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ट्रांस जेंडर की ओर से एक गुजारिश : विद्या राजपूत

लोग घरों में कुत्ता, बिल्ली, तोता, खरगोश, चूहा आदि तो पाल लेते है। प्यार भी करते हैं और उनसे उनका एक भावनात्मक लगाव भी होता है। लेकिन ट्रान्सजेंडर इन जानवरों से भी बुरे होते हैं जिन्हें घर-परिवार नसीब नहीं होता। लोग ट्रान्सजेंडर को ऐसे देखते है जैसे वो इंसान ही ना हो।
एक बच्चा जो अपने बढ़ते उम्र में यह महसूस करता हो कि उसका नेचर जैसे पसंद-नापसंद, पहनावा, बर्ताव, सोच, filling लड़कियों के समान है लेकिन वह यह भी देखता है कि वह शारीरिक रूप से पूरा लड़का है। वह अपनी यह बात सिर्फ इसलिए किसी से कह नहीं पा रहा होता है, क्योंकि समाज लगातार उसे लिंग (sex) के आधार पर फिक्स जेंडर रोल को निभाने के लिए दबाव बना रहा होता है। वह समाज कोई और नहीं हम और आप हैं। दबाव के कारण उस बच्चे को हर पल एक लड़का होने की acting करनी पड़ती है। यह समस्या और बढ़ जाती है जब इस समस्या को समझने के बजाए बच्चे के स्वाभाविक व्यवहार को डाँटकर, मारपीटकर या फिर गाली-गलौच करके दबाने की कोशिश की जाती हैं। हम विविधता को स्वीकार करने के बजाए उसका ही मज़ाक बना देते है।
डांट, मारपीट से बच्चा अपने नेचुरल व्यवहार के प्रति भी सजग हो जाता है, वह उन व्यवहारों को करने की कोशिश नहीं करता जिनकी वजह से उसे यातना सहनी पड़ रही होती है। बल्कि वह वही करने की कोशिश करता है जो समाज उससे आशा करता है अर्थात वह मर्दाना आवाज में बात करने की कोशिश करता है, सीना तानकर चलने की कोशिश करता है, लड़कों के साथ रहने लगता है ताकि लोग उसे छक्का, हिजड़ा या मामू ना कहें। इसके बाद भी जब परिस्थितियाँ नहीं सुधरती तो मन में एक ही सवाल आता हैं कि ‘मैं ऐसा क्यों हूँ।’ इस सवाल के साथ बच्चा बिलकुल अकेला हो जाता है। परिवार उस बच्चे को बदनामी के डर से घर से निकाल देती है। या फिर इतना प्रताड़ित कर देती है कि वह खुद ही घर छोड़ दें। ज़्यादातर ऐसे बच्चे इन तमाम परेशानियों के कारण पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते, या फिर पढ़ाई के बीच में ही घर छोड़ देने के कारण आगे की पढ़ाई नहीं कर पाते है। अब जब वह घर से निकाल दिया जाता है तो सबसे बड़ी समस्या उसके सामने आजीविका और रहने की आती है। इसके लिए वह या तो हिजड़ा डेरे में शामिल होकर बधाई मांगता है या ट्रेन में भिक्षावृत्ति करता है। इससे रोटी तो मिल जाती है लेकिन इज्जत और सम्मान नहीं मिल पाती। ऐसा नहीं है कि ये बच्चे पढ़ना नहीं चाहते या काम नहीं करना चाहते, लेकिन संसाधन ना होने के कारण यह बच्चे पढ़ नहीं पाते। तो हमारी गुजारिश आप सभी से है कि आप ट्रान्सजेंडर बच्चों को पढ़ाने के लिए गोद लीजिए।

मैं जन्म नहीं दे सकती,
जन्म देने वाले आप हैं ,
आप जैसे माता-पिता की बच्ची हूँ।
ये बच्चे आजीविका के उन साधनों को नहीं अपनाना चाहते जो रोटी तो देता है लेकिन इज्जत और सम्मान नहीं दे पाता। मानवीय गरिमा के साथ सम्मान पूर्ण जीवन का अधिकार सबका है। सरकारी प्रयासों के बावजूद हमें आपका सहयोग चाहिए क्योंकि कानून बना देने से बदलाव नहीं आने वाला है, बदलाव आपसे और हमसे आएगा। ट्रान्सजेंडर बच्चों को स्वीकार कीजिए, उन्हें सम्मान दीजिए, अगर हो सके तो उन्हें पढ़ाने के लिए गोद लीजिए।

विद्या राजपूत, ट्रांसजेंडर सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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