अति पिछड़ों को राजनीतिक भगीदारी को लेकर जगह-जगह से बैठक, सभा की खबरें आती रहती है। खासकर अतिपिछड़ों के उन जातियों का जिन्हें राजनीतिक भगीदारी नहीं मिली है या न के बराबर है।
एकतरफ जहाँ वंचित शोषित समाज राजनीतिक रूप से जागरूक हो रहा है वहीं दूसरी तरफ इसमें शीर्ष पर बैठे लोगों का अवसरवाद भी सामने आ रहा है। क्योंकि इन जातियों के शीर्ष पर बैठे लोग अपने ही लोगों को बुनियादी सवलों और नीतियों पर गुमराह किए हुए हैं या बिना जानकारी के ही राजनीतिक भागीदारी का सवाल बस उठा रहे हैं।
समाज को शिक्षित करने की बात तो करते हैं लेकिन शिक्षा की व्यवस्था कैसे हो तथा शिक्षा को कैसे ठीक किया जा सकता है कोई स्पष्ट विचार नहीं है। आरक्षण पर कोई साफ़ राय नहीं है वर्तमान में आरक्षण पर सबसे ज्यादा हमला किया जा रहा है उसपर भी चुप रहते हैं।
बुनियादी सवाल जिससे गरीब, वंचित वर्ग के लोग परेशान हैं जैसे चिकित्सा का सवाल, जन-वितरण प्रणाली की खामियों को दूर करने का सवाल, समाजिक सुरक्षा पेंशन को दुरुस्त करना इनसब सवलों पर भी कोई चर्चा नहीं होती है। राशन, इंद्रा आवास, वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन एवं प्रकार की सरकारी योजनाओं में भयंकर खामियां है जिसका असर वंचित शोषित गरीब परिवार पर ही पड़ता है ऐसे महत्वपूर्ण सवलों पर भी चुप रहते हैं।
वंचित समाज का बड़ा हिस्सा मजदूर या छोटा किसान है जिनकी जिंदगी बेहद कठिन है इनकी दर्दशा कैसे ठीक हो इसपर भी कोई नीति साफ नहीं है। समाज के कमजोर और अल्पसंख्यक लोगों को भी न्याय आसानी से मिले इसपर भी कोई बहस बैठकों में नहीं होता है। इसीतरह समाज भूमिहीनों पर कोई स्पष्ट सोच नहीं है। राजनीतिक भगीदारी की लड़ाई जितनी जरूरी है उतना ही उन नीतियों को लागू करने के लिए संघर्ष भी जरूरी है।
नीतियों को लेकर जब गरीब वंचित शोषित समाज में जागरूकता पैदा होगा तब नेतृत्व पर बैठे लोग भी बेमानी आसानी से नहीं कर पायेंगे। यही कारण है वंचित समाज से कुछ लोग ऊपर गए भी अपने समाज के लिए कोई खास नहीं कर पाये हैं क्योंकि इनलोगों ने बड़ी चालाकी से बस भगीदारी की बात किया लेकिन जिन नीतियों से समाज का बदलाव होगा उसपर लड़ना नहीं सिखाया।
आज भगीदारी के नाम पर किसी भी प्रमुख पार्टी में घुसने की जुगाड़ में लगे लोगों से समाज का उत्थान होगा ये बात कोड़ी कल्पना के अलावा कुछ नहीं है। सबसे उत्तम रास्ता है नीतियो को साफ़ करते हुए राजनीतिक भगीदारी के सवलों को भी हल करते हुए नये राजनीतिक विकल्प को खड़ा किया जाय।
लेखक नौजवान संघर्ष सभा, बिहार के संयोजक हैं।