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कश्मीर में आजादी पत्थरबाजों को दी गयी हैं या सैनिकों को?

 

आज़ादी के बाद से ही जम्मू कश्मीर एक विवादित जगह बनी हुई है। भारत का अभिन्न अंग होने के बावजूद कश्मीर में ना शांति उत्पन्न हुई ना सौहार्द। उत्पन्न हुआ तो सिर्फ आतंक? इस आतंक ने कुछ नहीं, बस सिर्फ वहां के लोगों को धीरे-धीरे शामिल किया और भारत के विरोध में ही लोगों को भड़काना शुरू किया।

आजादी के नाम पर लोगों को आतंकवाद में शामिल किया गया। अब यह बिल्कुल समझ से परे हैं कि वहां के लोगों को किस बात की आज़ादी चाहिए। वहां का संविधान अलग हैं वहां के लोगों के अपने अलग अधिकार है।

लेकिन फिर भी वहां के लोगों को आज़ादी चाहिए, अब वह आजादी चाहें जिस तरीक़े से भी हासिल की जायें। चाहें सड़कों पर आकर दंगा किया जाये। किसी स्कूल में जाकर बच्चों को मार दिया जाये या सड़कों पर आकर पत्थरबाजी करके देश की सेना को मार दिया जाये।

विडम्बना अब देखिए कि जिस देश की सेना आज़ादी से अब तक जिन लोगों के लिए लड़ती आ रही है। शायद ही कितने युद्ध किये होंगे, जिसमें देश के कई सैनिक हसंते-हसंते शहीद हो गयें। ये सब किसके लिए किया जा रहा हैं जम्मू कश्मीर में रह रहें उन सभी लोगों के लिए जिन्हें भारत अपना मानता है।

लेकिन शायद आज तक उन्होंने इस देश को अपना समझने की कोशिश ही नहीं की? केंद सरकार ने रमज़ान के पवित्र महीनें में शांति स्थापित करने के लिए सर्च ऑपरेशन तक बंद कर दिए।

पर नहीं? रमज़ान के पवित्र महीने में शांति की कल्पना नहीं की जा सकती? क्यूंकि वहां के लोगों को ये भी नागवार लगता है। वहां पर देश के विरुद्ध नारे लगायें जाते है। पर देश की सेना शांत रहती है। किसी आतंकवादी की हत्या हो जाती हैं तो वहां के सभी लोग जनाज़े में शामिल हो जाते हैं।

पर कोई सैनिक शाहिद हो जाता हैं तो वहां ख़ुशी बनाई जाती है। सेना पर उपद्रवियों द्वारा पत्थरबाज़ी की जाती है। तो सेना शांत रहती है। लेकिन अगर देश का कोई सैनिक उपद्रवियों से अपनी जान बचाने की कोशिश करता हैं और वहां किसी उपद्रवी की हत्या हो जाती हैं।

तो वहां के लोग या वहां की सरकार किसी और का नहीं बल्कि उन पत्थरबाजों का पक्ष लेती है। जिन्होंने सेना पर हमला किया। फिर केस पत्थरबाजों पर ना होकर, सैनिकों पर किया जा रहा है। वहां के नेता कहते हैं कि पहले लोगों को गोलियों से मारा जाता था अब गाड़ियों से कुचला जाता है। कहते हैं कि ये शायद सैनिकों के द्वारा लोगों को मारने की नई रणनीति है।

अब समझ में यह नहीं आता कि जिस जम्मू कश्मीर में लोगों की रक्षा सेना करती आ रही है। उन सैनिकों पर ही उंगलियां क्यों उठायी जाती है? जिन पत्थरबाजों के द्वारा कश्मीर में आतंक फैलाया जाता हैं। फिर भी उंगलियां सेना पर ही क्यूं उठायी जाती हैं? बलात्कार कोई और करता हैं फिर भी उंगलियां सेना पर ही क्यूं उठायी जाती है?

अगर, सारी आज़ादी उन लोगों को ही देनी हैं तो सेना को किस बात की आज़ादी दी गयी है। अगर, सारे फ़ैसले उन लोगों को ही करने हैं। अगर, आतंक उन लोगों को ही फैलाना हैं तो सेना को किस बात की आजादी दी गयी है।

आजादी का यह मतलब नहीं की वह देशविरोधी नारे लगायें। या अपने तरीके से सैनिकों पर पत्थरबाजी करें। अगर, ऐसा ही चलता रहा तो सेना को बख़ूबी अपने तरीके से जबाव देना आता। यह बात वहां के लोगों और सरकार को अच्छे से समझने की जरूरत है।
वहां के लोगों को सेना के प्रति अपना स्वभाव अच्छे से रखना होगा तभी शायद वहां पर शांति और सौहार्द की कल्पना की जा सकती है।

#श्री कृष्ण
दिल्ली विश्वविद्यालय

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