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काश मुझे समझ पाती

28/05/2018
सतना (मध्यप्रदेश )

“आज फिर पुराने किये गए वायदे हमने तोड़ दिए। आज फिर तकरार हुई, फिर मुझे उस पर क्रोध आया। उस पर क्रोध जिससे मैं बेइंतहा मोहब्बत करता हूँ। हम जब फिर उस झगडे के बाद वापस मिले थे तब वादा किया था कि अब कभी नही एक दूसरे का दिल दुखायेंगे, अगर कोई नाराज भी हो जाता है तो उसे मनाएंगे। बात नही करता कोई तो खुदसे पहल करके बात शुरू करेंगे। ना जाने भावनाओ में बह कर कितने मीठे मीठे व मृगमरीचिका सामान वादे हम दोनों कर बैठे। परंतु अंदर ही अंदर हमदोनो एक दूसरे को बखूबी जानते थे की दोनों के लिए अपने आत्मसम्मान प्रेम से कही अधिक प्रिय है, हम दोनों कभी पहल खुदसे नही कर सकते। हाँ एक दूसरे के लिए आंसू जरूर बहा सकते है , एक दूसरे के बिना बीमार भी हो जाते है पर बात करने की पहल नही कर सकते।
मैं तुम्हे समझता हूँ अपनी मजबूरियों को पर तुम उन्हें कभी समझ ही नही पाती। हर क्षण पल पल सोचता रहता हूँ की ‘ काश कभी मुझे समझ पाती ” ।

स्वरचित? मयंक रविकान्त अग्निहोत्री।

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