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सरकारी अनदेखी ने भूमि विवाद में जलाए गए दलित परिवार के आखिरी सदस्य की भी जान ले ली

बिहार में पिछले दिनों एक दलित परिवार को ज़िंदा जलाने की घटना सामने आई थी। परिवार के तीन सदस्यों की मौत तो तत्काल ही हो गई थी। जबकि बज्जन दास नामक एक सदस्य, जो उस परिवार का मुखिया था, उसे बिहार के ही भागलपुर स्थित मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जो ज़िंदगी और मौत से जूझ रहा था। अब खबर मिल रही है कि उसकी भी मौत हो गई। और इस तरह एक पूरे परिवार का दर्दनाक अंत हो गया।

अब उस परिवार में कोई नहीं बचा। बज्जन दास से न्याय मंच, पीएसओ, अम्बेडकर-फुले युवा मंच और अन्य सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने अस्पताल जाकर मुलाकात की थी। बिहार के कटिहार ज़िले में पिछले दिनों एक दलित परिवार को घर के भीतर आग में झोंक दिया गया था। इस घटना में इस दलित परिवार के चार सदस्यों में से एक गर्भवती विकलांग महिला और उसके दो छोटे-छोटे बच्चे सहित तीन आग में झुलस कर मारे जा चुके थे।

परिवार के एक मात्र सदस्य 40 वर्षीय बज्जन दास की हालत अत्यंत ही नाज़ुक बनी हुई थी। उसका पूरा जिस्म आग में बुरी तरह जल गया था। कटिहार से उसे भागलपुर के जवाहर लाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल लाकर बर्न वार्ड में भर्ती ज़रूर किया गया था, लेकिन अस्पताल के बर्न वार्ड की दुर्दशा को देखते हुए हमने यह स्पष्ट रूप में महसूस किया था कि इसकी उम्मीद कम ही है कि उसे ज़िंदा बचाया जा सकेगा।

इसलिए हमलोगों ने तत्काल उसे इलाज की बेहतर सुविधा दिए जाने की मांग की थी, लेकिन, इतनी क्रूर व अमानवीय घटना के पीड़ित की सुधि लेने की फुर्सत पटना-दिल्ली की सरकार और विपक्षी पार्टियों को नहीं थी। बजरंग दल सरीखे संगठन इस पूरे मामले को लेकर कटिहार में स्थानीय स्तर पर साम्प्रदायिक रंग देने की मुहिम में लग गए हैं।

पीड़ित परिवार के रिश्तेदारों ने हमें बताया था कि बजरंग दल के लोगों ने घटना स्थल पर पहुंच खून का बदला खून से लेने का ऐलान किया है।

इस पूरे मामले को साम्प्रदायिक रंग इसलिए दिया जा रहा है क्योंकि अब तक इस घटना का आरोप एक मुस्लिम परिवार पर लगा है। जबकि बज्जन दास के रिश्तेदारों से बातचीत करने पर पता चला कि यह पूरा मामला साम्प्रदायिक ना होकर भूमि विवाद से जुड़ा हुआ है। इस दलित परिवार के रिश्तेदारों के मुताबिक बज्जन दास ने कोई एक माह पूर्व कटिहार ज़िले के आज़मनगर थाना अंतर्गत घोरदो नामक गांव में चाय-नास्ते की एक छोटी सी दुकान सड़क किनारे झोंपड़ी बनाकर खोली थी।

दुकान के पीछे उसी झोंपड़ी में वह अपने 4 सदस्यीय परिवार के साथ रहता भी था। दुकान के पीछे की ज़मीन एक नाई जाति के परिवार की थी। बज्जन ने जब यह दुकान लगाई थी, उस वक्त किसी ने कोई विरोध नहीं किया था। किन्तु कुछ दिन पूर्व यह ज़मीन एक मुस्लिम परिवार को बेच दिया गया और उसने एक-दो बार दुकान हटाने का दबाव बनाया था।

लेकिन, इस बात को लेकर कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं हुआ था। उस दलित परिवार की यह सामाजिक-आर्थिक हैसियत भी नहीं थी कि वह स्थानीय लोगों से पंगा ले सके। उसने कुछ दिन में ज़मीन खाली कर देने की बात कही थी, इसी बीच यह अमानवीय घटना को अंजाम दे दिया गया।

बज्जन दास के रिश्ते में साले चन्दन दास ने हमें बताया कि वर्ष 2012 में उसकी बहन की शादी बज्जन से हुई थी। बहन विकलांग थी, उसके दोनों पैरों को बचपन में ही पोलियो मार गया था। शादी के बाद से भूमिहीन बज्जन दास ससुराल के गांव- हरनागढ़ में ही बस गया था और मज़दूरी कर अपना घर चलाता था। मेहनत-मज़ूरी से तिनका-तिनका जोड़कर उसने एक माह पूर्व ही ससुराल गांव के समीप के ही घोरदो चौंक पर यह दुकान खोली थी और वहीं रहने भी लगा था।

