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बिहार में RTI एक्टिविस्ट राजेंद्र सिंह की हत्या की जांच में भी हो रहा भ्रष्टाचार

उनको जान से मारने की साजिश हो रही है, उन्हें पहले से पता चल गया था। इसलिए उन्होंने डी.आई.जी मुज़फ्फरपुर को चिट्ठी लिख सुरक्षा प्रदान करने की बार-बार गुहार लगाई, पर सरकार ने उन्हें सुरक्षा नहीं दिया।

तीन-तीन बार उनकी हत्या के प्रयास की घटना के बावजूद पुलिस ने अपराधियों या किसी हमलावर को नहीं पकड़ा। जब परिवार के लोग समझाते थे क्यों आप ये सब कर रहे हैं तो वो कहा करते थे,

मैं दुश्मनों की गोली से मर जाना पसंद करुंगा, लेकिन हार नहीं मानूंगा। जब तक जिऊंगा चोरों को सबक सिखाते रहूंगा और देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए लड़ता रहूंगा।

आस-पास के लोग भी ये कह रहे थे कि वे एक बार जिस मामले को ले लेते फिर किसी भी प्रकार का कोई समझौता नहीं करते।

आखिरकार 19 जून को एक सम्बन्धी के यहां से लौटते समय राजेन्द्र सिंह जी की दिन दहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई। राजेंद्र सिंह जी ने RTI का इस्तेमाल कर बहुत बड़े भ्रष्टाचार के मामलों का पर्दाफाश किया, जिसकी वजह से कई अधिकारी सस्पेंड भी हुए। यह घटना मीडिया द्वारा रिपोर्ट भी की गई लेकिन फिर एक आम खबर की तरह इसे भूला दिया गया।

उनकी हत्या के कुछ दिन पहले से ही संदेहास्पद घटनाएं घटित होने लगी थीं। परिवार के लोगों ने बताया कि 8 जून को सुबह जब राजेन्द्र जी घर में नहीं थे उस समय उनके भाई सत्येन्द्र सिंह उनके घर आये और बहुत सारी फाइल उठाकर ले गए। जिन फाइलों में लोक-शिकायत, RTI और कोर्ट में चल रहे केस के कई महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ थे।

इस घटना के बाद राजेन्द्र जी FIR कराने  संग्रामपुर थाना गए, मगर दरोगा ने FIR करने से मना कर दिया और उलटा उनसे सुलह करने को कहने लगे। इस घटना के आलोक में राजेन्द्र जी द्वारा ज़िला पुलिस अधीक्षक मोतिहारी (पूर्वी चंपारण) को 15 जून को चिट्ठी लिखी गयी थी कि FIR दर्ज नहीं किया जा रहा।

थाना प्रभारी और अन्य सरकारी अधिकारियों ने FIR दर्ज ना कर, एक पंचायती रखी। उस पंचायत में वे सब शामिल हुए  (थाना प्रभारी, SDO, BDO, BEO, DSP से लेकर मुखिया, सरपंच, PACS अध्यक्ष आदि) जिनके भ्रष्टाचार के खिलाफ राजेन्द्र सिंह जी हमेशा लड़ते भिड़ते रहते थे।

9 तारीख को पंचायती पूरी नहीं हो पायी। पंचायती की दूसरी तारीख 12 जून को रखी गयी। 12 जून को राजेन्द्र जी पर बहुत दबाव बनाया गया कि पुराने भ्रष्टाचार के मामले जो पंचायत में मौजूद अधिकारी व अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध थे उनको वापिस ले लें। साथ ही राजेन्द्र जी और उनके भाई के बीच चल रहे पुराने ज़मीन के मामले में भी सुलह करने का दवाब बनाया गया। पंचायती काफी देर तक चलती रही। अंत में वे इस बात पर सहमत हुए कि मैं अपने भाई से सारे ज़मीनी विवाद सुलझा लूंगा। मगर किसी तरह का फौज़दारी मुकदमा वापस नहीं लूंगा। लेकिन पंचायती में बैठे लोग नहीं माने वे बार-बार यही कहते रहें कि आप यह स्वीकार कीजिए कि आज के बाद आप RTI नहीं करेंगे, लोक-शिकायत नहीं करेंगे और अपने सारे केस वापस ले लेंगे। राजेन्द्र जी नहीं माने वे कहते रहें,

मैं मौत स्वीकार कर लूंगा मगर भ्रष्टाचारियों एवं अपराधियों के सामने घुटने नहीं टेकूंगा और आगे भी अपना काम जारी रखूंगा।

यह कहकर वे पंचायती से चल दिए। बाकी मामले के लिए एक महीने का समय लेकर फिर से पंचायती की तरीख 12 जुलाई को रखी गयी। मगर इसी बीच 19 जून को उनकी हत्या कर दी गई।

Commonwealth Human Rights Initiative (CHRI) की रिपोर्ट के मुताबिक RTI कानून आने के बाद से कम-से-कम 51 RTI कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है। हर घटना के बाद एक हेडलाइन बनती है लेकिन कुछ समय बाद मौत की खबरें नॉर्मल या सामान्य हो जाती हैं।

Whistleblower Bill पास हो या ना हो, यह सिलसिला तो रुकना चाहिए। कहीं से तो शुरुआत हो। इस केस में तो बहुत साक्ष्य भी मौजूद हैं पर सरकारी महकमा निरंकुश है और मामले को दबाने में लगा है। उनकी हत्या की जांच के लिए जो SIT टीम बनाई गई है उस टीम के कुछ अधिकारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ राजेन्द्र जी स्वयं मोतिहारी में केस लड़ रहे थे।

अपनी डायरी में थाना प्रभारी को भी हत्या की साजिश में शामिल होने की बात लिखी है। ऐसे में निष्पक्ष जांच की उम्मीद कैसे की जा सकती है? मामले को रफा-दफा करने का पूरा प्रयास किया जा रहा है। ऐसे में सिर्फ श्रद्धांजलि देने से काम नहीं चलेगा हमको उनके लिए लड़ना होगा और उनकी लड़ाई को अंजाम तक पहुंचना होगा और इसलिए अब ज़रूरत है कि मीडिया इस मामले को उठाए और सरकार पर दवाब बनाये।

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