हमने दर्जन भर कैंडल खरीद ली है क्योंकि हमें पता है ये घटनाएं रुकने वाली नहीं है। हर दिन हर घंटे कोई ना कोई महिला किसी के हवस का शिकार बनती हैं, फिर क्या फर्क पड़ता है कि वो 90 साल की है या 9 महीने की। हां वो बात अलग है कि हमें अब उसके धर्म से फर्क पड़ने लगा है हिंदू होगी तो हिंदू प्रोटेस्ट करेंगे, मुस्लिम होगी तो मुस्लिम। सरकारें कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने का हवाला देती रहेंगी लेकिन ऐसा कोई कानून नहीं बना पाएंगी, जिससे रेप करने वाले को 100 दफा सोचना पड़े।
उन्हें भी पता है हम भूल जाएंगे कुछ दिन में जैसे भूलते आ रहे हैं। ये तो फिर भी कुछ केस हैं जो हो हल्ला में सामने आ जाते हैं और आपको थोड़ा गुस्सा भी आ जाता है। लेकिन बहुत से गांव और कस्बे ऐसे हैं जहां इन लड़कियों की सिसकियां दबा दी जाती हैं। वैसे भी क्या फर्क पड़ता है ये सब मुद्दे कौन से बड़े अहम हैं। सरकारें आती हैं, जाती हैं और अपनी उपलब्धियों में महिला सुरक्षा को बढ़ाने का दावा भी करती हैं। उसके बावजूद ये घटनाएं नहीं थम रहीं तो दोष किसका है?
ज़रूर इन लड़कियों का होगा जो बिना सोचे समझे निकल पड़ती हैं घरों से पढ़ने के लिए, बाज़ार जाने के लिए तो कभी सहेली से मिलने के लिए। जबकि हम हज़ार दफा बता चुके हैं कि वो घर के अंदर रहे। पत्नी के साथ रेप को हम रेप नहीं मानते क्योंकि वो पति का हक हो जाता है। ऐसी जघन्य घटनाओं पर भी हमारा ज़मीर सोया रहता है क्योंकि हम अपनी बारी आने का इंतजार करते हैं।
लगातार बढ़ते बलात्कार का एक असर ये भी है कि गांवों में लड़कियों की पढ़ाई बीच में बंद हो जाती है और उनकी जल्दी शादी कर दी जाती है जिससे वो अपने घर की हो जाएं और मां बाप के माथे पर ये कलंक न लगे। एनसीआरबी के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार 2017 में देश में 28,947 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना दर्ज की गई। इसमें मध्यप्रदेश में 4882 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना दर्ज हुई, जबकि इस मामले में उत्तर प्रदेश 4816 और महाराष्ट्र 4189 की संख्या के साथ देश में दूसरे और तीसरे राज्य के तौर पर दर्ज की गई है। बहुत से मामले तो ऐसे होंगे जो दबंगों या लोक लाज के डर से दर्ज ही नहीं हुए हैं।
हम किस ओर जा रहे हैं, किस राष्ट्र की बात कर रहे हैं। हममें शर्म थी ही नहीं या अब हमें आती नहीं है क्योंकि ये तो रोज़ का हो गया है। हम महिला सुरक्षा के मामले पर अपनी तुलना करने भी बैठते हैं तो सीरिया से करते हैं। सर्वे रिपोर्ट को झूठा करार देने से सच्चाई नहीं बदलती। हम अपने देश की महिलाओं को सुरक्षा नहीं दे सकते ये मान लें और उनके आगे हाथ जोड़कर माफी मांगकर ये कह दें कि हम असमर्थ हैं, इन घटनाओं को रोकने में।
आप रेप की पीड़ा को नहीं समझ सकते ये मानसिक और शारीरिक कष्ट देने वाला है। हम छेड़खानी के मामलों को गंभीरता से नहीं लेते क्योंकि हमें इतंज़ार होता है रेप के होने तक का। जैसे रेप होता है हम निकल पड़ते हैं दर्जनों कैंडल के डिब्बे में से एक निकाल कर और फोटो क्लिक कराकर फेसबुक पर पोस्ट कर देते हैं। हैशटैग जस्टिस फॅार फलाना धमाका के साथ।