Site icon Youth Ki Awaaz

CM रावत जी, ट्रांसफर की गुहार लगा रही शिक्षिका को धमका कर आपने जनता का विश्वास खोया है

नमस्कार मुख्यमंत्री जी,

आशा है आप अच्छे ही होंगे। आपने लोगों ने ज्ञापन और याचना पत्र तो खूब लिखे होंगे पर शायद आपको खुला खत पहली बार लिखा जा रहा होगा। वैसे तो ये मायने नहीं रखता कि इस खत का नंबर क्या है पर जिस पार्टी विशेष का आप हिस्सा हैं, वह पहले स्थान को ज़्यादा महत्व देती है तभी लगा कि इसे पहला खुला खत नाम देना ज़रूरी है।

कल एक वीडियो दिखा जिसमें एक उत्तरकाशी ज़िले के एक गांव नौगांव में पिछले 25 सालों से कार्य कर रही एक शिक्षिका उत्तरा पंत बहुगुणा जनता दरबार में आपसे ट्रांसफर से सम्बंधित मुद्दे पर अपनी बात कहने आई थी, परन्तु किसी कारणवश ये बातचीत गलत दिशा में मुड़ गयी और आपको उसे सस्पेंड करने के निर्देश देने पड़े।

मुख्यमंत्री जी फेसबुक पर सुबह एक वीडियो वायरल हो रहा था जिसमें उक्त शिक्षिका के द्वारा किया गया बर्ताव मुझे खल रहा था कि एक राजकीय शिक्षिका राज्य के प्रमुख यानि आपके साथ ऐसा बर्ताव कैसे कर सकती है और उसे ऐसा करना भी नहीं चाहिए क्योंकि हर पद की एक गरिमा होती है और उसे निभाना सभी से आपेक्षित है।

परन्तु जब शाम में मैंने पूरा वीडियो देखा तो मुझे महसूस हुआ कि शिक्षिका का आपा खोना पहले दौर का व्यवहार नहीं था। एक विधवा शिक्षिका जो 25 साल से दुर्गम क्षेत्र में नौकरी कर रही है वो अपने मुख्यमंत्री से उसकी बात सही से सुन लेने की अपेक्षा तो कर ही सकती है।

मुख्यमंत्री जी हमारा प्रदेश बहुत छोटा सा है, इस छोटे प्रदेश की सबसे बड़ी खासियत यह है कि हर कोई मुख्यमंत्री का नंबर लिए घूमता है और कोई ना कोई मंत्री किसी ना किसी का रिश्तेदार तो ज़रूर ही निकल जाता है। अगर रिश्तेदार ना भी निकले तो हर पार्टी कैडर के कुछ अति महत्वपूर्ण लोग जनता और प्रशासन के बीच में गेटवे बनाने का महत्वपूर्ण योगदान करते ही रहते हैं।

अगर ऐसे में भी शिक्षा विभाग जैसे सबसे बड़े तंत्र में बिना किसी गेटवे के कोई अपना काम करवाने की सोच भी रहा है तो व्यक्ति सच में बहुत निराश हो चुका है। आप उस से कम-से-कम सीधे मुंह बात कर ही सकते थे। एक मुख्यमंत्री सीधे तौर पर भीड़ के आखिर में खड़े इंसान को धमकाए तो इसमें नुकसान उस आखिरी इंसान का नहीं है, बल्कि मुख्यमंत्री का है जिसके पास खोने को बहुत कुछ है।

आपकी सरकार में राज्य ने गत वर्ष ट्रांसफर एक्ट विधानसभा में पारित किया और इस पर अपनी पीठ भी थपथपाई परन्तु हालत कुछ नहीं बदले। पीछे के रस्ते की कहानियां अभी भी बरकरार हैं। मैं खुद ऐसे कई लोगों से मिला हूं, जिन्होंने ज़िंन्दगी एक ही स्कूल में गुज़ार दी। खैर, मैं मानता हूं कि ट्रांसफर नीति के बाद भी गलतियां हो जाती हैं और भूल चूक में यह महिला भी रह गयी होगी।

सोशल मीडिया पर कई लोग आपके परिवार पर निजी हमले कर रहे थे कि आपकी धर्मपत्नी भी कई वर्षों से एक ही स्थान में कार्यरत हैं, परन्तु मैं मानता हूं कि अधिकतर मंत्रियों को पत्नियों की एक ही जगह में तैनाती भी शायद इसी भूल-चूक में शामिल होंगी जिन्हें वक्त रहते आप सुधार देंगे।

