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“कोचर के एंटी इस्लामिक ट्वीट का ‘स्वराज्य’ के लेख में समर्थन चिंताजनक है”

It is sad to see that you have not respected the sentiments of Hindus who have been terrorised by Islam over 2000 years. Shame on you.

सेलिब्रिटी शेफ अतुल कोचर की इसी इस्लामोफोबिक ट्वीट की वजह से उनको JW Marriott, Dubai के साथ अपनी नौकरी खोनी पड़ी। ये ट्वीट कोचर ने क्वांटिको सीरीज़ के उस विवादित एपिसोड के संदर्भ में किया था जिसमें काल्पनिक रूप में सैफरन टेरर के मास्टरमाइंड ऐसा प्लॉट करते हैं कि हिंसा के नाम पर पाकिस्तान का नाम बदनाम हो और कश्मीर पर होने वाली भारत पाक वार्ता रद्द हो जाये।

ये काल्पनिक एपिसोड अपने आप में एक बहुत संजीदा मुद्दे पर फिल्माया गया था। इससे भारत वासियों को ठेस पहुंची है, खासकर उनको जो ये कल्पना में भी स्वीकार नहीं कर सकते कि इस्लाम के इलावा भी किसी और धर्म को मानने वाले हिंसा फैला सकते हैं या आतंकवादी हो सकते हैं।

हालांकि मैं इस एपिसोड को काल्पनिक ही लेकर बात कर रही हूं, फिर भी इस कल्पना को लेकर जिस तरह एपिसोड बनाने वालों ने माफी मांगी वो सराहनीय है। गौर करें कि इसमें टेरर ऑउटफिट जो धर्म को (इस केस में हिन्दू धर्म) अपने हिंसक प्रोपेगेंडा के लिए गलत इस्तेमाल कर रही उसको काल्पनिक रूप से दर्शाया गया है। इसमें ना तो हिन्दू धर्म को बुरा बोला गया है ना हिंदुस्तानियों को।

दूसरी तरफ अतुल कोचर के ट्वीट में साफ तौर से “इस्लाम” को ही बुरा घोषित किया गया है। वैसे तो इस्लाम 1400 साल पहले ही आया था, पर कोचर ने 600 साल और जोड़ दिए अपनी नफरत की हद जताने के लिए। क्या कर सकते हैं, याद ताज़ा हो गयी 1200 साल की गुलामी वाले प्रधानमंत्री जी के भाषण की।

आज मयूरेश दिदोलकर द्वारा लिखा गया स्वराज्य का ये आर्टिकल पढ़ा Six lessons from the Atul Kocchar episode । पढ़कर हैरत हुई।

पहली बात कि इस पूरे आर्टिकल में कहीं भी कोचर के ट्वीट को कोट किये बिना बस ये कह दिया गया कि पता तो है ही सबको, तो अब इसके आगे की बात हो। फिर एक लाइन आई जिसके मुताबिक कोचर के पीछे इस्लामिस्ट और लेफ्ट लिबरल पड़े हैं इस ट्वीट को लेकर।

हैरत और बढ़ गयी कि जो कोई कोचर की इस्लाम के प्रति नफरत को गलत कह रहा वो सिर्फ इस्लामिस्ट या लेफ्टिस्ट हैं? बाकी सबको क्या सीधे-सीधे इस्लाम को टेरर का धर्म बताने वाला ये ट्वीट सही लगा? क्या लगना चाहिए?

उसके बाद बात की गई 2019 इलेक्शन की, लेफ्ट लिबरल की, कि कैसे वो खतरनाक है। और ये भी हिंट दिया गया कि माफी मांगना सही पैंतरा नहीं है, बल्कि डटे रहना या चुप रहना सही पैंतरा है। ये फोबिया भी इस आर्टिकल में उजागर किया गया कि 2019 में अगर लिबरल लेफ्ट और बाकियों की सरकार आई तो कैसे हालात और खराब होंगे। मतलब अतुल कोचर जैसे नफरत की सोच रखने वालों की फ्रीडम ऑफ स्पीच को कैसे और खतरा होगा।

अच्छी अंग्रेज़ी में और भी घटिया बातों को sugarcoat करके कहा गया है, जो पढ़ने पर खूब महसूस किया जा सकता है। तुलना भी ऐसे की सेब संतरा सब एक है। इस्लाम को सीधा-सीधा टेरर वाला धर्म कहने वाले इस ट्वीट को 2019 इलेक्शन, लेफ्ट विचारधारा के थ्रेट और फ्रीडम ऑफ स्पीच (जिसमें हेट स्पीच नहीं आता ये पता होना चाहिए) से जोड़ दिया गया।

बात साफ है, धर्म की राजनीति की सब हद पार हो गयी है। अब कोई नफरत से लबरेज़ ट्वीट करे और वो सेलिब्रिटी हो तब भी अगर उसका खंडन किया जाए या उसकी आर्गेनाईजेशन उससे नाता तोड़ ले तो ये इस्लामिस्ट और लेफ्टिस्ट की जीत और हिंदूवादियों की हार की तरह पेश किया जाएगा। 2019 का इतना डर भरा है कि संघ और BJP का एजेंडा हर मुद्दे पर आगे किया जा रहा। चाहे फिर इस क्रिया में नफरत, हिंसा और सम्प्रदायिकता को बढ़ावा ही क्यों ना देना पड़े। खैर, इनकी राजनीति का अस्तित्व वैसे भी सम्प्रदायिकता के बिना तो संभव है भी नहीं।

स्वराज्य का ये आर्टिकल साम्प्रदायिकता और डर की राजनीति का वो हिस्सा है जो नफरत फैलाने वाले के खिलाफ लिए गए एक्शन को गलत और नफरत फैलाने वाले को सही प्रस्तुत करने के लिहाज से लिखा गया है।

बढ़िया अंग्रेज़ी, शब्दों के चयन और मीठी परत के लिए फिर भी इस आर्टिकल को सराहना चाहती हूं। कोशिश अच्छी थी पर नफरत का एजेंडा और 2019 की घबराहट छुप नहीं पाई।

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