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मैं जब काशी

मैं स्वयं में,
परमानन्द की प्राप्ति करता हूँ ,
जब काशी की सुबह स्मरण करता हूँ,
मैं स्वयं में शांति की प्राप्ति करता हूँ,
जब काशी की सांझ को ध्यान करता हूँ।
गंगा आरती के उस विहंगम दृश्य को,
जब जब सोचता हूँ ,न जाने क्यों आस्तिक सा बन जाता हूँ,
मैं हर बार पूर्णता का अनुभव करता हूँ ,
जब याद करता हूँ , काशी के घाटों को,
कितना सुन्दर सा परिदृश्य
मेरे आस पास नृत्य करता हुआ सा दिखता है मुझे,
बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद
प्राप्त होता प्रतीत होता है मुझे
ऊर्जा व् उत्साह से लबरेज हो जाता हूँ,
गंगा में चलती नौकाएं,
बरबस ही मुझे अपनी ओर आकर्षित कर लेती है , फिर
जीवन के संघर्षों को यही दफ़नाने का ख्याल सा आता है ,
सारे दुःख दर्द गंगा माई की गोद में , बहा देने का मन होता है ।
मैं स्वयं में सात जन्मों का सफर कर लेता हूँ ।
जब मसान में जलती चिताएं देखता हूँ,
देखता हूँ उनकी लपटे , जो छूना चाहती है ,
आसमान की ऊंचाइयों को ,
जलाकर राख कर देना चाहती है ,
भयानक वीभत्स सा वो नजारा
पर कितनी शांति का अनुभव ,
समस्त पाप पुण्यो से मुक्ति,
सारे दुःख दर्द , आराम व्यसन की
इहलीला का समापन वही मसान में जलती चिता में अनुभव करता हूँ मै।
सच काशी स्थान बहुत प्यारा ,
जीवन का दर्शन , दर्शन का जीवन
समस्त ज्ञान मिल जाता है ,
अहंकारी , दंभी , पाखंडी
अमीर गरीब सब एक सामान आये जाते है ,
सबको यहाँ शांति मिलती है ,कर्मो से आजादी मिलती है ,
गंगा किनारे का ये नजारा अद्वितीय है,
जीवन के हर एक पल में मैं
काशी को जीना चाहता हूँ
निराशा , आशा के संघर्षों में ,
काशी की गंगा पीना चाहता हूँ,
मैं परमानन्द की प्राप्ति करता हूँ।
जब काशी ……

मयंक अग्निहोत्री??

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