मुख्यमंत्री जी आपको उस विधवा शिक्षिका जो कि आपके तंत्र की एक अंग है उससे इस भाषा में बात नहीं करनी चाहिए थी जब महिला ने अपनी बात कही तो सवाल के जवाब में यह कहना, “नौकरी में आते समय क्या लिख कर दिया था?” उचित नहीं ही था। उसमें भावुक होकर महिला ने जब जवाब दिया, “ज़िन्दगी भर वनवास में रहेंगे, यह थोड़ी लिखकर दिया था।”

जब आपने थोड़ी बातचीत की टोन को अलग तरह से सेट कर दिया था तो उसमें प्रतिक्रिया तो आनी ही थी और वह प्रतिक्रिया इतनी भी बुरी नहीं थी कि आप उसे बाहर निकलवा दें और सस्पेंड करने की धमकी दें। शिक्षिका के बर्ताव को सही नहीं ही कहा जा सकता, परन्तु जब सामने मुख्यमंत्री आपा खो दे तो एक छोटा सा मुलाजिम कर भी क्या सकता है?

कल जनता दरबार में हुई यह घटना में टकराव उस महिला और आप का नहीं है। आप बहुत ताकतवर हैं, वो महिला बहुत कमज़ोर, यह टकराव की घटना है एक तंत्र की और एक तंत्र के सर्वोच्च पद पर बैठे इंसान की। आपकी पार्टी इतिहास को बहुत महत्वपूर्ण स्थान देती है, उसी इतिहास के पन्ने अगर पलट लीजिये तो कई राजाओं की कहानियां आपको मिल जाएंगी, जिन्होंने अपने आसपास की सच्ची घटनाओं को नज़रंदाज़ करते हुए अपने दरबारियों के सुनाये किस्सों पर ही ध्यान दिया। फिर एक दिन सब कुछ गवां बैठे। मुख्यमंत्री जी आपका राजतंत्र सच में गल चुका है जिसमें आपके अपने विधायकों और मंत्रियों के किस्से कहानियां बीच-बीच में सुनने को आ ही जाते हैं। पर ऐसे में आपने बहुत सरल रास्ता चुना कि ताकतवरों को रहने दो कमज़ोरों की आवाज़ को खत्म करो।

संत कवि रहीमदास जी का बहुत ही प्रचलित दोहा है-

क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात। 
का रहीम हरी का घट्यो, जो भृगु मारी लात।।

अर्थात उद्दंडता करने वाले हमेशा छोटे कहे जाते हैं और क्षमा करने वाले ही बड़े बनते हैं। ऋषि भृगु ने भगवान विष्णु की सहिष्णुता की परीक्षा लेने के लिए उनके वक्ष पर ज़ोर से लात मारी। मगर क्षमावान भगवान ने नम्रतापूर्वक उनसे ही पूछा, “अरे! आपके पैर में चोट तो नहीं लगी? क्योंकि मेरा वक्षस्थल कठोर है और आपके चरण बहुत कोमल हैं।”

भृगु महाराज ने क्रोध करके स्वयं को छोटा प्रमाणित कर दिया जबकि विष्णु भगवान क्षमा करके और भी बड़े हो गएं।अधिकतर प्रहार करने के लिए लात की भी आवश्यकता नहीं पड़ती, हमारी जिह्वा ही पर्याप्त होती है।

आप मुख्यमंत्री हैं और बड़े हैं ऐसे में आपसे अपेक्षा ही की जा सकती है। अपने तंत्र को संभालने के लिए उचित कदम उठाएं। इस बात को रहने ही दें कि पिछली सरकार ने ये किया वो किया। आप अगर पार्टी के मुख्यमंत्री से हटकर लोगों के मुख्यमंत्री बने तो शायद आपको लंबे वक्त तक याद किया जायेगा वरना जितने वक्त आप रहें उसके बाद पूर्व मुख्यमंत्रियों की लिस्ट तो हर राज्य की ही लंबी चौड़ी है, जिसे कोई भी याद नहीं ही रखता।

आप के राज्य का अदना सा एक लड़का
बिमल रतूड़ी

Exit mobile version