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अंधराष्ट्रीवादी समाज में एक फ़ेमिनिस्ट सनकी करार है

फ़ेसबुक अच्छी चीज़ है । दूर बैठे अपनों को पास लाती है, बिज़नेस बढ़ाने में सहायता करती है और सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये कि समाज का असली रूप सामने लाती है । आपको अगर भारत का असली चेहरा देखना है तो आप किसी भी पॉपुलर पोस्ट के नीचे लिखे कमेन्ट्स को पढ़िए । अगर कोई सेलिब्रिटी (प्रियंका चोपड़ा ) रोहिंग्या के लिए कुछ अच्छा कर रहा है तो लोग उसे इसलिए गालियां देंगे कि भारत के लिए क्यों नहीं कर रहा । अगर कोई फ़िल्म स्टार (अनुष्का शर्मा ) किसी को सड़क गन्दा करने पर टोक रहा है तो लोग उस वीडियो के निचे मेमे बनाकर उस सिचुएशन का मज़ाक उड़ाएंगे । अगर कोई सेलिब्रिटी (स्वरा भास्कर) एक स्टैंड ले रहा है तो लोग उसको सिर्फ़ इसलिए देशद्रोही तक बुला देंगे क्यूंकि उनका पोलिटिकल ओरिएंटेशन “राइट” नहीं है ।

ये तो बात रही सेलेब्स की । मैंने तो अपनी ऑपीनियनटेड सहेलियों को भी रोस्ट होते देखा है । ईद पर बिरयानी खाने की इच्छा ज़ाहिर की हो या किसी सेक्सिस्ट जोक की निंदा – सभी को एक दो ऐसे मर्द ज़रूर मिले हैं जिनके कमेन्ट्स से कुपरवारिश और ऐवे ही वाली पुरुष प्रधानता की बू आती है ।

दिक्कत ये है कि इस कंट्री में बेटों को इस हिसाब से पाला जाता है कि पैदा होकर ही कोई कमाल कर दिया बेटे ने । मायें अपने बेटों को इतना बिगाड़ देती हैं कि वे औरतों की इज़्ज़त करना ज़रूरी ही नहीं समझते । इसलिए ये ट्रॉल्स और घटिया पोस्ट्स लिखने वालों में अधिकतर आपको मर्द ही दिखेंगे । ऐसा नहीं है कि महिलाएं इन चीज़ो में इंडल्ज नहीं होतीं लेकिन अक्सर महिलाएं बैशिंग के रिसीविंग एन्ड पर ही दिखतीं हैं । आप रेप के ही आंकड़े देख लीजिये । अब तो न उम्र की सीमा बची है और न पहर का कोई बंधन है । दिन दहाड़े ये मेल शॉविनिस्ट पिग्स १० महीने की बच्ची से लेकर ७० साल की दादियों तक को अपनी मानसिक विकृति का शिकार बनाते हैं । इतनी हिम्मत इन लोगों में आखिर आती कहाँ से है? क्यों इन्हे लगता है कि ये हमे जानवरों से बदतर मौत देकर ख़ुद चैन से जी सकते हैं ।

अबतक अगर कोई सो-कॉल्ड आइडिअलिस्ट ये ब्लॉग पढ़ रहा होगा तो वो बोलेगा की कुछ भी लिखती है ये लड़की । ट्रॉल्लिंग को सीधा रेप से जोड़ दिया । अरे घटिया मानसिकता की ही उपज है सब कुछ । जब इंटरनेट पर लोग ज़रा ज़रा सी बातों पर इतनी नफ़रत बरसाते हैं, तो आप ख़ुद सोचिये की समाज में चल रहे अपराधों से शॉक्ड होने की ज़रुरत है क्या ? घटिया, नीच और छोटी सोच वालों की जो भीड़ है, उसका क्या किया जाये? ग़लती हमारे अंदर ही है – कोई फ़ालतू बोले तो बिना डरे उन्हें जवाब दें और माओं से अनुरोध है कि नए जनरेशन में लड़कियों के ऊँचा मत बोलो, बहस मत करो, जीन्स मत पहनो, सपने मत देखो बोलने कि बजे लड़कों को उल्टा मत बोलो, बेइज़्ज़त मत करो, हवस की नज़र से लड़कियों को मत देखो और कंधे से कन्धा मिला कर एक अच्छे समाज की रचना करो ।

नोट : एक फ़ेमिनिस्ट दुनिया की दुश्मन नहीं है न ही कोई बगैर दिमाग कुछ भी बोलने वाली – एक फ़ेमिनिस्ट बस बराबर का दर्जा और चुनाव की आज़ादी चाहती है ।

 

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