पत्नी 5 माह के गर्भ से थी और दो बेटियां प्रीति और किरण क्रमशः 4 वर्ष और 2 वर्ष की थी। रात्रि तकरीबन दस बजे जब अपने बाल-बच्चों के साथ यह दलित परिवार झोपड़ी में सोया हुआ था, उसी वक्त झोपड़ी के भीतर तीव्र ज्वलनशील पदार्थ डालकर इस बर्बर घटना को अंजाम दिया गया।

ज्वलनशील पदार्थ डालकर आग इस तरह लगाई गई थी कि पूरी झोपड़ी पूरी तरह से सुरक्षित रह गई और घर के सभी सदस्य आग में झुलस गए। घटना में परिवार के सभी सदस्यों के अलावा बिस्तर और मच्छरदानी ही केवल जला है। बताया जाता है कि आग लगाकर झोपड़ी के दरवाज़े को बाहर से बंद कर दिया गया था, ताकि भागने की कोई गुंजाइश ना रहे। दोनों बच्चियों की मौत तो मौके पर ही हो गई जबकि गर्भवती महिला ने अस्पताल में दम तोड़ दिया।

इस जघन्य घटना में परिवार का यही एक मात्र सदस्य जीवित बच पाया था, जिसे बचाने के लिए सरकार ने समुचित ध्यान नहीं दिया। अंततः अस्पताल में ही उसने दम तोड़ दिया। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि यह घटना ठंढे दिमाग से रची गई साजिश का नतीजा है।

फिलहाल पुलिस ने आरोपी परिवार के एक स्त्री और पुरुष को गिरफ्तार किया है। भागलपुर के सामाजिक संगठनों के शिष्टमंडल ने इस बर्बर-अमानवीय घटना के सभी दोषियों को अविलंब गिरफ्तार कर स्पीडी ट्रायल चलाकर कठोर सज़ा देने की मांग की थी। साथ ही उस वक्त ज़िंदगी-मौत से जूझ रहे गंभीर रूप से जल चुके बज्जन दास को देश के उच्च बर्न हॉस्पीटल ले जाकर बेहतर इलाज की गारंटी व इलाज का पूरा खर्चा राज्य सरकार से उठाने की मांग की थी, जिसे अनसूना कर दिया गया था।

शिष्टमंडल के सदस्यों ने राज्य में दलितों-कमज़ोर तबकों पर बढ़ती हिंसा के लिए राज्य सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हुए दलितों पर इस किस्म के क्रूर हमले को सांप्रदायिक रंग देने की घृणित कोशिशों की भी तीखी आलोचना की। उक्त संगठनों के प्रतिनिधियों ने कहा था कि बिहार जिस किस्म की बर्बरता की तरफ बढ़ रहा है, उसके लिए राज्य सरकार ज़िम्मेदार है।

दलितों-भूमिहीनों के पक्ष में भूमि सुधार की दिशा में राज्य सरकारों द्वारा ठोस कदम नहीं उठाये जाने व सवर्ण-सामंती शक्तियों तथा अपराधियों को खुली छूट की वजह से ही ऐसी बर्बर घटनाएं हो रही हैं। इन बर्बर घटनाओं के निशाने पर दलित-महादलित और कमज़ोर तबके ही रहते हैं। सामाजिक न्याय और सुशासन का ढिंढोरा पीटने वाले नीतीश-लालू की सरकारों ने पिछले तीन दशकों में अगर भूमि सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाया होता तो मुमकिन है ऐसी घटना ना होती। उक्त शिष्टमंडल के सदस्यों ने राज्य सरकार से मांग की है कि ना तो बर्बर हिंसा के दोषियों को छूट मिलनी चाहिए और ना ही घटना के आधार पर सांप्रदायिक उन्माद फैलाने वालों को छूट मिलनी चाहिए।

जदयू व भाजपा के नेतृत्व में बिहार मध्ययुगीन बर्बरता की ओर बढ़ रहा है। ब्रह्मणवादी-सामंती-सांप्रदायिक शक्तियों को मिली छूट बिहार को बर्बरता की ओर ले जा रहा है। दलित बड़े पैमाने पर भूमिहीनता के शिकार हैं, इस कारण उनका जीवन असुरक्षित व अपमानजनक हो जाता है और सामंतों व दबंगों की हिंसा के निशाने पर आसानी से आते हैं।

बहरहाल इस पूरे परिवार की बर्बर हत्या 21वीं सदी में जारी बर्बरता पर ढेर सारे सवाल छोड़ गई है, जिसका जवाब राज्य सत्ता के साथ-साथ समाज को भी देना होगा। अब तो इस परिवार का कोई सदस्य कोर्ट-कचहरी-मुकदमा जाने वाला भी ना बचा। तब फिर सवाल उठता है कि क्या इस बर्बर हत्या को अंजाम देने वाले कातिलों को सज़ा हो पाएगी?

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