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मां-बहन की गाली देने वाले समाज को पिता-बेटी के रिश्तों की सीमा तय करने का हक नहीं

हमारे भारतीय समाज ,

आशा है मेरी ये चिठ्ठी आपको पसंद नहीं आएगी और इसको पढ़ने के बाद आप जितना हो सके उतने अपशब्दों का इस्तेमाल करेंगे। फिर भी बिना किसी डर और हिचक के मैं ये चिट्ठी लिख रही हूं और उम्मीद करती हूं कि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इसे पढ़ें।

तो ये सच्ची कहानी है 1983 की जब एक पांच बेटियों और तीन बेटों के पिता अपने सबसे बड़े बच्चे जो कि एक लड़की है को रात में अक्सर पेशाब यानी Pee कराने ले जाया करते थे। वो उस वक्त तक वॉशरूम के बाहर खड़े होकरअपनी बेटी का हाथ थामे रहते थे जबतक बेटी “हो गेले बाऊ यानी हो गया पापा” नहीं बोल देती।

इतना ही नहीं बेटी के पेशाब करने के बाद पिता उस जगह पानी भी गिराया करते। मैं बात कर रही हूं अपनी मां और नानाजी की। ये बातें आज से करीब 35 साल पहले की है उस वक्त मेरी मां की तबियत बहुत खराब रहती थी। कभी कभार वॉशरूम जाते-जाते मां को कपड़ों में ही पेशाब हो जाया करता था। तब नानाजी मां के साफ कपड़े लाकर जिनमें अंतःवस्त्र यानी अंडरगार्मेंट्स भी होते थे दिया करते थे और मां वॉशरूम का दरवाज़ा बिना लॉक किये बस परदा गिरा कर चेंज करती थीं और नानाजी बाहर खड़े होकर मां का इंतज़ार करते रहते थे और उन्हें सुलाने के बाद ही सोते थे। उस वक्त मेरी मां 20 साल की थीं।

ऐसी ना जाने कितनी बातें मां ने बहुत बार बताई हैं, पर नानाजी का ये गेस्चर्स मुझे सबसे प्यारा लगता रहा है।

ये होता है रिश्ता एक पिता और बेटी का। बताने की ज़रूरत नहीं कि ये सारी बातें मैं क्यों शेयर कर रही हूं। आमिर खान और उनकी बेटी इरा की एक फोटो को लेकर जो भूचाल मचा है, उसका ना कोई मतलब है ना कोई मतलब होगा। आमिर खान एक सेलेब्रिटी हैं और मेरे नानाजी एक आम इंसान पर दोनों ही बेटियों के पिता हैं। और पिता-बेटी का रिश्ता कैसा हो इसे डिफाइन या जज करने का हक ना 1983 में किसी को था ना ही 2018 में किसी को है।

आगे कुछ भी लिखने से पहले मैं यह मेंशन करना चाहती हूं कि मैं और मेरा पूरा परिवार बिहार राज्य से ताल्लुक रखता है। अब बात करती हूं मैं खुद की और अपने पापा की। मैं अपने पापा के बगल में किसी भी वक्त लेट या गहरी नींद में आराम से सोती हूं, आराम से मतलब टांगे फैला कर। जब मैं सोते हुए कभी डर जाती हूं तो पापा सर पर हाथ फेरकर मुझे सुला देते हैं। अगर कभी सुबह जागते वक्त अंगड़ाई लेती हूं तो पापा पीठ सहलाते हैं। ऐसे ना जाने कितने ही नॉर्मल प्यारे गेस्चर्स हैं जो पापा बचपन से ही करते आ रहे हैं और आज भी करते हैं।

मेरे पापा एक वक्त पर मेरे लिए पैड भी लेकर आ चुके हैं, मुझे गायनेकोलॉजिस्ट के पास भी लेकर जा चुके हैं और मेरे लिए पीरियड्स से रिलेटेड दवाइयां भी ला चुके हैं। जब घर में हम सपरिवार टीवी देखते हैं और उस वक्त कंडोम, प्रेगनेंसी किट, पैड, इंटिमेट हाइजीन से रिलेटेड विज्ञापन आते हैं तो हम चैनल चेंज नहीं करते।

अब बात करते हैं आमिर खान को दिए गए फालतू नसीहतों की। उन्हें कहा गया कि वो अपनी बेटी को कपड़े पहनने का सलीका क्यों नहीं सिखाते। एक बेटी पिता के साथ या उनके सामने कैसे कपड़े पहनती है ये दोनों की सहजता पर डिपेंड करता है। मैं अपने पापा के सामने दुपट्टा नहीं लेती। मुझे याद है 2011 में मेरी गर्दन के पास एक घाव हो गया था जिसका ऑपरेशन हुआ था। उस वक्त पापा कहते रहते थे बेटा तुम घर में पहनने के लिए वो वाला ड्रेस ले लो जिसमें सिर्फ एक ही साइड बांह होता है उनका मतलब one shoulder top से था।

मेरे पेरेंट्स ने हम भाई-बहनों हमेशा ये सिखाया है कि जगह और सिचुएशन के हिसाब से कपड़े पहनने चाहिए। आमिर खान ने भी अपने बच्चों को ये सिखाया होगा, इसलिए किसी और कुछ भी बोलने या सिखाने की ज़रूरत नहीं है।

ऊपर जो सारी बातें मैंने शेयर की हैं वो शेयर करना बिलकुल भी ज़रूरी नहीं है, लेकिन फिर भी ज़रूरी हैं क्योंकि हमारे समाज में ये सब नॉर्मल नहीं अश्लील माने जाते हैं। एक ऐसा समाज जो मां/बेटी/बहन/बहु से रिलेटेड गालियां गला फाड़ कर चिल्ला कर देता है वो कौन होता है ये तय करने वाला कि रिश्तों के पैरामीटर्स क्या होने चाहिए ? असल में रिश्तों का कोई पैरामीटर नहीं होता।

कोई भी रिश्ता तब तक बुरा नहीं हो सकता जब तक उस रिश्ते में असहजता, कुंठा,अपराध ना हो। प्यारे भारतीय समाज आपको किसी के भी बच्चों की इतनी ज़्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। ऐसी उम्मीद के साथ मैं ये चिट्ठी खत्म करती हूं कि आप जल्दी ही अपनी नसीहतों और अपशब्दों का बक्सा किसी और पर फोड़ेंगे।

आपके नाउम्मीद समाज का एक हिस्सा,
अपने पापा की बेटी।

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