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त्रिवेंद्र सिंह आपका बर्ताव बताता है, आपको जनता की बिलकुल फिक्र नहीं

दो दिन पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह की जनसुनाई का वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें अपनी फरियाद ले कर आयी एक अध्यापिका के प्रति उनके बर्ताव की खूब आलोचना की जा रही है। दरअसल, वो महिला 25 वर्षों से अपने गृह ज़िले से दूर काम कर रही है। पति की मृत्यु के बाद अब वो चाहती हैं कि अपने बच्चों के साथ रहे और इसीलिए अपने ट्रांसफर की अर्ज़ी लेकर वो जनसुनवाई में पहुंची थीं। लेकिन बिना वजह उस अध्यापिका के साथ जिस तरह का बर्ताव त्रिवेंद्र सिंह ने किया, वो ना सिर्फ चौंकाने वाला था, बल्कि एक महिला और फरियादी के प्रति इस तरह का बर्ताव मुख्यमंत्री पद पर बैठे आदमी को शोभा भी नहीं देता।

वीडियो को सही से देखकर आंकलन किया जाये पता चलता है कि महिला ने विनम्रता से अपनी बात रखनी चाही, लेकिन मुख्यमंत्री ने उसकी पूरी समस्या सुनना भी ज़रूरी नहीं समझा। उन्होंने बात बीच में ही काट दी और फटकार लगाना शुरू कर दिया। ऐसे में घंटो अपनी बारी का इंतज़ार कर रही उस महिला के सब्र का बांध टूट पड़ा और उसने स्पष्ट रूप से बोल दिया, “भले ही कोई नेता हो, लेकिन जनता की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए”

ऐसे में त्रिवेंद्र सिंह ने उस अध्यापिका को ना सिर्फ सस्पेंड कर दिया, बल्कि सुरक्षा बल को आदेश भी दिया कि उन्हें बाहर निकाल दे। अब सवाल ये उठता है कि जब जनता द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री उन्हीं की समस्या को गंभीरता से नहीं लेंगे, तो फिर जनता जाये तो कहां जाये?

मुख्यमंत्री जी यदि उस महिला की सहायता करने में असमर्थ हैं तो कम-से-कम उसकी समस्या अच्छे से सुन और समझ तो सकते ही थे और ये आश्वासन देकर भी भेज सकते थे कि हम इस पर विचार करेंगे। लेकिन, मदद की उम्मीद से जनसुनवाई में पहुंचे फरियादी को यदि स्वयं मुख्यमंत्री इस तरह से धमकाएंगे तो फिर ये ढोंग करने की आवश्यकता ही क्या है?

इस पूरे घटनाक्रम ने ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि नेता और मंत्री जनता की समस्याओं को लेकर कितने गंभीर हैं? जो चुनाव से पहले हाथ जोड़कर आपकी समस्याएं दूर करने के वादे करते हैं, सत्ता में आने के बाद उन्हीं के तेवर बदल जाते हैं। जिनकी चुनावी सभाओं में जनता कड़ी धूप, तेज़ बारिश और कड़कड़ाती ठंड में भी घंटों उनके लम्बे भाषण सुनती है, चुनाव जीतने के बाद उनके पास जनता की समस्याएं सुनने का भी समय नहीं होता। ऐसे में अब जनता को जागरूक होकर अपने नेता चुनने चाहिए, वोट देने से पहले प्रत्याशियों के काम का आंकलन करना चाहिए, ताकि अपने मतदान के अधिकार से कुर्सी तक एक ऐसा व्यक्ति पहुंचे जो वाकई जन कल्याण की भावना रखता हो।

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