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चूँकि एक एक्जाम सिर्फ एक एक्जाम नहीं होता

पता है एक एक्जाम सिर्फ एक एक्जाम नहीं होता। वह तमाम उम्मीदों की तारीख होता है , जिसका इन्तजार न केवल तुम करते हो, तुम्हारे अंदर का अठारह की उमर में किया गया प्यार भी करता है, जिसे उम्मीद होती है कि कभी तो तुम घर पर आओगे, कहोगे देख ले मैं जीत गया, मेरे इन्तजार का अब अंत हो गया, क्या तुम मेरी बनोगी? फिर तुम भी इश्क में शहर हो जाना चाहोगे , एकदम बावला सा, मतलबी मुखर्जी नगर से इतर हिमालय की दून और दुआर जैसा, तुम एकदम मकान मालिक के एक पराये एक बीएचके मकान से सरपटाके इंडिआ गेट हो जाओगे जहां तुम हो वो हो या सिर्फ प्यार करने वाले हों पर जहां कैमरों की टेंशन न हो,

फिर तुम उसके हाथ में अपना हाथ डालकर किसी नदी के किनारे बैठकर पानी में कंकड़ मार के तर तर की आवाज से खुश होओगे और उछलती पानी की हर बूँद से कहोगे देख लो मैं आज अकेला नहीं हूं मेरी जीत मेरा प्यार मेरे साथ है

फिर तुम उठोगे ,अपने पेंट के पीछे लगी धूल को छटकाओगे  और दो कदम चलोगे, उन खड़े अमलतास के पेड़ों से कहोगे देख लो मैनें  तुम्हारे इन्तजार का अब अंत कर दिया तुम फिर मीर तकी मीर की ग़ज़लों को गा गाकर के अपने जीत का जश्न मनाओगे, वो हसेगी तुम्हे बार बार आलिंगन करेगी, तुम्हारी पीठ पर  नाजुक हाथों से दो थपकियां लगाएगी, अपने होने का अहसास कराएगी, तुम्हारे कंधे से शर्ट को बार बार खींच कर कहेगी ‘’ तुम न आते तोह मैं तोह मर ही जाती, तुमने भी मेरे सूने शहर को रोशन कर दिया, मैं वापस नहीं जाने वाली , हम यहीं पे घर बनाएंगे जिसकी चौखट की दीवारों पर मेरे तुम्हारे पीले हाथों की दमक होगी, उसके दिया रखने वाले आरों से भी मोहब्बत की खुशबु आएगी, उसके दरवाजे भी पूनम के गीत गुनगुनायेंगे, हमारे आँगन में रात की रानी के फूल तुम्हारे इश्क और मेरे इन्तजार की एक एक मिनट की गवाही देंगे

पर इतने में ही तुम्हारा ध्यान धड़धड़ाते बजबजाते अलार्म पर जाएगा जो तुम्हें तुम्हारी हार पर भी इतराने न देगा फिर तुम्हें मालूम होगा कि आज फिर एक और सपने ने तुम्हें तुम्हारे बचपन से मिला दिया,  तुम्हे खुशी भी होगी इकपल ही सही वो अब भी तुममे ज़िंदा है तुमसे कुछ ज्यादा, तुम अफ़सोस करोगे काश की एकबार तो तुम उसे गले लगा पाते और कह पाते कि मैं तुम्हें  बहुत प्यार करता हूं पर फिर तुम्हें तुम्हारे कल ही शाम आए रिजल्ट के बारे में याद आएगी जो तुम्हें महबूबा के फलसफा शहर से दूर तुम्हारे घर ले जायेगी!

माँ की उम्मीदों और पिता की आशाओं के बादल तुम्हारी आँखों को गीला कर रहे होंगे, बहन को गले लगाकर बँधायें ढाढस की एक एक बात जिसने तुम्हे पिछली रात सुबह पांच बजे तक सोने न दिया था, एक बार फिर तुम्हे कंपकंपा देगी, तुम अपने आंसुओं को अब उनके रास्ते में ही नहीं पौछ्ना चाहोगे, तुम उन्हें तुम्हारे गालों के रास्ते होंठो से भी नीचे आने दोगे, उसे अपनी किताबों के पन्नों तक गिरने दोगे तुम चीखना चाओगे, 

तुम जोर से रोकर अपना दर्द कम करना चाहोगे पर तुम तो रो भी न सकोगे तुम्हे डर होगा की कहीं तुम्हारे रूम पार्टनर, तुम्हारे साथी तुम्हें हारा हुआ न समझ लें| तुम हारे हुए एक सिपाही की तरह अपने हाथ मसलोगे, खोलोगे फिर मसलोगे और कर भी क्या सकते हो!

तुम्हारा फ़ैल होना सिर्फ तुम्हें ही नहीं तोड़ता, वह तोड़ता है इस एक्जाम से बेखबर मां की उम्मीदों को, तुम्हें पैसे भेजने वाले प्यारे से भइआ की हिम्मत को , तुम्हारे बूढ़े बाप के साहस को, तुम्हारी बहन के ढाढ़स को, उसके बेसहारा बच्चों के आसरे को, तुम्हारे दोस्तों के दावों को, वह तोड़ता है किसी से मन ही मन किये वादों को !

महबूबा के गीतों से अलग एक दुनिया भी है जिसमे चीखें हैं, चुपचाप रोने की आवाजें हैं, जिसका हारा, थका एक चेहरा भी होता जो सिर्फ तुम्हें दिखता है एक एक्जाम उसे भी तोड़ता है चूँकि एक एक्जाम सिर्फ एक एक्जाम नहीं होता !

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