राजस्थान की राजनीति में ये इतिहास रहा है कि यहां की जनता ने कभी किसी पार्टी को लगातार सेवा का अवसर नहीं दिया। यहां हर बार सत्ता परिवर्तन की प्रथा रही है। इस वर्ष के अंत मे विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं, भले ही सत्ताधारी भाजपा के पास प्रदेशाध्यक्ष के नाम पर कोई चेहरा नहीं है, लेकिन ये औपचारिक घोषणा ही चुकी है कि चुनाव मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। वहीं दूसरी ओर साल के शुरुआत में उपचुनाव में जीत के बाद कांग्रेस में उत्साह और आत्मविश्वास दोनों ही है, लेकिन ये स्पष्ट कर दिया गया है कि मुख्यमंत्री के चेहरे की घोषणा किये बिना, चुनाव प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। अब देखना ये है कि जनता इतिहास बदलती है या फिर से सत्ता परिवर्तन कर इतिहास दोहराती है। आपकी क्या राय है?