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“शादियों में लड़का-लड़की का मेडिकल सर्टिफिकेट हो अनिवार्य”

पूरी दुनिया में शादी दो तरीके से होती है। पहली जिसमें परिवार वाले सेटिंग करा दें, यानी कि अरेंज मैरिज। और दूसरी जिसमें लड़का लड़की खुद एक दूसरे को अखियों से गोली मार दें, यानी लव मैरिज। इन दोनों सूरत-ए-हाल में वर वधु के मेडिकली फिट होने की चिंता किसी को नहीं सताती है।

तमाम पोगा पंडितों से कुंडली मिलवाने के बाद, महीनों सालों डेट पर वक़्त और धन इन्वेस्ट करने के बाद, एक दिन में लाखों बर्बाद करने के बाद, जब वर को वधु के बारे में, और वधु को वर के बारे में पता चले कि सामने वाला/वाली किसी ऐसे लाइलाज़ बीमारी से ग्रसित है, जिसका असर उनके वैवाहिक, सामाजिक, शारीरिक, मानसिक जीवन पर पड़ेगा, तो सोचिये उनपर क्या बीतेगी?

भारत में शादी पर तमाम उलूल-जलूल चीज़ों का ख्याल रखा जाता है जैसे कि लड़के के मौसा नाराज़ ना हो जाएं, लड़की की दूर वाली बुआ नाराज़ ना हो जाए, मगर इन ज़रूरी बातों पर ध्यान किसी का नहीं जाता है।

भारत में कई ऐसी शादियां होती हैं, जहां वर-वधु पक्ष को धोखे में रखकर अपने निज स्वार्थ सिद्ध किये जाते हैं। जैसे लड़के या लड़की की कोई बीमारी। मैं यह नहीं कह रहा कि चन्द कमियों के कारण उनसे उनका संसार बसाने का हक छीन लिया जाएगा, बिल्कुल नहीं। मगर किसे, किस तरह से और किससे शादी करनी है ये फैसला यदि स्वतंत्र और बिना किसी पर्दे में ढका हो तो ही बुनियाद मज़बूत होगी।

मेरे इस लेख पर यह सवाल ज़रूर दागा जा सकता है कि क्या मैं मेडिकल रिपोर्ट के बहाने सामने वाले की कौमार्यता को परखना, जानना चाह रहा हूं, तो इसका उत्तर है नहीं, मतलब नो।

वर्जिन होना या ना होना एक व्यक्ति के जीवन पर कितना असर करेगी, ये उस इंसान के सोचने और समझने की क्षमता पर निर्भर करता है। मैं इस चीज़ के बिल्कुल पक्ष में नहीं हूं कि हमें महज़ किसी के वर्जिनिटी से उसके करैक्टर का पता लगाना चाहिए। यह एक ज़रूरी मुद्दा है, जिसे पार्टनर्स को बिना झिझक एक दूसरे को बता देनी चाहिए, ताकि चीज़ें शादी से पहले ही क्रिस्टल क्लियर हो। ताकि शादी के बाद लड़की को उन बेहूदा परम्पराओं से ना गुज़रना पड़े जहां खून के कुछ छीटें उसके आने वाले जीवन के पलों को तय करें।

मुद्दे पर वापिस लौटूं, तो ज़हन में यही सवाल आता है कि हम कब इन ज़रूरी चीज़ों पर चर्चा करने की हिम्मत जुटा पाएंगे?

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