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दलितों के मसीहाओं ये पक्षपात क्यों ?

पश्चिम बंगाल में दलितों के साथ जो रहा है वो देश के दलित चिंतकों, दलित नेताओं और दलितों के मसीहा पत्रकारों को नहीं दिख रहा…या यों कहें कि जानबूझकर आंखें मूंद कर बैठे हैं…पश्चिम बंगाल के बलरामपुर के दाभा गांव में एक और दलित दुलाल कुमार को खंभे से फांसी के फंदे पर लटका दिया गया जी हां ठीक वैसे ही जैसे बुधवार को बलरामपुर के ही पढ़िह गांव के पास जंगल में 18 साल के दलित युवक त्रिलोचन महतो को फांसी पर लटका दिया गया था…लेकिन अफसोस दलितों के कथित मसीहाओं को दलितों का ये कत्लेआम दिखाई नहीं दे रहा..यूपी में बैठी दलितों की देवी, गुजरात में बैठे दलितों के ठेकेदार, जेएनयू में विराजमान दलित-मुस्लिम एकता के पुरोधा और पत्रकारिता के शिखर पर आसीन वरिष्ठ पत्रकार..सबने अपनी आंखें मूंद रखी हैं…क्या सिर्फ इसलिए कि मरने वाले दलित, बीजेपी के कार्यकर्ता थे ?..उस बीजेपी के जिसके ये सभी धुर विरोधी हैं। पक्षपात की इस राजनीति को आखिर माना क्या जाए ? इंसानियत कहती किसी के बनिए तो हर तरह से बनिए….नहीं तो दिखावे की इंसानियत का अचार नहीं डालना है….ये कथित दिग्गज महानुभाव भी यही कर रहे हैं…रोहित वेमुला की मौत और गुजरात में दलितों के साथ हुए अन्याय पर संग्राम को आतुर दलितों के सभी सूरवीरों के बयानों और आंदोलनों की तलवारों में जंग लग गया है या फिर बंगाल की देवी के आगे घुटने टेक दिए हैं….या फिर राजनीति की खीर को दीदी से व्यवहार खराब करके फीका नहीं करना चाहते….जवाब तो देना ही होगा…नहीं दोगे तो जनता देगी

प्रमोद कुमार “सतीश”

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