Site icon Youth Ki Awaaz

परियोजनाओं की जद में देवभूमि का अस्तित्व…

देवभूमि उत्तराखंड की प्राकृतिक सुन्दरता का भला कौन दीवाना नहीं होगा…पर विकास के नाम पर लगातार हो रहे विनाश से शायद ही कोई अनभिज्ञ होगा। परियोजनाओं के नाम पर यहाँ प्रकृति का दोहन आज आम बात हो गयी है। जिस तरह इन परियोजनाओं पर बिना पूरी ज़मीनी हक़ीक़त को जाने क्रियान्वयन हो रहा है। उससे यह डर फिर घर करने लगा है कि कही फिर इस राज्य को कोई बड़ी तबाही न झेलनी पड़े जिसके यहाँ के अस्तित्व पर खतरा मंडराए।

आम जनता की परेशानियों, पर्यावरणविदों की चिंता और…

कभी टिहरी डैम के नाम पर लोग विस्थापित होते है, तो कभी पंचेश्वर बांध के नाम पर सभ्यताओं, और क्षेत्र जलसमाधि में लीन हो जाता है। कभी चारधाम परियोजना के नाम पर हज़ारों पेड़ का कटान होता है। तो कभी रेलमार्ग परियोजना के नाम पर वन्य जीवों की ज़िन्दगी प्रभावित होती है। लगातार बन रही इन परियोजनाओं को सब मूर्त रूप में तो देखना चाहते है। लेकिन आम जनता की परेशानियों, पर्यावरणविदों की चिंता और एनजीटी की रिपोर्ट्स की अनदेखी करते हुए।

मलबा क्षेपण की नीति न करने से ये खतरा दोगुना…

विगत हो कि हिमालय का निर्माण लगभग 5 करोड़ साल पहले धरती की दो बड़ी टेक्टॉनिक प्लेटों के बीच हुई टक्कर से हुआ है। इस हलचल भरे पहाड़ में ये टक्कर आज भी जारी है। जिससे हिमालय में बड़े भूकंप के आने का खतरा बरक़रार है। लगातार पहाड़ो को खोदकर खोखला करना। नदियों, नौले धारो का मार्ग अवरुद्ध करना। और सही तरीके से मलबा क्षेपण की नीति न करने से ये खतरा दोगुना हो गया है।

आज सवाल ये भी हो गया हैं कि क्या कभी मनुष्य…

आज सवाल सिर्फ ये नहीं रह गया है कि राज्य का विकास होगा या नहीं लेकिन आज सवाल ये भी हो गया हैं कि क्या कभी मनुष्य प्रकृति से अपने रिश्ते को समझ पाएगा… या फिर हमेशा उसकी चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करते हुए उसका अंधाधुंध दोहन ही करता रहेगा? क्या ये जल, जंगल और ज़मीन जो कि आज खुद के अस्तित्व को बचने को लड़ रहे है वो हमें दुबारा मिल पाएंगे? और क्या हमारी आने वाली पीढ़ियां इस राज्य की अलौकिक सुंदरता को हक़ीक़त में देख पाएंगी या फिर ये बस किताबो और चलचित्र तक ही रह जाएंगी…!

Exit mobile version