एक जागरूक नागरिक सबसे ज़्यादा तनाव में रहता है और हमेशा चिंतन मनन करते रहता है कि देश में जो अमानवीय और अप्राकृतिक घटनाएं घट रही हैं वह क्यों घट रही हैं, इन सबके पीछे वजह क्या हैं? क्या लोग इतने निर्दयी और जाहिल हो गए हैं कि मानवीयता और नैतिकता उनके लिए महज़ दिखावा या शब्द भर रह गए हैं। वह इन सबकी जड़ों में जाकर उनके निराकरण के लिए लड़ने के लिए निकल पड़ता है।
जागरूक नागरिक होना आसान नहीं है महज़ कॉपी किताब पढ़ लिख लेने से कोई जागरूक नहीं बन जाता है। इम्तिहान में 80-95% नम्बर लाकर मैरिट का ढिंढोरा पीटने, अच्छी पोस्ट-अच्छी सैलरी ले लेने भर से कोई शिक्षित नहीं बन जाता, बस दिखावा करने का गुर बहुत अच्छे से सीख लेता है। भारत की शिक्षा व्यवस्था ही ऐसी है कि यहां मेरिट का घुड़दौड़ होता है और इस रेस में जीवन के सैद्धान्तिक दर्शन कहां गुम हो जाते हैं पता नहीं चलता है।
यहां के शैक्षणिक संस्थान साक्षरों को पैदा करते हैं शिक्षितों को नहीं। कोई अनपढ़ भी संघर्षों की भट्टी में तपकर प्रकृति रूपी किताब पढ़कर शिक्षित हो सकता है जिसके अंदर प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर जीवन जीने की कला विकसित हो जाती है। जिन्होंने प्रकृति को समझ लिया वो आज किसी भी तरह से जल जंगल ज़मीन को बचाने के लिए जुट गए हैं और उन्हें इस बात की चिंता खाये जा रही है कि लोगों को आने वाले भविष्य का अंधकार दिखाई क्यों नहीं दे रहा है।
ग्लोबल वार्मिंग, वायु प्रदूषण, जल संकट, जलवायु परिवर्तन, अतिवृष्टि, अल्पवृष्टि जैसी असामान्य संकटों का आभास क्यों नहीं कर पा रहे हैं ? भौतिक सुखों के खातिर प्रकृति के साथ खिलवाड़ कोई शिक्षित और जागरूक नागरिक कैसे कर सकता है? यदि इस देश के आदिवासी अपने जल जंगल ज़मीन की रक्षा के लिए, जिनमें वो पैदा होकर खेलते कूदते हुए बड़े हुए हैं खुलकर आगे आएं अपनी आवाज़ बुलंद करें, जंगल कटाई, माइनिंग, और बड़े-बड़े कल कारखानों का विरोध करें तो वे लोग देशद्रोही या नक्सलवादी कैसे हुए?
जिस देश में विकास के नाम पर प्रकृति के साथ बेजा खिलवाड़ होता हो उस देश के बेखबर बाशिन्दों का नैतिक पतन होना तो निश्चित ही है। जहां अमीरी गरीबी की खाई को पाटा ना जा सके ऐसा सिस्टम ना हो उस देश की जागरूक जनता चैन की नींद कैसे सो सकती है?
जो देश भुखमरी में जीता हो, कुपोषण में मरता हो, प्रसन्नता सूचकांक में रोता हो, मरते हुए किसान और जवान पर उटपटांग कमेंटबाजी करता हो, मां/बहन/बेटी को इज्ज़त मानता हो, ऑनर किलिंग में लिप्त हो, बहन बेटियों को पैसों में तौलता हो उन्हें भोग विलास की वस्तु समझता हो, ब्रेस्ट निचोड़कर मां होने ना होने की पुष्टि करता हो, अपने शब्दों के द्वारा रेप कल्चर को बढ़ावा देता हो, बलात्कार कर योनि को क्षत विक्षप्त करके भी अपने किये पर पछताता ना हो, लिंग भेद के मामले में अव्वल हो, जाति-पाती को मानने वाला हो, धर्म के नाम पर दंगा फैलाने वाला हो, गाय के नाम पर इंसानों को मारकर गर्व का एहसास करता हो, प्रकृतिवादी आदिवासियों को नक्सलवाद/माओवाद के नाम पर मारता हो, मुखबिरी के शक में मारता हो, और जिस देश में 65% युवा हों वह देश अब तक जागा क्यों नहीं है?
क्या यहां अंगुली में गिनने लायक ही जागरूक और नैतिक ज़िम्मेदार बसते हैं? कहां हैं युवा, क्यों चुप हैं युवा, कौन गुमराह कर रहा है इन युवाओं को ? कौन सी ताकत युवाओं को क्रांति करने से रोक रही है आखिर क्या कारण है कि युवा देश के ज्वलंत मुद्दों को लेकर उदासीन हैं?
देश में लाखों केस विचाराधीन हैं, लाखों कैदी जेल में बेवजह सड़ रहे हैं, कोर्ट के पास सुनवाई करने के लिए जज नहीं हैं, वक्त नहीं है, एक-एक केस को निपटने में सालों लग जाते हैं, निर्दोष पिसता रहता है दोषी मौज मारता है, अपराधी बार-बार अपराध करता है और कानून से डरता भी नहीं है। क्या यह देश के लिए भयावह नहीं है? भ्रष्टाचार महंगाई कदाचार बढ़ता जा रहा है। आखिर किस तरफ जा रहे हैं हम? हिन्दू-मुसलमान, भारत-पाकिस्तान, गाय-गोबर-मूत, बीफ, मंदिर-मस्जिद, राष्ट्रवाद, फलां ढिकाना ये सब क्या ज़रूरी है?
जागरूक नागरिक होने का कुछ तो सबूत पेश करो युवाओं, समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं और तुम हो कि चंद लोगों के दुरुपयोग के साधन बनते जा रहे हो, पढ़ो लिखो चिंतन मनन करो की कहां-कहां तुम्हारा दुरूपयोग किया जा रहा है। नैतिकता के खिलाफ, मानवाधिकारों के खिलाफ, देश के खिलाफ, कानून के खिलाफ, संविधान के खिलाफ।
इस आशा के साथ कि युवा जागेंगे मैं बोउंगा क्रांति के बीज।