड़े की आ गई। वो खुद को इंस्पेक्टर बताकर हमें धमकियां देने लग गया। फिर धीरे-धीरे मामला शांत हो गया।

उसी रात मेरे साथ एक और इंसिडेंट हुआ जब मैं अपने दोस्तों के साथ उसी क्लब में खड़ी थी और एक अंजान लड़का मेरे बालों पर हाथ फेरते हुए चला गया। मैं और मेरी फ्रेंड ने जब बाहर जाकर उस लड़के के प्रति नाराज़गी दिखाई, तब उसने माफी मांग ली और फिर हम अंदर प्रवेश कर गए। इसके बाद वो लड़का जबरदस्ती हमारे समाने आकर डांस करने लगा और फिर से वैसी हरकतें करने लग गया। हमने जब बाउंसर्स से शिकायत की तब उन्हें धक्के मारकर बाहर निकाल दिया गया।

हमारे समाज में ऐसी लड़कियों की संख्या बहुत कम है जो अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद कर विरोध प्रकट करती हैं। ऐसे मामलों में औसत लड़कियां भय से चुप्पी साध लेती हैं जो इन लड़कों के हौसले को और मज़बूती दे देता है। जिस प्रकार दीक्षा ने नाइट क्लब में लड़कों की बद्तमिज़ी का विरोध किया, ज़रूरत है वैसे ही देश के हर इंसान को अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करने की।

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